हम तेजी से बदल रहे हैं। फैशन, स्टाइल के साथ हमारी लाइफस्टाइल और खानपान का ढंग भी बदल गया। इन चेंजेंज को भले ही प्रोग्रेस का सिंबल माना जा रहा हो पर सच यह भी है कि इनकी हमें भारी कीमत चुकानी पड़ी है। रोजाना, पैदा हो रही हैं अनजानी, अनसुनी बीमारियां। इससे बढ़कर अब तो सिचुएशन यहां तक खराब हो गई है कि इंसान की बच्चे पैदा करने की क्षमता भी प्रभावित होने लगी है।
ब्रिटिश मैगजीन इकनॉमिस्ट में जारी डेटा के मुताबिक करीब आधी दुनिया में फर्टिलिटी रेट 2.1 परसेंट गिर गया है। ऐसी आशंका जताई गई है कि 2020 से 2050 के बीच एक ऐसा भी वक्त आएगा जब पूरी दुनिया का फर्टिलिटी रेट इस आंकड़े तक पहुंच जाएगा।
इस पूरे मामले को समझने के लिए जरूरी है कि सबसे पहले यह समझा जाए कि फर्टिलिटी रेट है क्या? दरअसल यह जन्म दर नहीं बल्कि जन्म देने की काबिलियत है। फर्टिलिटी रेट 2.1 परसेंट होने का मतलब है कि एक महिला अपनी जिंदगी में इतने ही बच्चों को जन्म दे सकती है। इस पूरी स्टोरी में यह 2.1 परसेंट का आंकड़ा सबसे अहम है। इसे फर्टिलिटी का रिप्लेसमेंट रेट माना जाता है। अगर एक महिला औसतन 2.1 बच्चे को जन्म देती है तो वह आबादी में इजाफा नहीं कर पाएगी। दो बच्चे अपने पैरेंट्स की जगह ले लेंगे और आबादी जस की तस रहेगी।
इस तरह जब किसी सोसायटी का फर्टिलिटी रेट 2.1 परसेंट हो जाता है तो पॉपुलेशन ग्रोथ रुक जाती है। इस हिसाब से अगले 10 से 40 बरस के बीच पूरे वर्ल्ड की पॉपुलेशन एक हद पर ठहर जाएगी। शायद उसमें गिरावट भी शुरू हो जाए। अंदाजा है कि ग्लोबल पॉपुलेशन का टॉप सवा नौ अरब के आसपास का ही बनेगा। फिलहाल आबादी साढ़े छह अरब है।
तेजी से हो रही गिरावट
इस मामले में सबसे दिलचस्प बात यह है कि फर्टिलिटी में गिरावट काफी तेज है। ब्राजील, इंडोनेशिया, भारत और दूसरी डेवलपिंग कंट्रीज के अलावा अफ्रीका की पूअर कंट्रीज में यह साफ नजर आ रहा है। फर्टिलिटी रेट ब्रिटेन में 130 सालों में जितनी नीचे आई है साउथ कोरिया में 20 साल में ही उतनी नीचे आ गई। ईरान का मामला तो और भी संजीदा है। यहां 22 साल में फर्टिलिटी रेट सात से गिरकर 1.9 परसेंट पर पहुंच गया। तेहरान में यह 1.5 परसेंट है।
पॉपुलेशन के इस हैरतअंगेज ट्रेंड ने पॉपुलर इकॉनमिस्ट थॉमस माल्थस की इस थियरी को भी गलत प्रूव कर दिया है कि एक दिन दुनिया की बढ़ती आबादी के कारण अन्न कम पड़ जाएगा। जिस वक्त माल्थस यह ऐलान कर रहे थे उसी दौरान इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन शुरू हो रही थी। जिसके चलते पहले फ्रांस फिर ब्रिटेन और उसके बाद अमेरिका और यूरोप में फर्टिलिटी रेट गिरने लगा। जैसे-जैसे डेवलपमेंट का कारवां बढ़ता गया। फेमिली प्लानिंग पर जोर बढ़ता गया। खेती के जमाने में जो संतानें सहारा मानी जाती थीं वे बिजनेस और जॉब के जमाने में बोझ समझी जाने लगी। इंप्लॉयमेंट, एजुकेशन और शहरीकरणने महिलाओं में कम बच्चे पैदा करने की इच्छा पैदा। वैसे इस नए रिसर्च के बाद पॉपुलेशन ब्लास्ट का शोर अचानक हवा हो गया है। [जेएनएन]