माथुर आयोग पर लगी रोक

जयपुर. राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में भूमि आवंटन के निर्णयों एवं अन्य क्रियाकलापों की जांच के लिए पूर्व न्यायाधीश एन.एन.माथुर की अध्यक्षता में गठित आयोग के कामकाज पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी है।

हाई कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि वह राज्य सरकार की ओर से जारी 23 जनवरी 09 के आदेश से दिए अधिकारों के तहत कोई कार्य न करे। यह अंतरिम आदेश मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला एवं न्यायाधीश मुनीश्वरनाथ भंडारी की खंडपीठ ने बुधवार को काशी पुरोहित व कृष्णमुरारी लाल अस्थाना की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।

खंडपीठ ने महाधिवक्ता जी.एस. बापना एवं आयोग की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता एनए नकवी को कहा कि वह आयोग के कार्यकलापों एवं अन्य तथ्यों पर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण लेकर अपना जवाब पेश करें। खंडपीठ ने कहा कि इस अंतरिम स्तर पर न्यायालय दोनों ही पक्षों के लिए खुला है और गुणावगुण पर कोई टिप्पणी किए बिना ही यह आदेश पारित किया जाता है।

मामले की आगामी सुनवाई 20 नवंबर को होगी। याचिकाकर्ताओं के वकील अभिनव शर्मा ने कहा कि एक तथ्य अन्वेषण कमेटी को आयोग का नाम नहीं दिया जा सकता और एक कमेटी द्वारा किसी अपने प्रारंभिक जांच के दायरे में रहते हुए किसी भी व्यक्ति को दोषी करार नहीं दिया जा सकता।

जबकि आयोग ने पूर्व सरकार के कार्यकाल में विभिन्न उच्च स्तरों पर पदस्थापित प्रमुख शासन सचिवों सहित पूर्व मंत्रियों को जांच के लिए सम्मन जारी कर तलब करते हुए साक्ष्य पेश करने को कहा। साथ ही 8 मई 09 को सार्वजनिक विज्ञप्ति जारी कर कमेटी ने आयोग की हैसियत से आमजन से लिखित में अथवा व्यक्तिश: शिकायतंे व सूचनाएं आमंत्रित की थीं जो कि गलत है क्योंकि वह एक कमेटी थी न कि आयोग।

राज्य सरकार की ओर से महाधिक्ता जी.एस.बापना ने कहा कि यह आयोग नहीं बल्कि एक कमेटी है और इसकी प्रारंभिक जांच में व्यक्तियों के दोषी पाए जाने पर राज्य सरकार से अनुमोदन लिया जाएगा और उनके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। इस पर खंडपीठ ने उनसे अफसरों को भेजे गए सम्मनों एवं आयोग के क्रियाकलापों की जानकारी मांगी, लेकिन सम्पूर्ण जानकारी नहीं होने पर उन्होंने समय मांगा।

खंडपीठ ने समय देते हुए कहा कि राज्य सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह सभी तथ्यों पर अपना स्पष्टीकरण देते हुए जवाब पेश करें। साथ ही आयोग को 23 जनवरी 09 के तहत दिए अधिकारों के तहत कोई भी कार्रवाई करने पर रोक लगा दी।

जब लोकायुक्त है तो आयोग क्यों: सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि वह स्पष्ट करे कि क्या प्रारंभिक जांच के आधार पर किसी भी राज्य सेवक को दोषी करार कैसे दिया जा सकता है। साथ ही यह भी प्रoA उठाया कि जब राज्य सरकार के पास कानूनी रूप से ऐसी जांचों के लिए लोकायुक्त जैसी संस्था है तो राज्य सरकार ने जांच को लोकायुक्त के समक्ष रखने की बजाय आयोग गठित क्यों किया।

क्या है याचिका: याचिका में राज्यसरकार के 23 जनवरी 09 के आदेश से पूर्व न्यायाधीश एन.एन.माथुर की अध्यक्षता में गठित आयोग की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा कि कमीशन जांच आयोग अधिनियम के तहत किसी भी आयोग के गठन से पूर्व विधानसभा में बहस होक र इसे दो तिहाई बहुमत के प्रस्ताव से पारित करवाया जाता है। लेकिन इस आयोग के लिए यह प्रक्रिया नहंीं अपनाई। यह भी कहा कि कोई भी मंत्रिमंडल अपने पूर्ववर्ती मंत्रिमंडल की जांच के लिए किसी भी प्रकार की तथ्य अंवेक्षण कमेटी का गठन नहीं कर सकता क्योंकि किसी भी मंत्रिमंडल के निर्णय राज्यपाल के स्वयं के निर्णय होते हैं, ऐसे में राज्यपाल के द्वारा आयोग का गठन असंवैधानिक है।

कार्यक्षेत्र
आयोग को जेडीए, हाउसिंग बोर्ड, नगर सुधार न्यास, नगर निगम, नगर परिषदों, नगर पालिकाओं और अन्य स्वायत्तशाषी संस्थाओं की ओर से किए गए भू- उपयोग परिवर्तन और 90 बी में हुई गड़बड़ियों की जांच करनी है। आयोग प्रदेशभर में इस तरह के मामलों की जांच करेगा।

अब क्या होगा?
आयोग में पड़ी विभिन्न फाइलों से उन विभागों के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि खुद आयोग कई बार विभागों को यह हिदायत दे चुका है कि जांच के नाम पर पब्लिक के काम नहीं रोके जाएं।

कब बना आयोग
राज्य सरकार ने 23 जनवरी, 2009 को राजस्थान हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एन.एन. माथुर की अध्यक्षता में प्रशासनिक आयोग गठित किया। सेवानिवृत्त आईएएस पूर्व मुख्य सचिव इन्द्रजीत खन्ना और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एच.एन. मीणा को सदस्य बनाया गया।

क्यों बनाना पड़ा
पिछली सरकार के शासनकाल में वर्ष 2004 से 2008 के बीच सरकार में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त होने और मनमाने तरीके से लोगों को फायदा पहुंचाने के आरोप लगे थे। इन आरोपों की सच्चई जनता के सामने लाने के लिए विभिन्न विभागों और संस्थाओं में हुए भ्रष्टाचार, दुराचरण, लापरवाही, फर्जकारी, पक्षपात, भाई— भतीजावाद, अवैधताएं और अनुचित कार्यो की जांच के लिए आयोग बनाया गया।

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