लखनऊ। राज्य सरकार ने केंद्र द्वारा इसी वर्ष लागू एफआरपी (उचित एवं लाभकारी मूल्य) प्रणाली को ठेंगा दिखाते हुए प्रदेश की चीनी मिलों को निर्देश दिया है कि वे किसानों को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित एसएपी (राज्य परामर्शित मूल्य) के मुताबिक पूरे गन्ना मूल्य का भुगतान करें। सरकार ने चीनी मिलों को कच्ची चीनी आयात न करने का सुझाव दिया है, जिसे मिलों ने स्वीकार करके आयात प्रक्रिया रोक दी है।
कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने बुधवार को यहां मीडिया सेंटर में पत्रकारों को बताया कि कुछ वर्ष पूर्व चीनी मिल मालिकों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करके राज्य सरकार द्वारा न्यूनतम गन्ना मूल्य निर्धारित करने की प्रणाली को चुनौती दी थी, जिस पर न्यायालय ने फैसला दिया था कि राज्य सरकार को गन्ना मूल्य निर्धारित करने का अधिकार है। सिंह ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के प्रकाश में राज्य सरकार ने इस वर्ष 165-170 रुपये प्रति क्विंटल गन्ना मूल्य निर्धारित किया है। मिलों को निर्देश दिया गया है कि वे किसानों को इसी दर से भुगतान करें।
केंद्र सरकार ने एफआरपी प्रणाली के तहत 129.84 रुपये प्रति क्विंटल गन्ना मूल्य निर्धारित करते हुए प्राविधान किया है कि यदि कोई राज्य अपने किसानों को इससे अधिक मूल्य देना चाहता है कि दोनों दरों का अंतर मूल्य मिलों के बजाय उस राज्य की सरकार को वहन करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री मायावती इस प्राविधान को अनुचित एवं किसानविरोधी ठहराते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिख चुकी हैं। कैबिनेट सचिव ने कहा कि हर प्रदेश के हालात अलग हैं। जहां तक यूपी का सवाल है, मिलें ही पूरा भुगतान करेंगी। राज्य सरकार द्वारा अंतर मूल्य भुगतान करने का सवाल ही नहीं उठता। कैबिनेट सचिव ने बताया कि प्रदेश की चीनी मिलें अब कच्ची चीनी आयात नहीं करेंगी। राज्य सरकार ने मिलों को यह सुझाव दिया था, जिस पर मिल मालिक राजी हो गए हैं। एक उद्योग समूह द्वारा ब्राजील से कच्ची चीनी का आयात किया जा रहा था, जिसके खिलाफ पश्चिमी उप्र के गन्ना किसान आन्दोलित थे। इस बीच सरकार ने मंडलायुक्तों व जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि मिलों में पेराई तुरंत शुरू करायी जाए, तथा किसानों को राज्य परामर्शित मूल्य समेत अन्य सभी संभव सुविधाएं मुहैया करायी जाएं।