बारह सालों में आबादी बढ़ी एक अरब….

दुनिया की आबादी साल २०११ में ७ अरब हो जाएगी और आबादी की यह बढ़वार सबसे ज्यादा विकासशील मुल्कों में होगी। द वर्ल्ड पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि महज १२ सालों के अंतराल में दुनिया की आबादी में एक अरब की बढ़ोतरी (साल १९९९ में विश्व की जनसंख्या ६ अरब थी) अपने आप में ऐतिहासिक घटना है। रिपोर्ट के अनुसार अगले दो सालों में दुनिया में युवाओं(१५-२४ साल) की सर्वाधिक तादाद गरीब शुमार किए जाने वाले मुल्कों में होगी और सरकारों पर रोजगार मुहैया कराने का दबाव बढ़ेगा।

गौरतलब है कि कई देशों में प्रजनन-दर में कमी आई है फिर भी वैश्विक आबादी में तेज-रफ्तारी से इजाफा हो रहा है। द पापुलेशन रेफरेंस ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट( २००९ वर्ल्ड पॉपुलेशन डेटाशीट) के अनुसार विश्व की आबादी को ५ अरब से ६ अरब की संख्या तक पहुंचने में महज १२ साल लगे और वैश्विक आबादी की बढ़वार के मौजूदा रुझान से संकेत मिलते हैं कि वैश्विक जनसंख्या को ७ अरब की तादाद तक पहुंचने में १२ साल ही लगेंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों में आबादी की बढ़वार के आकलन में यह मान लिया जाता है कि आने वाले सालों में ऐसे मुल्कों में प्रजनन-दर घटकर विकसित मुल्कों के समान(दो शिशु प्रति महिला) हो जाएगी लेकिन आबादी की बढ़ोतरी के मौजूदा रुझान एक अलग ही तस्वीर बयान करते हैं। डेटाशीट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार विश्व के कई देशों में प्रजनन-दर के मामले में अन्तर लगभग आठ गुना है। फिलहाल सर्वाधिक प्रजनन दर नाईजीरिया( ७.४ शिशु प्रति महिला) का है जबकि सबसे कम ताईवान(१.० शिशु प्रति महिला) का।

रिपोर्ट में चेतावनी के स्वर में कहा गया है कि विश्व में फिलहाल युवाओं की तादाद का ९० फीसदी हिस्सा (१ अरब २० करोड़) विकासशील देशों में है। इनमें से प्रत्येक १० में आठ युवा अफ्रीकी या एशियाई मुल्कों के वासी हैं। आने वाले एक दशक में युवाओं की बड़ी तादाद ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर घटने से शहरों का रुख करेगी और विकासशील देशों के सामने एक बड़ा सवाल अपने युवा नागरिकों को शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य सुविधा तथा रोजगार मुहैया कराने का होगा जिसकी भरपूर तैयारी फिलहाल देखने को नहीं मिल रही। 

पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो द्वारा तैयार डेटाशीट की एक विशेष बात इसमें विभिन्न देशों में मौजूद आबादी, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा और पर्यावरण विषयक ताजातरीन आंकड़ों का होना है। इससे पता चलता है कि दुनिया के अमीर और गरीब देशों के नागरिकों के बीच सामाजिक सुविधाओं के लिहाज से अन्तर कितना बड़ा है। मिसाल के लिए कनाडा और युगांडा की आबादी आज की तारीख में बराबर है लेकिन अनुमान के अनुसार २०५० में युगांडा की आबादी कनाड़ा की तुलना में दोगुनी हो जाएगी क्योंकि दोनों देशों के बीच प्रजनन-दर के लिहाज से अन्तर काफी ज्यादा(पांच गुना) है। 

रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने कई मोर्चों पर अच्छी प्रगति की है। मिसाल के लिए साल भारत में १८ साल से कम उम्र में गर्भधारण करने वाली महिलाओं की तादाद साल १९९४ में२३ फीसदी थी जो साल २००६ में घटकर १३ फीसदी हो गई। ठीक इसी तरह साल १९९० में भारत में माध्यमिक विद्यालय में दाखिल बच्चों की तादाद ४१ फीसदी थी जो साल २००६ में बढ़कर ५४ फीसदी तक पहुंच गई। मगर, डेटाशीट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार भारत अब भी प्रजनन-दर के मामले में इंडोनेशिया और हैती जैसे देशों से तथा माध्यमिक स्कूलों में बच्चों की नामांकन संख्या के प्रतिशत के लिहाज से मैक्सिकों और मिस्र जैसे देशों से बहुच पीछे है।(कृपया देखें लिंक में संलग्न पीडीएफ फाईल)
 
http://www.prb.org/pdf09/09wpds_eng.pdf
 
http://www.prb.org/en/Journalists/PressReleases/2009/2009wpds.aspx

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