कोपनहेगन से अमीर मुल्कों को ही आस कम

नई दिल्ली, [प्रणय उपाध्याय]। जलवायु परिवर्तन पर फिक्रमंद दुनिया के अमीर मुल्कों के नेता कुछ नतीजा दे पाएंगे इस पर उनकी अपनी ही जनता को भरोसा कम है। हालाकि भारत, ब्राजील और चीन जैसे विकासशील देशों के लोगों ने धरती की तपन कम करने के उपाय खोजने के लिए हो रही इस बातचीत को लेकर अब भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है।

जलवायु परिवर्तन से मुकाबले की तैयारियों को लेकर लोगों के भरोसे पर जारी एचएसबीसी बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन पर किसी नई व्यवस्था को लेकर सबसे कम भरोसा वातावरण में सर्वाधिक कार्बन उगलने वाले अमेरिका के लोगों को है।

कोपनहेगन वार्ता से महज कुछ हफ्ते पहले क्लाइमेट काफिडेंस मॉनिटर 2009 नामक यह रिपोर्ट कहती है सबसे कम 45 फीसदी अमेरिकियों को कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने वाली किसी नई व्यवस्था के बनने की उम्मीद है। वहीं ब्राजील के 86 और भारत के 62 प्रतिशत लोगों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक नई वैश्रि्वक व्यवस्था के महत्व पर जोर देते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और चीन सहित दुनिया के 12 देशों के लोगों की रायशुमारी पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार 65 फीसदी लोग एक नई व्यवस्था बनने की उम्मीद

नई दिल्ली, [प्रणय उपाध्याय]। जलवायु परिवर्तन पर फिक्रमंद दुनिया के अमीर मुल्कों के नेता कुछ नतीजा दे पाएंगे इस पर उनकी अपनी ही जनता को भरोसा कम है। हालाकि भारत, ब्राजील और चीन जैसे विकासशील देशों के लोगों ने धरती की तपन कम करने के उपाय खोजने के लिए हो रही इस बातचीत को लेकर अब भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है।

जलवायु परिवर्तन से मुकाबले की तैयारियों को लेकर लोगों के भरोसे पर जारी एचएसबीसी बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन पर किसी नई व्यवस्था को लेकर सबसे कम भरोसा वातावरण में सर्वाधिक कार्बन उगलने वाले अमेरिका के लोगों को है।

कोपनहेगन वार्ता से महज कुछ हफ्ते पहले क्लाइमेट काफिडेंस मॉनिटर 2009 नामक यह रिपोर्ट कहती है सबसे कम 45 फीसदी अमेरिकियों को कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने वाली किसी नई व्यवस्था के बनने की उम्मीद है। वहीं ब्राजील के 86 और भारत के 62 प्रतिशत लोगों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक नई वैश्रि्वक व्यवस्था के महत्व पर जोर देते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और चीन सहित दुनिया के 12 देशों के लोगों की रायशुमारी पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार 65 फीसदी लोग एक नई व्यवस्था बनने की उम्मीद रखते हैं।

हालाकि रिपोर्ट बताती है कि बीते एक साल में आई मंदी की चुनौतियों ने जलवायु परिवर्तन की चिंता को लोगों के फिक्र की फेहरिस्त में कई पायदान नीचे खिसका दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2007 के बाद से दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की चुनौती से मुकाबले की तैयारियों को लेकर उम्मीद का औसत छह फीसदी गिरा है। भारत में भी जहा 2007 में 45 फीसदी लोग जलवायु परिवर्तन के इलाज के उपायों को लेकर आशावान थे वहीं 2009 के सर्वेक्षण में यह आकड़ा गिर कर 30 फीसदी पहुंच गया है। वहीं भारतीयों के मुकाबले केवल ग्यारहफीसदी अमेरिकी ही मानते हैं कि इस मुसीबत का हल दुनिया ढूंढ पाएगी।

सर्वेक्षण में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रास जैसे विकसित देशों के लोगों की राय शामिल की गई वहीं भारत, ब्राजील, चीन, मैक्सिको, मलेशिया सहित कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था का भी मन टटोला गया।


 रखते हैं।

हालाकि रिपोर्ट बताती है कि बीते एक साल में आई मंदी की चुनौतियों ने जलवायु परिवर्तन की चिंता को लोगों के फिक्र की फेहरिस्त में कई पायदान नीचे खिसका दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2007 के बाद से दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की चुनौती से मुकाबले की तैयारियों को लेकर उम्मीद का औसत छह फीसदी गिरा है। भारत में भी जहा 2007 में 45 फीसदी लोग जलवायु परिवर्तन के इलाज के उपायों को लेकर आशावान थे वहीं 2009 के सर्वेक्षण में यह आकड़ा गिर कर 30 फीसदी पहुंच गया है। वहीं भारतीयों के मुकाबले केवल ग्यारह फीसदी अमेरिकी ही मानते हैं कि इस मुसीबत का हल दुनिया ढूंढ पाएगी।

सर्वेक्षण में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रास जैसे विकसित देशों के लोगों की राय शामिल की गई वहीं भारत, ब्राजील, चीन, मैक्सिको, मलेशिया सहित कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था का भी मन टटोला गया।

 

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