बीटी बैंगन की खेती को जेनेटिक इंजीनियरिंग एडवाइजरी कमिटी की हरी झंडी मिलने के साथ एक बार फिर आनुवांशिक रुप से प्रवर्धित बीजों के इस्तेमाल का सवाल मीडिया की सुर्खियों में है।जेनेटिक इंजीनियरिंग एडवाइजरी कमिटी वन और पर्यावरण मंत्रालय से जुड़ी एक नियामक संस्था है। वैज्ञानिक की टोली वाली इस समिति ने पिछले १४ अक्तूबर को बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती को निरापद करार देते हुए हरी झंडी दे दी थी।
बीटी बैंगन की खेती को निरापद करार देने के समिति के फैसले को स्वयंसेवी संस्थाओं और नागरिक संगठनों ने हाथो-हाथ लिया और इसकी पुरजोर मुखालफत की। इन संगठनों का कहना था कि बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती जनता की सेहत और पर्यावरण की संरक्षा के लिहाज से खतरनाक है। जनपक्षी संगठनों की तीव्र प्रतिक्रिया को देखते हुए आखिरकार वन और पर्यावरण मंत्रालय को फिलहाल इस मसले पर अंतिम फैसला मुल्तवी करना पड़ा है।
गौरतलब है कि बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती का फैसला मंत्रालय ने पहले भी लिया था। उस वक्त भी मंत्रालय को नागरिक संगठनों के पुरजोर विरोध का सामना करना पड़ा था। इसके बाद साल २००७ में मंत्रालय ने बीटी बैंगन की खेती से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर राय जानने के लिए एक पुनरावलोकन समिति का गठन किया।
जेनेटिक इंजीनियरिंग एडवाइजरी कमिटी की मौजूदा सिफारिश की ग्रीनपीस सहित कई संगठनों ने अलग अलग कोणों से मुखालफत की है। पर्यावरणीय सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था ग्रीनपीस का आरोप है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग एडवाइजरी कमिटी के सदस्यों ने प्रमुख बीज निर्माता कंपनियों महिको-मोन्सेंटों से अपनी नजदीकी के कारण बीटी बैंगन की खेती को निरापद करार दिया है। ग्रीनपीस ने कहा है कि आनुवांशिक रुप से प्रवर्धित फसलों की खेती से भारत में व्याप्त कुपोषण और खाद्य-असुरक्षा की समस्या निदान नहीं खोजा जा सकता।
सीपीआई(एम) से संबद्ध अखिल भारतीय किसान सभा ने कहा है कि बीटी बैंगन की खेती को हरी झंड़ी देने का मतलब होगा महिको-मोन्सेंटे के निहित स्वार्थों को भारतीय कृषि-परिदृश्य में जगह देना। किसान सभा का तर्क है कि बीजों से जुड़ी प्रौद्योगिकी में पेटेंट को स्वीकार करने से एकाधिकारी प्रवृति को बढा़वा मिलेगा और इसका सीधा लाभ बहुराष्ट्रीय निगमों को होगा। भारतीय किसानों को पड़े ऊंचे दामों पर बीज खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ेगा और इसका दूरगामी दुष्प्रभाव उनकी क्रय-क्षमता पर पड़ेगा।
स्वयंसेवी नागरिक संगठनों के विपरीत नीति-निर्माताओं का एक तबका बीटी बैंगन की खेती और इंजीनियरिंग समिति की सिफारिश को जायज करार दे रहा है। इस धड़े का तर्क है कि बीटी बैंगन के बीजों की आनुवांशिक बनावट उन्हें कीटनिरोधी बनाती है। गौरतलब है कि बैंगन की खेती आंध्रप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में तकरीबन ५ लाख हेक्टेयर भूमि पर होती है और बैंगन की फसल का ५० फीसद हिस्सा फलछेदक कीड़ों का शिकार होकर नष्ट हो जाता है। बीटी बैंगन के जिन बीजों को लेकर विवाद मचा है उन्हें महिको कंपनी और तमिलनाडु तथा कर्नाटक के विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रुप से तैयार किया है। बीटी बैंगन के आनुवांशिक रुप से प्रवर्धित बीजों से एक खास किस्म का प्रोटीन निकलता है जिनसे फलछेदक कीट नष्ट हो जाते हैं।
बहरहाल नागिरक और स्वयंसेवी संगठनों के मौजूदा विरोध को देखते हुए वन और पर्यावरण मंत्रालय ने कहा है कि राष्ट्रव्यापीसलाह मशविरे के बाद ही बीटी बैंगन की खेती को मंजूरी दी जाएगी और बीजों को खुले बाजार में बेचना संभव हो पाएगा।
बीटी बैंगन और आनुवांशिक रुप से प्रवर्धित बीजों के व्यावसायिक इस्तेमाल के इर्द गिर्द केंद्रित बहस को विस्तार से जानने के लिए निम्नलिखित लिंक खोलें-
http://www.hindu.com/2009/10/21/stories/2009102155640800.htm
http://ibnlive.in.com/news/geac-nod-to-commercial-release-of-bt-brinjal/103254-11.html
http://telegraphindia.com/1091015/jsp/frontpage/story_11617850.jsp
http://www.deccanherald.com/content/30673/bt-brinjal-safe-consumption.html
http://www.hindu.com/2009/10/14/stories/2009101461490700.htm
http://blogs.reuters.com/india/2009/10/14/are-we-ready-for-genetically-modified-vegetables/
http://beta.thehindu.com/news/national/article33982.ece
http://www.sindhtoday.net/news/1/62153.htm
http://www.deccanchronicle.com/national/we-will-not-blindly-oppose-bt-brinjal-kv-thomas-064#
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Bt-brinjal-debate-goes-to-people/articleshow/5128675.cms
http://www.business-standard.com/india/storypage.php?autono=373318
http://www.financialexpress.com/news/Govt-seeks-public-view-on-Bt-Brinjal/529552/
http://www.hindustantimes.com/Bt-brinjal-gets-the-green-signal/H1-Article1-465298.aspx#