विनिवेश से घटेगा सरकारी घाटा!

केंद्र सरकार अपने बजट घाटे को पाटने के लिए विनिवेश निधि की मदद लेगी और इसके लिए उम्मीद है कि सरकार राष्ट्रीय निवेश निधि (एनआईएफ) को एक या दो साल के लिए लंबित कर सकती है।

इसके परिणामस्वरूप सरकार विनिवेश से हासिल रकम को भारतीय संचित निधि (सीएफआई) में रख सकेगी। जबकि अभी तक विनिवेश प्रक्रियाओं से मिलने वाले धन को सीएफआई से निकालकर एनआईएफ में जमा किया जाता है।

मौजूदा नियम-कायदे सरकार को विनिवेश से हासिल धन को चुनिंदा सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं और मुनाफा कमाने वाले पूंजीगत निवेश और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के आगे बढ़ सकने वाले उपक्रमों के लिए वित्त मुहैया कराने के निर्दिष्ट प्रयोजनों के बाहर इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देते हैं। सामाजिक क्षेत्र की ये योजना शिक्षा, स्वास्थ एवं रोजगार को प्रमोट करती हैं।

वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि एनआईएफ को पूरी तरह से खत्म करने के बजाए यह विकल्प सामने आया है। इस निधि को विभिन्न दिशाओं से पड़ रहे दबाव के बाद बनाया गया है। यह दबाव वाम दलों की तरफ से विनिवेश पर विरोध के रूप में भी देखा गया था।

वाम दलों ने यह कहते हुए विनिवेश का विरोध किया था कि इनसे प्राप्त राशि का इस्तेमाल राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए इस्तेमाल हो रहा था। एक अधिकारी का कहना है, ‘यह प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा जा चुका है, लेकिन इस पर निर्णय को दो बाद टाला गया है।’ गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक के दौरान विनिवेश रोडमैप पर कोई फैसला सामने नहीं आया है।

एनआईएफ से संबंधित बदलाव विनिवेश रोडमैप का ही एक हिस्सा हैं, जिन्हें विनिवेश विभाग की तरफ से तैयार किया गया है और अब इन्हें केंद्रीय मंजूरी का इंतजार है। अभी तक कैबिनेट की इन बदलावों को मंजूरी नहीं मिल पाई है, इसलिए हाल पहले दो सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) और नैशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचपीसी) में हुए विनिवेश से हासिल धन को एनआईएफ में डाला जाएगा।

दोनों सार्वजनिक उपक्रमों को मिलाकर लगभग 4,200 करोड़ रुपये सरकार को इक्विटी की बिक्री से हासिल होंगे। एक बार रोडमैप को मंजूरी मिलने के बाद सरकारी हिस्सेदारी को बेचने से प्राप्त धन को सीएफआई में ही बरकरार रखा जाएगा।

एक अधिकारी का कहना है, ‘चालू वित्त वर्ष में लगभग आधा दर्जन कंपनियों में हो सकता है कि हिस्सेदारी की बिक्री की जाए।’ जुलाई में पेश किए गए बजट में सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री से लगभग 1,120 करोड़ रुपये आय के अनुमान लगाए गए थे। इस आंकड़े को पहले ही अकेले ओआईएल में  2,200 करोड़ रुपये की बिक्री से सरकारी आय के साथ पार कर लिया है।

सरकार ने 2009-10 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 6.8 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे का अनुमाल लगाया था, जो वर्ष 2008-09 में 6 प्रतिशत से अधिक है। पहले चरण में, उम्मीद है कि सरकार ऐसी कंपनियों में अपनी इक्विटी को बेचेगी, जिनमें सरकारी हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से कम है। कंपनियों को ताजा इक्विटी उगाहने की भी अनुमतिहोगी, अगर वे ऐसा करना चाहेंगी तो।

विनिवेश के लिए जिन कंपनियों पर ध्यान दिया जा रहा है, उनमें रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉर्पोरेशन, स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन, भारत संचार निगम, कोल इंडिया लिमिटेड, इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड और नैशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन शामिल है। एनटीपीसी के लिए भी सार्वजनिक इश्यू की बात की जा रही है, लेकिन कंपनी ताजा इक्विटी उगाहने की इच्छुक नहीं है, इसके अलावा कंपनी में पहले ही 10 प्रतिशत से अधिक फ्लोटिंग हिस्सेदारी है।

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