सूखा राहत के नाम पर महज ठेंगा

देहरादून। अपनी सारी गेहूं की फसल सूखे की भेंट चढ़ा चुके उत्तराखंड के किसानों को राहत के नाम पर केंद्र सरकार ने ठेंगा दिखा दिया है। केंद्र ने नेशनल क्लामिटी कंटिंजेंसी फंड से राज्य को राहत देने से इंकार कर अपनी आपदा निधि से ही राहत वितरित करने को कहा है। राज्य सरकार ने इस धन का उपयोग प्रभावित क्षेत्रों के सड़क-पुल आदि सार्वजनिक कार्यो पर करने का निर्णय लिया है।

उत्तराखंड के तेरह में से दस पर्वतीय जिले रबी की फसल में सूखा प्रभावित श्रेणी में शामिल किए गए। सर्वेक्षण में पता चला कि इन जिलों की 50 से लेकर 90 प्रतिशत फसल सूखे की भेंट चढ़ चुकी है। केंद्र की टीम ने उत्तराखंड आकर प्रभावित जिलों का भ्रमण किया और राज्य सरकार की रिपोर्ट को सही पाया। राज्य ने केंद्र से सूखा प्रभावित जिलों में किसानों के लिए नेशनल क्लाइमिटी कंटिंजेंसी फंड से राहत की मांग की। केंद्र सरकार ने इस फंड से राहत देने से इंकार कर दिया। सीएम के प्रमुख सचिव सुभाष कुमार ने बताया कि केंद्र ने राज्य सरकार को उसके अपने क्लाइमिटी रिलीफ फंड (सीआरएफ) से 58 करोड़ रुपये सूखा प्रभावित किसानों को राहत के रूप में बांटने को कहा है। श्री कुमार ने बताया कि राज्य के सीआरएफ में करीब 90 करोड़ बचे हैं। हमेशा प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित रहने वाले इस राज्य में आपदाओं से निपटने को किसी भी समय इस फंड से धन की जरूरत पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि वैसे भी प्रभावित किसानों की संख्या के लिहाज से यह धनराशि ऊंट के मुंह में जीरा साबित होती है। यदि सभी किसानों को राहत बांटी जाए तो किसी को सौ तो किसी को दो सौ रुपये मिल पाते हैं। सूखा प्रभावित किसानों को मिलने वाली राहत के मानक बहुत पुराने हैं। मुआवजा राशि इतनी कम होती है कि कई बार तो किसान इसे लेने तक नहीं आते हैं। प्रमुख सचिव ने बताया कि अब राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि यह राशि सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सड़क, पुल रास्तों आदि के निर्माण पर खर्च की जाएगी। अब तक राज्य इस मद में 30 करोड़ इन सार्वजनिक कार्यो पर पहले ही खर्च कर चुका है। जाहिर है कि एक साल से राहत की बाट जोह रहे दस जिलों के प्रभावित किसानों को अब मुआवजा देने के स्थान पर ठेंगा दिखाया जा रहा है।

 

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