जैंती (अल्मोड़ा) : उत्ताराखण्ड राज्य आंदोलन में अपनी शहादत देने वाले जिले के एकमात्र आंदोलनकारी की विधवा मेहनत मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर रही है। नेताओं के लाख घोषणाओं के बावजूद शहीद की जन्मस्थली मिरोली गांव आज भी रोड, पानी, बिजली के लिए मोहताज है।
उत्ताराखण्ड राज्य आंदोलन के दौरान अल्मोड़ा जनपद के मल्ला सालम के मिरोली निवासी प्रताप बिष्ट की 3 अक्टूबर 1994 को पुलिस की गोली से नैनीताल में मौत हो गयी थी। प्रताप के घर की माली हालत ठीक न होने से नैनीताल के किसी होटल में नौकरी करता था। घर पर पत्नी पुष्पा के अलावा 4 नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण का जिम्मा था। इस बीच उत्ताराखण्ड आंदोलन में जुलूस में शामिल होने की सजा उसे बर्बर पुलिस ने सीने में गोली दाग कर दी।
इधर राज्य प्राप्ति के पश्चात पुष्पा को उम्मीद थी कि उसे भी आर्थिक सहायता मिलेगी। लेकिन कोरी घोषणाओं के साथ ही न तो उसे आर्थिक सहायता मिली न ही उसके गांव को पिछले 5 वर्षो से रोड से जोड़ा जा सका। द्योनाथल-चेलछीना के नाम से स्वीकृत यह मोटर मार्ग मात्र 3 किमी ही बन पाया। उसमें भी विगत बरसात में मलबा आने से यह मोटर मार्ग क्षतिग्रस्त हो गया। साथ ही बिजली के तिरछे पोल एवं जमीन को छू रहे तार एवं लो-वोल्टेज से ग्रामीण काफी त्रस्त हैं। इसी तरह यहां खुला एकमात्र प्राइमरी स्कूल में भी एकमात्र शिक्षक के जिम्मे सारे विद्यार्थियों के पठन-पाठन का जिम्मा है।
यहां के प्रधान कुंदन सिंह रौतेला के अनुसार स्व.प्रताप के तीन बच्चों में से सबसे बड़े लड़के को चतुर्थ श्रेणी में नौकरी अवश्य मिली। लेकिन वह अपने बाल बच्चों को साथ लेकर बाकी को गांव में बेसहारा छोड़ गया। कुल मिलाकर अपनी शहादत देने के बावजूद भी प्रताप की बेवा पुष्पा आज सड़क में पत्थर तोड़कर गुजारा कर रही है।