पुणे. बिजली की कमी के कारण अंधेरे में रहने को मजबूर देश के सैकड़ों गांवों के लिए रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल विवेक मुंडकुर उम्मीद की नई किरण लेकर आए हैं। उन्होंने पैडल से चलने वाला एक ऐसा जनरेटर तैयार किया है, जो गांव के सौ घरों को रोशन कर सकता है।
महज 10 हजार रुपए की लागत से बना यह जनरेटर छोटे शहरों, कस्बों और गांवों के लिए काफी उपयोगी है। मुंडकुर को 1976 में देश के पहले हैंग ग्लाइडिंग पायलट बनने का गौरव प्राप्त है। उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में भी शामिल है। वे पिछले साल रिसायकल मटेरियल से 25 हजार की लागत से विंडमिल बना चुके हैं।
इस तरह काम करता है : पैडल करने पर पहिए के साथ लगी दोनों डिस्क घूमती हैं, जिससे बिजली पैदा होती है। यह बिजली रेक्टिफायर में जाकर एसी से डीसी में बदल जाती है। डीसी करंट एक बैटरी में जमा होता है। बैटरी में समाई इसी ऊर्जा का उपयोग घरों को रोशन करने के लिए किया जा सकता है।
ऐसे है उपयोगी
मुंडकुर के अनुसार, साइकिल को एक घंटे तक पैडल करने पर नौ एम्पियर की बैटरी पूरी तरह से चार्ज हो जाती है। इससे 100 एलईडी लाइट छह घंटे तक जल सकती हैं। मुंडकुर अपने इस जनरेटर को और किफायती बनाने के लिए इसमें कुछ सुधार भी कर रहे हैं। उन्हें यकीन है कि जनरेटर से देश के विद्युत विहीन 96 हजार गांवों को रोशन किया जा सकता है।
कैसे बनाया
मुंडकुर ने एक पुरानी साइकिल का हैंडल, फ्रेम और चेन का इस्तेमाल कर इस पैडल जनरेटर को तैयार किया है। इसके पिछले पहिए के साथ एक अल्टरनेटर लगाया गया है, जो फाइबर ग्लास से बना है। अल्टरनेटर में तांबे के तारों की क्वाइल लगी हुई है। इस पहिए को धातु की दो डिस्क के बीच रखा गया है, जिनमें चुंबक लगे हुए हैं।