पटना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि गौरवशाली अतीत के बावजूद विकास के मामले में बिहार के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा। भारत को यदि विकसित राष्ट्र बनना है तो बिहार का विकास अपरिहार्य है। मंगलवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद, डा.शकील अहमद, सांसद शिवानंद तिवारी, शत्रुघ्न सिन्हा, माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, मुचकुंद दुबे, पुलिस महानिदेशक आनंद शंकर, रजी अहमद ने भी अपनी बात रखी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वे समावेशी न्याय के पक्षधर हैं। न्याय के साथ विकास की मान्यता रखते हैं। लेकिन आजादी के बाद से ही बिहार को उसकेवाजिब हक से वंचित रखा गया। बिहार की जीवटता के आगे सब नतमस्तक हैं। लोग यहां के छात्रों के कौशल से घबराते हैं और उनके साथ भेदभाव किया जाता है, आगे बढ़ने से उन्हें रोका जाता है। पहली पंचवर्षीय योजना से अब तक बिहार में प्रति व्यक्ति निवेश कमतर रहा। मुख्यमंत्री बोले, वे आशान्वित हैं। बिहार बदल रहा है और प्रदेश का विकास गांव की पगडंडियों पर साइकिल चलाती लड़कियों, पंचायत प्रतिनिधियों में महिलाओं की भागीदारी के रूप में भी महसूस किया जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि जनता के नाम पर जो लोग राजनीति करते हैं,वे जहां भी हैं,अपने हिस्से का योगदान करें। हम सबने 2015 तक विकसित बिहार बनाने का संकल्प लिया है।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने कहा कि बिहार के साथ बड़ी बिडम्बना है। उत्तर बिहार लगातार बाढ़ का कहर झेलता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों के बीच एकमत की जरूरत है। हमारा किसी राज्य से विरोध नहीं है, लेकिन बिहार के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है। जात-पात के बंधन को तोड़कर एकजुट हुए बिना बिहार का विकास संभव नहीं है। उन पर यह आरोप बेबुनियाद है कि वे अगड़ी जाति के लोगों को बटाईदारी कानून के नाम पर फोन कर भड़का रहे हैं। लालू ने कहा कि भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से पीछे हटने के कारण अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मंशा संदिग्ध हो गयी है। लालू ने कहा कि अपने रेल मंत्रित्वकाल में उन्होंने 52 हजार करोड़ के निवेश का प्रबंध बिहार के लिए किया।
कांग्रेसी नेता डा.शकील अहमद ने कहा कि कांग्रेस के कार्यकाल में अविभाजित बिहार में कई औद्योगिक उपक्रम लगाये गये। लेकिन 67 के बाद की राजनीतिक अस्थिरता ने बिहार के विकास को अवरुद्ध किया। चुनाव में जातिगत आधार पर वोट जुटाने का काम करनेवाले नेताओं ने सूबे का अहित किया है।
भाकपा माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार अपनी ही घोषणाओं से मुंह मोड़ रही है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि आखिर नीतीश कुमार भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से क्यों इनकार कर रहे हैं? दीपांकर ने कहा कि बिहार के पास भूमि,जल और मानव श्रम की विपुलता है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण ही आयोग की रिपोर्ट लागू करने से सरकार मुकर रही है। ऐसे में कौन सा विकास होगा और फिर न्याय के साथ विकास की अवधारणा कहां रह जायेगी?
align="justify"> सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा सरकार के कामकाज को और भी पारदर्शी बनाना जरूरी है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कंकड़बाग में एक नाला छह साल से बन रहा है। 18 करोड़ के इस नाले की लागत अब 25 करोड़ हो गयी है। बोले, इंसाफ का होता हुआ दिखना भी जरूरी है। वंशवाद,जातिवाद,भ्रष्टाचार और कुशासन से मुक्ति जेपी का मिशन था। यह मिशन आज भी अधूरा है। उन्होंने प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह के कामकाज की तारीफ की।
शिवानंद तिवारी ने कहा कि पिछड़े राज्यों को मोर्चा बनाकर अपने हक की लड़ाई लड़नी होगी। राष्ट्रीय आपदा के समय भी बिहार को अपेक्षित केंद्रीय सहायता नहीं दी जाती है। श्री तिवारी ने कहा कि लालू प्रसाद ने सत्ता और शक्ति का दुरुपयोग किया। आने वाले समय में इनका (लालू का) भी अपराध लिखा जाएगा। लालू प्रसाद ने सामाजिक न्याय को जहां पहुंचाया, नीतीश कुमार ने उसे और आगे बढ़ाया।
ख्यात गांधीवादी रजी अहमद ने कहा कि विकास के नेहरू माडल ने देश को नुकसान पहुंचाया। देश में 22 करोड़ नौजवान बेकार हैं। मुचकुंद दुबे ने कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति के मात्र दस प्रतिशत छात्र ही कालेज की पढ़ाई कर पाते हैं। सबके लिए समान शिक्षा से ही कोई राष्ट्र विकसित हो पाएगा। पुलिस महानिदेशक आनंद शंकर ने आत्म दृष्टि और न्यायोचित उपार्जन पर बल दिया। इस बात का आह्वान उन्होंने किया कि लोग अपनी कमाई का दस फीसदी दूसरे की जरूरत पूरा करने में खर्च करें। इस कार्यक्रम का आयोजन हिन्दुस्तान ने किया था।