मणिपुर में एक सत्याग्रह के नौ साल


अब से ठीक दो हफ्ते बाद 4 नवंबर 2009 को एक पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में एक सत्याग्रह के नौ साल पूरे होंगे। अब से ठीक दो हफ्ते बाद दुनिया की तारीख में चुपके से कहीं दर्ज होगा कि एक स्त्री पूरे नौ सालों से भूखी-प्यासी राजकीय हिंसा के खिलाफ अडिग होकर खड़ी है और उसका नाम  राजकीय हिंसा से गांधीवादी तरीके से लड़ने वाली महिला-शक्ति का एक प्रतीक बन गया है।साहस और संकल्प की इस अद्भुत मिसाल का नाम है ईरोम चानू शर्मिला और इरोम चानू शर्मिला लगातार नौ सालों से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट के विरोध में भूख हड़ताल पर है। बंदी शर्मिला के शरीर में भोजन की नलियों के सहारे कृत्रिम भोजन पहुंचाकर सरकार लगातार उसे जीवित रखने का प्रयास कर रही है।


ईरोम चानू शर्मिला फिलहाल इंफाल के पोरोम्पट स्थित जे एन इंस्टीट्युट मेडिकल साईंसेज के सिक्टुरिटी वार्ड में बंदी है। उसपर सरकार ने आत्महत्या के प्रयास करने का आरोप लगाया है। पिछले 22 सितंबर को शर्मिला को इंफाल के किमनेईंगनाग स्थित एडीशनल चीफ मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया था और उसकी न्यायिक हिरासत की अवधि अदालत ने दोबारा 15 दिनों के लिए बढ़ा दी । अदालत में पेश किए जाने और रिमांड पर लिए जाने का यह सिलसिला शर्मिला के साथ पिछले नौ सालों से बदस्तूर जारी है।

शर्मिला की रिहाई और आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट हटाने की मांग के  इर्द-गिर्द मणिपुरी महिलाओं का पूरा आंदोलन उठ खड़ा हुआ है। शर्मिला कनबा लूप और अन्य नागरिक संगठनों के साझे मंच तले पिछले एक साल से मणिपुर की महिलाओं ने अटूट भूख-हड़ताल की एक शृंखला चला रखी है। राष्ट्रीय कहलाने वाले मीडिया के समाचारों में कहीं कोई खबर नहीं छपती मगर जे एन इंस्टीट्युट ऑव मेडिकल साईंसेज के गर्ल्स हास्टल के सामने हर रोज भूख-हड़ताल में शामिल महिलाओं के बीच एक जत्था बढ़ जाता है। ईरोम शर्मिला की राह पर चलते हुए ये हड़ताली महिलाएं भी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट को वापस लेने के लिए आवाज बुलंद करती हैं।

आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट की बेरहमी से शर्मिला के सामना आज से नौ साल पहले 2002 के 2 नवंबर को हुआ था। एक दिन पहले यानी 1 नवंबर 2000 के दिन मणिपुर में सक्रिय एक उग्रवादी धड़े ने सेना के एक दस्ते पर बम पर फेंका था।बदले की कार्रवाई पर उतारु 8 वीं असम राईफल्स के जवानों ने मलोम स्थित एक बस स्टैंड पर अंधाधुन्ध फायरिंग की। इसमें दस निर्दोष लोग मारे गये। मरने वालों में 1988 की राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार जीतने वाली 18 वर्षीया सिनम चंद्रमणि और एक 62 साल की वृद्धा लेईसंगबम इबटोमी का नाम भी शामिल था। अगले दिन मणिपुर की अखबारों में हताहतों की हृदयविदारक तस्वीरें छपीं । इस घटना का शर्मिला पर गहरा असर पडा और 4 नंवबर 2000 के दिन से वह सेना को विशेषाधिकार देने वाले इस खास कानून के विरोध में आमरण अनशन पर बैठ गई।

मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि आर्म्ड फोर्सेंज (स्पेशल पावर) एक्ट(1958) पिछले 45 सालों में भारतीय संसद द्वारापास किया गया सबसे क्रूर कानून है।इस कानून के द्वारा फौजों को उपद्रवग्रस्त घोषित इलाकों में अपना ऑपरेशन मनमाने तरीके से चलाने की अकूत ताकत दी गई है ।यह कानून एक गैर-कमीशंड अधिकारी तक को शक के आधार पर या कानून व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर जबरिया तलाशी ही नहीं किसी पर भी गोली चलाने का अधिकार देता है। 

साल 1980 में मणिपुर सहित पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट लागू किया गया था। इस कानून के लागू किए जाने के बाद से अकेले मणिपुर में ही सरकार आंकड़ों के अनुसार 20 हजार से ज्यादा लोग सेना और अतिवादी समूहों की आपसी लड़ाई में फंसकर मारे गये हैं। दूसरे, यह कानून सूबे में अतिवादी समूहों पर लगाम कसने में नाकामयाब साबित हुआ है। साल 1980 में जब यह कानून लागू हुआ तो सूबे में महज अतिवादी समूह थे जबकि आज सरकार खुद बताती है कि ऐसे हथियारबंद समूहों की संख्या 25 से ज्यादा है।मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइटस् वॉच की रिपोर्ट के अनुसार इस साल मणिपुर में आर्मड् फोर्सेज एक्ट की आड़ में लोगों को बेरहमी से मारने या उन्हें अहवा करने की कई घटनाएं हुई हैं।

शर्मिला इरोम, आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट और मणिपुर में मानवाधिकार हनन पर विस्तृत जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक देखे जा सकते हैं।

http://www.e-pao.net/GP.asp?src=14..280909.sep09
http://www.e-pao.net/GP.asp?src=Snipp1..021009.oct09
http://www.e-pao.net/GP.asp?src=16..230909.sep09
http://www.tehelka.com/story_main23.asp?filename=Ne120906The_unlikely_CS.asp
http://www.hrdc.net/sahrdc/resources/armed_forces.htm

http://www.hrw.org/sites/default/files/reports/india0908web_0.pdf

http://www.hrw.org/en/news/2009/07/17/india-end-manipur-killings

 

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