आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में जारी बाढ़ से लाखों की तादाद में ग्रामीण गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं। बाढ़ की विभीषिका तो थमने का नाम नहीं ले रही है लेकिन इस विभीषिका से, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की गणना के लिए जो मानक प्रस्तावित भोजन का अधिकार विधेयक के संकल्प पत्र में सुझाये गए हैं, उनकी पोल जरुर खुल गई है। अकेले आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में ही बाढ़ ने २०० से ज्यादा लोगों की जान ले ली है और पच्चीस लाख लोग बेघर हो गए हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों के लगभग सभी किसान परिवार अपने ढोर-डंगर, फसल और खाद-बीज से हाथ धो चुके हैं। बाढ़ की विभीषिका का पूरा आकलन होना अभी बाकी है।
प्रस्तावित भोजन का अधिकार विधेयक के संकल्प पत्र के अनुसार मौजूदा बीपीएल कार्ड की वैधता पांच सालों के लिए तय की गई है। पांच सालों बाद मौजूदा बीपीएल कार्ड स्वतः रद्द माने जायेंगे। संभवतया संकल्प पत्र में यह मान लिया गया है कि पांच सालों तक गरीबी रेखा से नीचे रहने के बाद कोई परिवार अपने आप उससे ऊपर आ जायेगा। कर्नाटक और आंध्रप्रदेश की हालिया बाढ़ ने साबित किया है कि होता ठीक इसके उल्टा है, खासकर उन इलाकों में जहां बाढ़ सूखा, अतिवृष्टि या अनावृष्टि की घटनाएं लगातार हो रही हों।
बाढ़ और उसके बाद के परिदृश्य ने साफ कर दिया है कि प्राकृतिक आपदा की चपेट में आये इलाकों में लोगों को आहार की सुरक्षा प्रदान करने का काम नीति निर्माताओं की प्राथमिकताओं में होना चाहिए। इस आलोक में देखें तो संकल्प पत्र में कही गई यह बात कि गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों को पीडीएस के जरिए सस्ते दामों पर अनाज नहीं दिया जाएगा-हास्यास्पद जान पड़ती है।
संकल्प पत्र में यह भी कहा गया है कि नया कानून बनने पर आहार की सुरक्षा के मद्देनजर चलायी जा रही तमाम योजनाएं बंद कर दी जाएंगी। इसका सीधा मतलब है भोजन और पोषण से जुड़ी कई योजनाओं का खात्मा। बाढ़ की विभीषिका से यह बात प्रमुखता से उभरी है कि भोजन और पोषण से जुड़ी मौजूदा योजनाओं को चलते रहने दिया जाय ताकि समाज के वंचित तबकों सहित महिलाओं और बच्चों को कुपोषण की स्थिति से बचाया जा सके।
यदि बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, अतिवृष्टि और सुनामी जैसी घटनाओं से कोई संकेत मिलता है तो यही कि देश को देश को इन घटनाओं से हुई हानि से उबरने के लिए हर वक्त तैयार रहना होगा और इसका एक तरीका भोजन और पोषण की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
ताजा समाचारों के अनुसार कुरनूल और महबूबनगर में बाढ़ की विभीषिका कम हुई है मगर अब भी आंध्रप्रदेश के कृष्णा, गुंटुर और नलगोंडा जिले के सैकड़ों गांव बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं। बाढ़ के कारण आंध्रप्रदेश में लघु सिंचाई परियोजनाओं को नुकसान हुआ है साथ ही मवेशियों की बड़ी तादाद में हानि हुई है। अनुमान है कि बाढ़ से १२ हजार करोड़ रुपये की परिसंपत्ति की हानि हुई है।
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http://news.rediff.com/slide-show/2009/oct/05/slide-show-1-million-people-displaced.htm
http://in.news.yahoo.com/242/20091006/1334/tnl-floods-displace-over-18-lakh-people.html
http://in.news.yahoo.com/242/20091006/1334/tnl-floods-leaves-over-2-5-million-peopl.html
http://alertnet.org/thenews/fromthefield/222031/125475440582.htm