गन्ने को लेकर गतिरोध कायम रहने से उत्तर प्रदेश में चीनी की भारी कमी पड़ने की आशंका जताई जा रही है, जिससे इसकी खुदरा कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है।
चीनी की मौजूदा खुदरा दर 35 रुपये प्रति किलोग्राम है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की दरों की तुलना में लगभग दोगुनी है। मुश्किल यह है कि कम उत्पादन की स्थिति में चीनी की महंगाई और बढ़ेगी। इस आशंका की एक ठोस वजह भी है।
उत्तर प्रदेश में चीनी की सालाना खपत लगभग 50 लाख टन तक जा पहुंची है, जबकि इस वर्ष उत्पादन का स्तर करीब 35 लाख टन रहने का अनुमान है। ऐसे में 15 लाख टन चीनी कम पड़ेगी। बीते 23 अक्टूबर को राज्य सरकार ने पिछले वर्ष घोषित गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) में 25 फीसदी बढ़ोतरी की घोषणा की थी, जबकि किसान इसे 280 रुपये प्रति क्विंटल किए जाने की मांग पर अड़े हैं।
सरकार की ओर से घोषित एसएपी के मुताबिक गन्ने की सामान्य किस्मों के लिए 165 रुपये प्रति क्विंटल की दर रखी गई है, जबकि उच्च किस्मों के लिए यह दर 170 रुपये प्रति क्विंटल है। मामूली किस्म के गन्ने की दर 162.50 रुपये प्रति क्विंटल है। प्रदेश में उपजने वाला लगभग 80 प्रतिशत गन्ना सामान्य किस्म के होते हैं।
किसान इस बात पर अड़े हैं कि वे मौजूदा दरों पर अपना गन्ना नहीं बेचेंगे। उधर चीनी मिलों ने मांग रखी है कि एसएपी और केंद्र सरकार की ओर से घोषित उचित और लाभकारी कीमतें (एफआरपी) 130 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर लाया जाए।
किसानों ने एक कदम आगे बढ़ते हुए यह मांग रख दी है कि चीनी मिलों को कच्ची चीनी आयात करने की अनुमति भी नहीं दी जाए। इन मसलों का कोई हल नहीं निकाले जाने की वजह से निकट भविष्य में गन्ने की पेराई शुरू होने की उम्मीद नहीं है, जबकि इसमें पहले ही काफी देरी हो चुकी है।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन (आरकेएमएस) के वी एम सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘चीनी मिलें कच्ची चीनी के लिए 23-27 रुपये प्रति किलोग्राम चुका रही हैं, इससे कीमत करीब 32 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाती है, जबकि 10 किलोग्राम गन्ने से 1 किलोग्राम चीनी का उत्पादन होता है।’
इन मसलों के तूल पकड़ने से प्रदेश में चीनी उत्पादन कम होने की तो आशंका है ही, इसके अलावा कानून व्यवस्था से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं। खास कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश इस मामले में ज्यादा संवेदनशील है। उल्लेखनीय है कि गन्ना कीमतों का मसला उलझने और किसानों को फसल की कीमत मिलने में देरी होने के कारण पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रदेश में गन्ना रोपाई क्षेत्र और चीनी के उत्पादन में कमी आई है।
वर्ष 2007-08 में गन्ना रोपाई क्षेत्र 28 लाख हेक्टेयर था, जो चालू पेराई सीजन में घटकर 17.9 लाख हेक्टेयर रह गया। इस दौरान गन्ने की उपलब्धता में भी खासी कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2007-08 में जहां 16 करोड़ टन गन्ने की आपूर्ति की गई थी वहीं इस साल केवल9.8 करोड़ टन गन्ना उपलब्ध है।
जाहिर है इन वर्षों में चीनी उत्पादन में भी गिरावट आई। वर्ष 2008-09 में केवल 40 लाख टन चीनी उत्पादन की उम्मीद है, जबकि वर्ष 2008 में 73 लाख टन और वर्ष 2007 में 85 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
भाजपा करेगी राज्यव्यापी प्रदर्शन
गन्ना किसानों को उत्तर प्रदेश सरकार से 300 रुपये प्रति क्विंटल का दाम दिलवाने की मांग को लेकर भाजपा 5 नवंबर को राज्यव्यापी प्रदर्शन करेगी। राजधानी में इस प्रदर्शन में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी सहित कई बड़े नेता शामिल होंगे। इससे पहले भाजपा की कई जिला इकाइयां पूर्वी उत्तर प्रदेश में विरोध आंदोलन की शुरुआत कर चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता हृदय नारायण दीक्षित के अनुसार इस समय सूबे में किसान आत्मदाह कर रहे हैं और अपनी खड़ी फसल खेतों में ही जलाने को मजबूर हैं पर सूबे की मुखिया मायावती ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखने के अलावा कोई काम नहीं किया है। दीक्षित ने कहा कि चीनी की बढ़ी कीमतों को देखते हुए किसानों की 300 रुपये प्रति क्विंटल की मांग एकदम सही है।