भोपाल. अगर आप सोच रहे हैं कि पानी की बर्बादी को रोककर आप जल संरक्षण में पूरा योगदान दे रहे हैं तो आप गलत हैं। जरा इन आंकड़ों पर नजर डालिए- ब्रैड की एक स्लाइस के उत्पादन में 40 लीटर पानी खर्च होता है, एक कप कॉफी के बनने में 140 लीटर पानी लग जाता है।
इसी तरह आप जो जींस पहनते हैं वह 2800 लीटर पानी खर्च कर बनती है और दो लीटर सॉफ्ट ड्रिंक के साथ आप अप्रत्यक्ष रूप से 550 लीटर पानी गटक जाते हैं। आपके द्वारा इनमें से किसी की भी बर्बादी आपके वाटर फुटप्रिंट को बढ़ाती है।
किसी वस्तु के उत्पादन में खर्च होने वाले पानी की मात्रा को उस वस्तु का वाटर फुटप्रिंट कहते हैं। इसी तरह एक व्यक्ति द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में खर्च होने वाले पानी को उस व्यक्ति का वाटर फुटप्रिंट कहा जाता है।
वैश्विक स्तर पर जल के बेहतर उपयोग के लिए नीदरलैंड के टवेंट विश्वविद्यालय और यूनेस्को ने मिलकर एक वाटर फुटप्रिंट नेटवर्क की स्थापना की है। इसके अनुसार भारत का प्रत्येक व्यक्ति प्रतिवर्ष करीब 9,80, 000 लीटर पानी खर्च कर देता है। हालांकि यह विश्व के औसत वाटर फुटप्रिंट (12,43,000 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष) से कम है लेकिन देश की बढ़ती हुई जनसंख्या और घटते जल स्तर को देखते हुए यह चिंता का विषय है।
भूजल वैज्ञानिक सुनील चतुर्वेदी का कहना है कि भोपाल जैसे बड़े शहर में एक औसत व्यक्ति सैकड़ों गैलन पानी खर्च कर देता है। इससे पहले की हमारे प्राकृतिक जल स्रोत सूख जाएं, वाटर फुटप्रिंट को नियंत्रित करने की जरूरत है। घरों में जल का बेहतर प्रबंधन कर उसे आखिरी स्तर तक रिसायकल करना चाहिए। इसके अलावा दैनिक उपयोग की वस्तुओं का भी दुर्पयोग नहीं होना चाहिए। हम ऐसी चीजों को बढ़ावा दें जिन्हें रिसायकल किया जा सके।