आदेश को ठेंगा

जयपुर। सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देशों की भी चिंता न करते हुए राजस्थान सरकार ने खनन के लिए सौ से ज्यादा ठेके जारी कर दिए। अरावली की पहाड़ियों पर चल रहे खनन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ निर्देश दिए हैं और इस आदेश के आने के बाद भी सरकार द्वारा सौ से अधिक माइनिंग प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दिए जाने की बात सामने आई है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश और पर्यावरण मंत्रालय की सहमति के बिना ही राजस्थान सरकार ने कई माइनिंग प्रोजेक्ट्स की लीज रीन्यू कर दी है आर इनमें से अधिकतर ऐसे माइनिंग प्रोजेकट हैं जो नोटिफाइड एरिया में हैं यानी जहां ऐसे कामों को अनुमति दी ही नहीं जा सकती।

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के लखनऊ क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा तैयार की गई रिपार्ट में बताया गया है कि राजस्थान में अरावली पहाड़ियों पर खुदाई के काम पर सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2005 के आदेश के तहत पूरी तरह रोक लग जाना चाहिए थी और यह रोक 16 सिंबर 2002 से नई और लाइसेंस रीन्यू के लिए दी गई सभी योजनाओं पर लागू होना चाहिए थी।

इस आदेश के बावजूद राजस्थान माइंस एंड जियोलॉजी डिपार्टमेंट ने 51 नई खुदाई परियोजनाओं को मंजूरी दे दी और 53 लीज को रीन्यू कर दिया। इस विभाग के पास 157 माइंस की लीज के आवेदन अभी पड़े हुए हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने ऐसी 261 माइंस की सूची बनाई है जिन्हें 16 दिसंबर 2002 के बाद या तो नई लीज लेना थी या इसे रीन्यू कराना था। एक कंजर्वेटर स्तर के अफसर ने इस बारे में बताया कि अधिकतर माइंस में काम जारी है।

जिन 53 लीज को रीन्यू किया गया है उनमें से 50 वन क्षेत्रों में हैं और सिर्फ एक ही नोटिफाइड एरिया से बाहर है। जिस तरह इन माइंस में काम चल रहा है वह न सिर्फ फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट का उल्लंघन हैं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी खुला उल्लंघन हैं। यहां तक कि 29 मामलों में तो एन्वॉयरमेंटल क्लियरेंस भी नहीं लिया गया जो एन्वॉयरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट का खुला उल्लंघन है। इस बारे में यह रिपोर्ट भी चौंकाने वाली है कि जिन 156 मामलों में आवेदन अभी पेंडिंग पड़े हैं उनमें से 95 में बिना स्वीकृति के ही काम शुरू कर दिया गया है और इनमें से भी 41 तो नाटिफाइड एरिया के जंगलों में चल रही माइंस हैं।

इन्हें फर्क नहीं पड़ता : हम इस बात की जांच करेंगे कि आखिर कैसे इन्हें अनुमति दे दी गई और नई माइंस की लीज कैसे इश्यू कर दी गई। वहीं इस बारे में माइंस डिपार्टमेंट के प्रिसीपल सेकेट्ररी गोविंद शर्मा कहते हैं कि मुझे ऐसी किसी रिपोर्ट की जानकारी नहीं है और यह मामला वन विभाग का है। – रामलाल जाट, वन एवं खनन मंत्री राजस्थान

 

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