चंडीगढ़। देश की पुलिस प्रणाली को कठघरे में खड़ा करता एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। हालाकि न्याय पालिका ने ही इस मामले में आखिरकार न्याय दिया, लेकिन चूक तो यहा भी हुई थी। जीते जागते व्यक्ति की हत्या में पुलिस ने पाच लोगों को आरोपी बना दिया।
पुलिस द्वारा पेश गलत सबूतों के आधार पर निचली अदालत ने आरोपियों को दोषी मान उम्र कैद की सजा भी सुना दी। 13 साल तक लोगों की निगाहों में हत्यारे बने रहे इन लोगों को बुधवार को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को प्रत्येक पीड़ित को 20 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया। मामले में देरी न हो इसके लिए हाईकोर्ट के जस्टिस एमएस गिल व जस्टिस जितेंद्र चौहान की खंडपीठ ने राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वह हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास एक करोड़ रुपये जमा करवाए ताकि 30 दिन के भीतर मुआवजा दिया जा सके। हाईकोर्ट ने इस मामले के जाच अधिकारी एसआई सर्बजीत सिंह, एएसआई दर्शन सिंह, बरनाला के तत्कालीन एसपी व डीएसपी [दोनों सेवानिवृत] को दोषी मानते हुए इनके खिलाफ मामला दर्ज कर जाच करने के आदेश भी जारी कर दिए।
इसके साथ ही कोर्ट ने जगसीर सिंह [जिसकी हत्या का आरोप लगा] के परिवार के उन सदस्यों के खिलाफ भी मामला दर्ज करने का आदेश दिया गया है जिन्होंने न सिर्फ एक शव की शिनाख्त जगसीर के रूप में की बल्कि अदालत में झूठी गवाही भी दी। जगसीर सिंह अपने घर से भागकर किसी और शहर में रह रहा था। क्या है मामला पुलिस रिकार्ड के अनुसार बरनाला निवासी जगसीर सिंह की 1996 में नछतर सिंह, शेरा सिंह, अमरजीत सिंह, निक्का सिंह व सुरजीत सिंह ने हत्या कर दी थी। निचली अदालत ने 2001 में इन सभी को कसूरवार करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी।
बचाव पक्ष के वकील के अनुसार पंजाब पुलिस ने इन निर्दोर्षो को सजा दिलाने के लिए यह दावा पेश किया था कि पुलिस ने जो हथियार बरामद किए है, उन पर मृतक जगसीर सिंह का खून लगा हुआ है। इन पाच लोगों को पुलिस ने 5 दिन तक अवैध हिरासत में रख कर लगातार टार्चर किया। इनके शरीर से खून निकाल हथियारों पर लगाया और कहा कि यह खून जगसीर का है। पुलिस ने खून को जगसीर सिंह के ब्लड ग्रुप से मिलाने की जहमत नही उठाई।