साल २००५ से २००७ के बीच दुनिया में गेंहूं, चावल और तेलहन के दामों में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है और इन चीजों के दामों में साल २००८ की पहली छमाही में भी बढ़ोतरी जारी रही।ओईसीडी(आर्गनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगामी दस सालों में चावल-गेहूं सहित बाकी अनाज और तेलहन में पिछले दशक के मुकाबले १० से ३५ फीसदी की बढ़ोतरी होगी। इसका सीधा मतलब है गरीब जनता के लिए खाद्यान्न की कमी और जन-सामान्य की खरीदारी की क्षमता में गिरावट।
खाद्यान्न की कीमतों में हाल की बढ़ोतरी के एक से ज्यादा कारण हैं। एक तो अनाज और तेलहन की उपज अपेक्षा से कम हुई जबकि इनकी मांग में इजाफा हुआ। खेतिहर उत्पाद के बाजार में चलंता पूंजी का बाजार बढ़ा जबकि खाद्यान्न का भंडार अपेक्षाकृत ठहरा रहा। इसके अतिरिक्त खाद्यान्न उत्पादन के लिहाज से महत्वपूर्ण माने जाने वाले विश्व के कई इलाके सूखे की चपेट में आये और जैवईंधन(बायोफ्यूल) के उत्पादन के लिए भी खाद्यान्न का इस्तेमाल बढ़ा है। इन सबके बीच विश्व में तेल के दाम चढ़े और अमेरिकी मुद्रा का अवमूल्यन हुआ। इन सारे कारणों के मिले जुले प्रभाव से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्रास्फीति बढ़ी।
साल २००८ के दिसंबर के बाद से भी खाद्यपदार्थों के दाम बढ़े हैं। साल २००८ के दिसंबर से २००९ के जून के बीच अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का मूल्य सूचकांक लगभग २० फीसदी उछला है। हाल के दिनों में खाद्य-पदार्थों के दामों में जो बढ़ोतरी हुई है उसके कई कारण हो सकते हैं। फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन ने फूड आऊटलुक (जून २००९) में बताया है कि साल २००९-१० में खाद्यान्न के उत्पादन में कमी आएगी। दक्षिण अमेरिका में तेलहन का उत्पादन इस साल घट गया है। मौसम की मार से इस साल सोया की फसल भी अपेक्षा के अनुरुप उत्पादन नहीं दे पाएगी। जानकारों का यह भी कहना है कि तेलहन और मक्के आदि का बड़े पैमाने पर जैवईंधन तैयार करने के लिए इस्तेमाल हो रहा है और इससे खाद्यान्न की कीमतों में इजाफे का चलन जारी है।
भारत में मुद्रा स्फीति को मापने के लिए थोक मूल्य सूचकांक को आधार बनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो स्थिति है उससे अलग भारत में थोक मूल्य सूचकांक कुछ और ही बता रहा है। इस साल मार्च महीने के आखिर में थोक मूल्य सूचकांक में ०.८ फीसदी की गिरावट आई और जून महीने के आखिर तक यह सूचकांक ऋणात्मक वृद्धि दिखाने लगा। दरअसल साल २००८-०९ की पहली छमाही में चीजों के दाम बड़ी तेजी से बढ़े थे और थोक मूल्य सूचकांक में ऋणात्मक वृद्धि मूल्यों की सापेक्षिकता का नतीजा है।
द नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन ने साल २००१ में ही सुझाव दिया था कि सभी तरह के उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों को एक साथ मिलाकर एक समाहारी मूल्य सूचकांक बनाया जाय ताकि मूल्यों में उतार चढाव की स्थिति की सटीक गणना की जा सके।
एक तरफ सूखे से उत्पन्न खाद्यान्न की कमी की समस्या है तो दूसरी तरफ खाद्यान्न के बढते दामों से उपजी चिन्ता कि गरीब जनता जरुरत भर काअनाज खरीद भी पाएगी या नहीं। इसे देखते हुए सरकार को जिलावार खाद्यान्न के वितरण की तुरंत व्यवस्था करनी होगी और जिलावार खेती के लिए भी विशेष योजनाएं बनानी होंगी।
नीचे कुछ लिंक्स दिए जा रहे हैं। इनमें आपको खाद्य-पदार्थों के बढ़ते मूल्य और उसके इर्द-गिर्द चलने वाली बहसों की विस्तृत जानकारी मिलेगी।
http://www.ifpri.org/sites/default/files/publications/ib57.pdf
http://www.ifpri.org/sites/default/files/publications/pr20.pdf
http://www.oecd.org/dataoecd/54/42/40847088.pdf
http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/6PSMMDJU09.pdf
http://www.thehindu.com/2009/09/08/stories/2009090860341400.htm
http://macroscan.com/fet/aug09/fet210809Drought.htm
http://www.indiatogether.org/2009/may/eco-inflation.htm
http://www.reliefweb.int/rw/rwb.nsf/db900sid/MUMA-7V68AA?OpenDocument