करनाल. मिड डे मील के लिए अध्यापकों को राशन राशि की दरकार है। मार्च माह के बाद से मिड डे मील के खातों में एक पैसा नहीं भेजा गया है। हालात ये है कि पिछले पांच माह से उधार के राशन से मिड डे मील पकाया जा रहा है। प्रदेश सरकार ने प्राथमिक स्कूलों के बाद पिछले साल से मिडल स्कूलों में भी मिड डे मील योजना शुरू की हुई है।
योजना के तहत जहां पहले हर तरह का राशन विभाग की ओर से सप्लाई कराया जाता था, लेकिन चालू वर्ष से योजना में फेरबदल कर दिया गया। गेहूं और चावल सरकार की ओर से सप्लाई किए जाते हैं, जबकि शेष सभी राशन सामग्री स्कूल टीचरों को स्वयं खरीदनी होती है।
इसके लिए विभाग ने स्कूलों में प्रिंसिपल के नाम से खाते खोले हैं, जिसमें प्रतिमाह मिड डे मील के लिए पैसे भेजने की बात कही थी, लेकिन योजना के शुरू होने के बाद पहली बार जुलाई माह में जनवरी से मार्च तक के खर्च की राशि भेजी गई थी। इसके बाद आज तक मिड डे मील के नाम पर एक पैसा नहीं भेजा गया। मिड डे मील के खाते खाली पड़े हैं।
दूसरी ओर अध्यापकों को सख्त निर्देश हैं कि बच्चों को मिड डे मील अवश्य परोसा जाए। विभाग के इस दबाव में संबंधित अध्यापकों को दुकानों से उधार में खाद्य सामग्री उठानी पड़ रही है, लेकिन अब दुकानदार भी आनाकानी करने लगे हैं।
मिड डे मील के लिए पैसा आ चुका है। एक दो दिनों में रिलीज कर दिया जाएगा, जिससे किसी किस्म की परेशानी नहीं रहेगी। – सरिता भंडारी, डीईईओ करनाल
अब तो गेहूं-चावल भी होने लगे खत्म
स्कूलों में स्पेशल भेजा जाने वाला गेहूं-चावल का स्टाक भी अब खत्म होने को है। यदि समय से स्कूलों में गेहूं और चावल भी नहीं पहुंचे तो फिर दुकानदारों से उधार में लिए जाने वाला सामान भी मिड डे मील पकाने में पर्याप्त नहीं रहेगा।
विभाग ने छुड़ाया अपना पिंड
हरियाणा प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला प्रवक्ता दीपक गोस्वामी, सुनील कुमार, ऋषि कुमार और नरेंद्र चोपड़ा ने कहा कि विभाग ने मिड डे मील नाम की बीमारी को अपने से उतारकर अध्यापकों पर डाल दिया है। जब तक राशन सस्ता था तब तक स्वयं राशन सप्लाई किया अब महंगाई बढ़ गई तो सारी व्यवस्था अध्यापकों के सिर मढ़ दी गई है।