इंदौर-जबलपुर. मप्र हाई कोर्ट जबलपुर के फैसले से महू की जनता को राहत मिल गई है। चीफ जस्टिस ए.के. पटनायक व जस्टिस के.के. लाहोटी की युगल पीठ ने अपने फैसले में महू की सारी जमीन केंद्र की नहीं मानी। होलकर स्टेट या मध्यभारत राज्य द्वारा रक्षा के उद्देश्य से मिल्रिटी को जितनी जमीन दी गई, संविधान लागू होने के बाद से कानूनन उतनी ही जमीन केंद्र की हो सकती है और शेष जमीन राज्य शासन की।
एसोसिएशन ऑफ रेसीडेंट्स ऑफ महू द्वारा लगाई याचिका का निराकरण करते हुए कोर्ट ने फैसला दिया। याचिका में वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने जानना चाहा था- महू की जमीन केंद्र की संपत्ति है या नहीं। श्री माथुर ने सन 1818 में मंदसौर के बारे में हुए समझौते का उद्धरण दिया।
महाराजा होलकर ने सुरक्षा के लिए अंग्रेजों को महू में फौज रखने के लिए मंजूरी दी थी। 15 अग. 1947 को ब्रिटिश सरकार ने महाराजा होलकर को महू वापस कर दिया। याचिका में कहा गया था कि मिल्रिटी एरिया में जो विकास होंगे वह केंद्र सरकार करेगी किंतु शेष जमीन राज्य शासन की है और विकास भी राज्य शासन ही करेगा। इसलिए मिल्रिटी एरिया को छोड़कर शेष जमीन सेना के अधिकार क्षेत्र से बाहर की जाए।
केंद्र के अधिवक्ता बीएल पावेचा एवं विनय झेलावत ने आपत्ति ली कि महू की जमीन राज्य शासन की नहीं हो सकती। पूरा महू केंद्र का है। अन्य तर्क यह रखे कि याचिका हाई कोर्ट के बजाए सुप्रीम कोर्ट में लगाई जाना थी क्योंकि आर्टिकल 262 के अनुसार इस तरह की याचिका सुनने का अधिकार हाई कोर्ट को नहीं है। इस बारे में हाई कोर्ट में पहले भी कई याचिकाएं लग चुकी हैं। हाई कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर कर सकता। एक तर्क यह भी था कि संस्था के पदाधिकारियों ने अपनी जमीन रिज्यूम होने के कारण याचिका लगवाई है। इस कारण यह निजी हित याचिका है जनहित की नहीं। दोनों पक्ष सुनने के बाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिवक्ताओं की आपत्तियां खारिज करते हुए कहा कि महू की सारी जमीन केंद्र की नहीं हो सकती।
फैसले का असर
महू की जनता: भूमि स्वामित्व और निर्माण मामलों में महू की आम जनता को आसानी होगी।
राज्य सरकार : अब राज्य सरकार बगैर किसी बाधा के विकास कार्य करवा सकेगी। अब तक केंद्र सरकार से अनुमति लेना पड़ती थी।
सेना: 26 जन. 1950 के पहले सेना को जितनी जमीन दी गई थी अब सिर्फ उतनी ही जमीन सेना के अधिकार क्षेत्र में होगी। (एडवोकेट संजय अग्रवाल के मुताबिक)