भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया जाता रहा है।
भारत में १९५क्-५५ में 152 किलो खाद्यान्न प्रति व्यक्ति उपलब्ध था। जो 1989-92 में १७७ किलो प्रति व्यक्ति हो गया, लेकिन तब से घटकर वर्तमान में यह घटकर 155 किलो प्रति व्यक्ति रह गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति कैलोरी ग्रहण करने की प्रतिदिन की औसत दर जो १९७२-७३ में २२६६ किलो कैलोरी थी, घटकर १९९९-२क्क्क् में 2149 किलो कैलोरी रह गई है। लगभग तीन चौथाई लोग २४क्क् किलो कैलोरी से भी कम उपभोग कर पा रहे हैं। ये दोनों बिंदु संकेत देते हैं कि वास्तविक खाद्यान्न उत्पादन आबादी की बढ़ोत्तरी से समायोजन नहीं कर पाया है। आबादी १.९ प्रतिशत की दर से बढ़ी है तो खाद्यान्न उत्पादन दर १.७ प्रतिशत की दर से घटी है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जनता की क्रय शक्ति विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थो की लागत के साथ कम हुई है।
कृषि पर दी जाने वाली सब्सिडी में जल और उर्वरक के अधिकाधिक उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया गया है, इसने भूमि की उर्वरा शक्ति को नुकसान पहुंचाया है। सुरक्षित खाद्य भंडार को संग्रहित करने की लागत भी बेतहाशा बढ़ी है। भारत शासन द्वारा बनाई गई खाद्य सुरक्षा योजनाएं बुरी तरह विफल रही हैं।
यद्यपि भारत विश्व की दूसरी सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था हो सकती है लेकिन मंजिल अब भी बहुत दूर है क्योंकि भुखमरी को दूर करना सबसे बड़ी समस्या है और विश्व में भारत को इसमें ९४वां स्थान मिला है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (विश्व भुखमरी सूचकांक) में हाल ही में जारी अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्था (आईएफपीआरआई) के विश्व भुखमरी सूचकांक -2007 में भारत को 118 देशों में 94वें स्थान पर रखा गया है। भारत का सूचकांक अंक 25.03 है, जो वर्ष 2003 (25.73) के मुकाबले कुछ ही बेहतर हुआ है। पाकिस्तान ने 22.70 सूचकांक अंकों के साथ 88वां स्थान लेकर भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है। दक्षिण एशिया में केवल बांग्लादेश (28.40) की स्थिति ही भारत से खराब है। आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे भारत की अर्थव्यवस्था करीब आठ फीसदी की वृद्धि दर से मजबूत जरूर हो रही है, लेकिन कुपोषण और भुखमरी के मामले में देश की स्थिति दक्षिण एशिया में सिर्फ बांग्लादेश से बेहतर है।
किसकी क्या स्थिति :
सूची में 42.37 सूचकांक अंकों के साथ अफ्रीकी देश बुरुंडी अंतिम स्थान पर है, जबकि 0.87 अंक के साथ लीबिया ने पहला स्थान प्राप्त कर सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। भारत उन देशों के करीब भी नहीं पहुंच पाया है, जिनसे वह अपनी तुलना करता है। ब्राजील (4.06), रूस (2.33) और चीन (8.37) का स्तर भारत से कहीं बेहतर है। संस्था की रिपोर्ट मेंबताया गया है कि पिछले कुछ सालों में भारत में कृषि क्षेत्र का आर्थिक विकास अन्य क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा पिछड़ गया है। इस वजह से ग्रामीण इलाकों में गरीबी और भुखमरी खत्म नहीं हो सकी है।
निचली जातियां लगातार भेदभाव का शिकार हो रही हैं, जिसके चलते वे शिक्षा और बेहतर काम से महरूम हैं। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में महिलाओं का पोषण स्तर कम है, इसलिए वे अधिकतर कम वजन के बच्चों को जन्म देती हैं। बच्चों को भी उनकी उम्र के हिसाब से पोषक आहार नहीं मिल पाता। दक्षिण एशियाई महिलाओं में शिक्षा की कमी और समाज में उनके निम्न स्थान को इसकी मुख्य वजह बताया गया है।
बेहाल विश्व
>> भूख और गरीबी के कारण रोजाना 25 हजार लोगों की मौत हो जाती है।
>> 85 करोड़ 40 लाख लोगों के पास पर्याप्त खाना नही है, जो कि यूएस, कनाडा और यूरोपियन संघ की जनसंख्या से ज्यादा है।
>> 90 के दशक में इसमें 1.80 करोड़ लोग बढ़े।
>> दक्षिणी एशिया में 524 लाख लोग भुखमरी में जीवन बिता रहे हैं, जो कि आस्ट्रेलिया और यूसएस की जनसंख्या के बराबर है।
>> भुखमरी के शिकार लोगों में 60त्न महिलाएं हैं।
>> दुनिया भर में भुखमरी के शिकार लोगों में प्रतिवर्ष 40 लाख लोगों का इजाफा हो रहा है।
>> हर पांच सेकंड में एक बच्च भूख से दम तोड़ता है।
>> 18 वर्ष से कम उम्र के लगभग 35.8 से 45.0 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं।
>> विकासशील देशों में हर साल पांच वर्ष से कम आयु के औसतन 10 करोड़ 90 लाख बच्चे मौत के शिकार बन जाते हैं। इनमें से ज्यादातर मौतें कु पोषण और भुखमरी जनित बीमारियों से होती हैं।
>> कुपोषण संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय आर्थिक विकास व्यय 20 से 30 अरब डॉलर प्रतिवर्ष है।
>> विकासशील देशों में चार में से एक बच्च कम वजन का है। यह संख्या करीब 1 करोड़ 46 लाख है।
>> डब्ल्यूएफपी ने वर्ष 2006 में 71 देशों के 20.2 मिलियन बच्चों को स्कूल में या घर पर भोजन उपलब्ध करवाया है।
>> बढ़ती भुखमरी को रोकना कृषि विकास और ग्रामीण विकास पर ध्यान दिए बिना संभव नहीं है।
>> डब्ल्यूएफपी अपनी स्थापना (1962) से अब तक लोगों को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए 30 अरब डॉलर से अधिक राशि खर्च कर चुका है।
>> डब्ल्यूएफपी ने अपना सबसे बड़ा ऑपरेशन सूडान में चलाया, जिसके तहत 6 करोड़ 1 लाख लोग लाभान्वित हुए।
>> वर्ष 2006 में डब्ल्यूएफपी आपातकालीन परिस्थितियों में टनों खाद्यान्न सामग्री सड़क, वायु और चल मार्ग के जरिए विभिन्न देशों में पहुंचा चुका है।