एक नजर में
*गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारें बांध की ऊंचाई बढ़ाना चाहती हैं मगर सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि पहले हर विस्थापित का पुनर्वास हो
*बांध ने कुल करीब दो लाख लोगों को प्रभावित किया जिनमें से आधे से ज्यादा आज भी बेघरबार हैं
*मध्य प्रदेश सरकार का कहना है कि उसके पास विस्थापितों को देने के लिए जमीन नहीं फिर भी वो सबके पुनर्वास का दावा कर रही
है
*सरकार ने विस्थापितों से नियत माप वाली महंगी जमीन सस्ते में खरीदने को कहकर एक बहुत बड़े घोटाले की आधारशिला रखी है दलालों द्वारा फर्जी जमीन खरीदी-बेची जा रही है जबकि जेल में विस्थापितों को जाना पड़ रहा है
*बांध से अप्रभावित किसानों को जबरन विस्थापित कर उनकी जगह बांध-प्रभावितों को बसाया जा रहा है
*सरल ग्रामीण समाज और अर्थव्यवस्था पर नकद मुआवजे के तमाम दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं दस साल पहले अपने सारे खेत पानी की भेंट चढ़ जाने के बाद से ही 65 वर्षीय अली बाई एक टापूनुमा पहाड़ी पर बांस की टूटी-फूटी झोपड़ी में रहती आ रही हैं. दस्तावेजों की मानें तो उनका पुनर्वास कब का किया जा चुका है, मगर सच्चाई ये है कि न सिर्फ उनकी मुआवजे की ज्यादातर राशि धोखाधड़ी का शिकार हो गई बल्कि जल्द ही उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है. मगर वो अकेली नहीं हैं.
नर्मदा घाटी में खेले जा रहे एक नये कपटपूर्ण खेल के चलते यहां ऐसा होना आज एक-दो नहीं बल्कि हजारों लोगों की नियति बन चुका
है. नगद मुआवजा पाने को बेचैन विस्थापित परिवार बिचौलियों के जाल में जा फंसे. इनमें दलाल, स्थानीय भूमि रिकॉर्ड के अधिकारी और राजस्व अधिकारी शामिल थे
http://www.tehelkahindi.com/indinon/national/362.html
(पूरा आलेख इस लिंक पर मौजूद है)