दसवीं तक भी नहीं पढ़े एक शख्स का ऐसा आविष्कार, जिसने देश की दसियों हजार महिलाओं की जिंदगियां बदल कर रख दी हैं. पीसी विनोज की रिपोर्ट।
कुछ दिन पहले तक विजया और लता नाम की बहनें कोयंबतूर में नाममात्र की तनख्वाह पर नौकरी किया करती थीं. पिछले साल नवंबर में उन्होंने जैसे-तैसे 85,000 रूपए इकट्ठा किए और उनसे एक स्थानीय कारीगर द्वारा ईजाद की गई मशीन खरीद डाली. बस तभी से मानो उनकी सारी आर्थिक परेशानियां छूमंतर हो गईं. इसका मतलब ये नहीं कि ये कोई नोट छापने की मशीन है. दरअसल इससे महिलाओं की सैनिटरी नैपकिन बनाई जाती है. ‘हमने एक तमिल पत्रिका में इसके बारे में पढ़ा था और तभी हमने इसे खरीदने का फैसला कर लिया था,’ लता कहती हैं. आज वो नैपकिन बेचकर महीने में 5000 रुपए से ज्यादा आसानी से कमा लेती हैं और उनका उत्पाद कोयंबतूर और आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों में खासा सफल है. उनकी नैपकिन ‘टच फ्री’ के नाम से बाजार में उपलब्ध है. दोनों बहनें महीने में 7-8 हजार पैकेटों का उत्पादन करती हैं और एक पैकेट में आठ नैपकिन होते हैं. उनके आस-पास रहने वाली महिलाएं जहां सीधे-सीधे ही उनसे खरीददारी कर लेती हैं वहीं घरों, दफ्तरों और कॉलेजों में इसकी बिक्री करने के लिए उन्होंने कुछ सेल्सगर्ल्स भी रखी हुई हैं.
उनके घर से थोड़ी ही दूरी पर रहने वालीं अवकाशप्राप्त शिक्षिका राजेश्वरी ने भी इसी तरह का अपना एक छोटा सा कारखाना लगा रखा है. ‘हमारी नैपकिन बाजारों में बिकने वाली आम नैपकिन से मोटी होती है’ वो कहती हैं, ‘ये उन ग्रामीण महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है जिन्हें दिन-भर खेतों में काम करना पड़ता है, जिससे कि एक ही पैड पूरे दिन चल सके.’
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