कहा जा रहा है कि शिक्षा का अधिकार विधेयक ने एक इतिहास रचा है लेकिन क्या सचमुच ऐसा है। पक्ष और विपक्ष में ढेर सारी दलीलें हैं लेकिन यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इस विधेयक ने देश के शिक्षाविदों और नागरिक-संगठनों का कार्यकर्ताओं दोनों को समान रुप से निराश किया है। लोकसभा में अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का प्रावधान करने वाला जो विधेयक पास हुआ वह एक तरह से अपने ही पुराने वादे से मुकरने जैसा था-वादा यह कि शिक्षा हरेक को दी जायेगी, समान गुणवत्ता की दी जाएगी और बिना भेदभाव के दी जाएगी। जो विधेयक संसद में पास हुआ उससे शिक्षा तक बच्चों की पहुंच आसान तो हो जाएगी लेकिन यह शिक्षा ना समतामूलक होगी और ना ही समान रुप से हर जगह गुणवत्तापूर्ण।
बड़ी समस्या यह है कि विधेयक में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं जतायी गई है और ना ही इस विधेयक में प्रावधानों का पालन करने से चूकने पर किसी दंड का जिक्र है। विधेयक परीक्षाओं को हटाकर छात्रों को जमात-दर-जमात चढ़ते जाने का रास्ता तो खोलता है लेकिन पढ़ाई के लिए किसी किस्म के मानक की बात पर चुप है। पहले सुझाव आया था कि जैसी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा केंद्रीय विद्यालय में दी जाती है उसे शिक्षा की गुणवत्ता को निर्धारित करने में न्यूनतम मानक माना जाय। विधेयक ने इस सुझाव की सिरे से अनदेखी की। एक समस्या यह है कि विधेयक में छह साल से कम और 14 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों के लिए कुछ भी नहीं है।
शैक्षिक पहल प्रथम की अगुवाई करने वाले माधव चवाण पढ़ने-लिखने-गणित करने और शिक्षक-प्रशिक्षण के मामले में एक न्यूनतम मानक को तय करने के साथ एक शिक्षक, छात्र और विद्यालय के मूल्यांकन की खुली परीक्षा प्रणाली की पैरोकारी करते आ रहे हैं। बहरहाल, सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता का मसला राज्यों की स्कूली नोकरशाही पर छोड़ दिया है। प्रथम द्वारा प्रकाशित शिक्षाकेंद्रित एनुआल स्टेटस् रिपोर्ट(2008) अपने आप में प्राथमिक स्तर की शिक्षा की गुणवत्ता के मूल्यांकन के लिहाज से एक मानक रिपोर्ट का दर्जा पा चुका है।
विधेयक यह बताने से कतराता है कि दरअसल स्कूल कहेंगे किसको। इसका मतलब हुआ कि किसी राज्य सरकार का अधिकारी किसी छाजनपट्टी वाले एक कमरे को स्कूल कहकर और उसमें पढ़ाने की अनुमति देकर अपने संवैधानिक दायित्व से छुटकारा पा जाएगा।यह चलन कई गरीब इलाकों में अमल में भी आ चुका है। जो नागरिक-संगठन पिछले कई दशकों से शिक्षा के अधिकार के लिए काम कर रहे हैं उन्हें अपेक्षा थी कि स्कूल एक ऐसे परिसर केरुप में परिभाषित किया जाएगा जहां कम से कम चार से छह कक्षा-अध्यापन के कमरे हों, खेल का मैदान हो, परिसर में साफ पेयजल शौचालय की व्यवस्था हो और साथ ही साथ पुस्तकालय का भवन हो।
शिक्षा के अधिकार से जुड़ी मुख्य बहसों, विधेयक प्रावधान, उनकी आलोचना,मुल्यांकन और विधेयक की खूबी-खामी का जायजा लेने के लिए आप निम्नलिखित लिंकस् को आजमा सकते हैः
The bill is short on transparency and accountability, Madhav Chavan
Misconceiving Fundamentals, Dismantling Rights, Anil Sadgopal
Solution Exchange – Collated responses of the Education Community