मणिपुर ऐसी जगह बन चुकी है जहां ज्यादातर चीजें जैसी दिखती हैं या बताई जाती हैं वैसी असल में होती नहीं. डर यहां के लोगों की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. कहा जाता है कि अकेले इस साल ही विद्रोहियों और सुरक्षा बलों के टकराव में अब तक 300 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।फर्जी मुठभेड़ का सच सामने आने के बाद सुलगते मणिपुर का दौरा करके आईं शोमा चौधरी इस राज्य में चल रहे जटिल टकराव और उसमें छिपी उससे भी जटिल सच्चाइयों की थाह ले रही हैं.
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http://www.tehelkahindi.com/indinon/national/355.html
23 जुलाई 2009, मणिपुर की राजधानी इंफाल, बीटी रोड के एक व्यस्त बाजार में दिन रोज की तरह ही शुरू हो रहा था. असम राइफल्स में राइडर (डाक और सामान इधर-उधर पहुंचाने वाले) पी लुखोई सिंह ने अभी-अभी सीआईडी के एसपी तक एक पैकेट पहुंचाया था और अब वो सड़क के किनारे खड़े अपने एक दोस्त से बातें कर रहे थे. चतुर्थ श्रेणी के एक कर्मचारी गिमामगल अपनी साइकिल पर सवार होकर दफ्तर की तरफ जा रहे थे. उनसे कुछ ही दूर तीन बच्चों की मां निंगथोंजम केशोरानी अपनी फलों की रेहड़ी लगाकर ग्राहकों का इंतजार कर रही थीं. पास ही डॉक्टर से मिलकर आ रहीं डब्ल्यू गीता रानी एक ऑटोरिक्शा की तलाश में थीं. थोड़ी ही दूर पांच महीने की गर्भवती रबिना देवी अपने दो साल के बच्चे रसेल का हाथ पकड़े केले खरीद रही थीं. इसके बाद उन्हें मोबाइल की दुकान पर काम कर रहे अपने पति से मिलने जाना था. और 22 साल के चोंगखम संजीत (मुठभेड़ की आड़ में कत्ल) अस्पताल में भर्ती अपने एक रिश्तेदार के लिए दवाइयां खरीदने के लिए जा रहे थे. तभी अचानक एक नौजवान तलाशी ले रहे पुलिस के जवानों के चंगुल से निकल भागा. जब तक कोई कुछ समझ पाता माहौल गोलियों की आवाज से गूंज उठा. लुखोई सिंह ने खुद को बचाने के लिए अपनी मोटरसाइकिल की आड़ लेने की कोशिश की. मगर उन्हें गोली लगी और वो घायल हो गए. उन्होंने देखा कि दो पुलिसवाले भीड़ में फायरिंग करते हुए भाग रहे हैं.