खास बात
खाद्य सुरक्षा विधेयक
में कहा गया है कि देश के ग्रामीण क्षेत्र के 75 फीसदी और शहरी क्षेत्र के 50
फीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इस आबादी का वर्गीकरण दो कोटिय़ों-
प्राथमिक(priority) और सामान्य(general)– के रुप में किया जाएगा। ग्रामीण
क्षेत्र से 46 फीसदी लोगों को प्राथमिक वर्ग में रखा जाएगा जबकि शहरी क्षेत्र से
28 फीसदी लोगों को। बाकी जन दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य वर्ग में माने
जायेंगे।
2 Accent 2"/>
विधेयक के मसौदे के अनुसार बीपीएल परिवारों को अंत्योदय अन्य योजना के अंतर्गत मिल रहा 35 किलो अनाज प्रति माह अब घटकर 25 किलो अनाज प्रति माह रह जाएगा यानी आहार सुरक्षा अधिनियम का मसौदे अंत्योदय अन्न योजना की जगह अब 25 किलो अनाज अनुदानित मूल्य पर प्रस्तावित कर रहा है।
·राष्ट्रीय आहार सुरक्षा अधिनियम का एक वैकल्पिक मसौदा प्रोफेसर ज्यां द्रेज की अगुवाई में एक दल ने तैयार किया है। इसे 24 जून 2009 को जारी किया गया। इस मसौदे में कहा गया है कि मौजूदा वक्त में चल रहे 8 भोजन और पोषण से जुड़े कार्यक्रमों के मिल रहे फायदों से गरीब परिवारों को आहार सुरक्षा अधिनियम के बहना वंचित ना किया जाय बल्कि उन्हें इसके साथ समग्र रुप दिया जाय।
· ओड़ीसा , मध्यप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, राजस्थान में 1890 किलो कैलोरी से कम पोषण इकाई का उपभोग कर रहे लोगों की तादाद पिछले पाँच सालों में बढ़ी है। *
· एक तथ्य यह भी है कि आठ राज्यों- आंध्रप्रदेश, बिहार , गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश और राजस्थान में प्रजनन-सक्षम आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। *
· ग्रामीण भारत में आहार असुरक्षा की माप के लिए तैयार किए गए एक पैमाने पर झारखंड और छ्तीसगढ़ सबसे संगीन किस्म की आहार असुरक्षा से जूझता राज्य बताया गया है। इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार और गुजरात का नंबर है। *
· ग्रामीण इलाकों में १८.७ फीसदी परिवार और शहरी इलाकों में ३३.१ फीसदी परिवारों के पास सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत जारी किया जाने वाला कोई भी कार्ड नहीं है।**
· ८१ फीसदी ग्रामीण परिवारों और ६७ फीसदी शहरी परिवारों के पास राशन कार्ड है। बीपीएल कार्ड २६.५ फीसदी ग्रामीण परिवारों और १०.५ फीसदी शहरी परिवारों को हासिल है।
· बीपीएल कार्ड २६.५ फीसदी ग्रामीण परिवारों और १०.५ फीसदी शहरी परिवारों को हासिल है।**
· अंत्योदय योजना के तहत जारी किए जाने वाले कार्ड ग्रामीण क्षेत्रों में महज 3 फीसदी और शहरी क्षेत्र में महज 1 फीसदी गरीब परिवारों के पास हैं। **
* एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाऊंडेशन और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम द्वारा जारी रिपोर्ट ऑन द स्टेट ऑव फूड इन्स्क्योरिटी इन इंडिया(2009) से ।
**राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा 61 वें दौर की गणना के बाद जारी सांख्यिकी से।
http://www.righttofoodindia.org/data/rtf_act_essential_demands_of_the_rtf_campaign%20_220709.pdf
आगे पढ़ें
**page**
[inside]खाद्य सुरक्षा विधेयक[/inside] के बारे में
बहुत संभावना है कि
संसद के अगले सत्र में खाद्य सुरक्षा विधेयक पेश
किया जाय। विधेयक अपने मौजूदा रुप में भोजन के अधिकार को वैधानिक दर्जा देने के
लिए तैयार किया गया है। विधेयक का उद्देश्य लक्षित सार्वजनिक वितरण
प्रणाली(टीपीडीएस) के जरिए विशिष्ट व्यक्ति-समूहों को भोजन के मामले में सुरक्षा
प्रदान करना है। संसद की स्थायी समिति(खाद्य, style="font-size: 10pt; font-family: Mangal">उपभोक्ता
मामले और सार्वजनिक वितरण) ने खाद्य सुरक्षा विधेयक से संबंधित अपनी रिपोर्ट 17 जनवरी 2013को प्रस्तुत
की। समिति ने कुछेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं मसलन लाभार्थियों के वर्गीकरण, नकद-हस्तांतरण
और राज्य तथा केंद्र के बीच लागत-खर्च के बंटवारे के बारे में सुझाव दिए हैं।
खाद्य सुरक्षा विधेयक
और संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों का एक तुलनात्मक जायजा नीचे
प्रस्तुत किया
जा रहा है-
किसे मिलेगी खाद्य
सुरक्षा ?
खाद्य सुरक्षा विधेयक
में कहा गया है कि देश के ग्रामीण क्षेत्र के 75 फीसदी और शहरी क्षेत्र के 50
फीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इस आबादी का वर्गीकरण दो कोटिय़ों-
प्राथमिक(priority) और सामान्य(general)– के रुप में किया जाएगा। ग्रामीण
क्षेत्र से 46 फीसदी लोगों को प्राथमिक वर्ग में रखा जाएगा जबकि शहरी क्षेत्र से
28 फीसदी लोगों को। बाकी जन दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य वर्ग में माने
जायेंगे।
संसद की स्थायी समिति
का सुझाव है कि प्राथमिक, सामान्य तथा अन्य वर्ग के रुप में किया
गया वर्गीकरण समाप्त किया जाय और इसकी जगह समाविष्ट(included)
तथा अपवर्जित(excluded)
नाम की दो कोटि बनायी
जाय। समाविष्ट कोटि के दायरे में ग्रामीण क्षेत्र की 75 फीसदी आबादी को शामिल किया
जाय और शहरी क्षेत्र में 50 फीसदी आबादी को।
लाभार्थियों की पहचान
कैसे होगी?
खाद्य सुरक्षा बिल में कहा गया है कि
केंद्र लाभार्थी परिवारों की पहचान के लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी करेगा और राज्य
सरकारें उन दिशा-निर्देशों के अनुरुप विशेष परिवारों की पहचान करेंगी।
संसद की स्थायी समिति की सिफारिश में
कहा गया है कि अपवर्जन(exclusion) के
लिए केंद्र को चाहिए कि वह साफ-साफ मानक निर्धारित करे और समावेशन(inclusion) के मानकोंको तय करने
के लिए राज्यों से परामर्श ले।
लाभार्थी को क्या
मिलेगा?
खाद्य सुरक्षा विधेयक
के अनुसार प्राथमिक(Priority) वर्ग में आने वाले परिवार में प्रति
व्यक्ति प्रति माह 7 किलोग्राम
खाद्यान्न दिया जाएगा। इसकी दर चावल के लिए 3 रुपये, गेहूं के लिए 2 रुपये
और मोटहन के लिए 1 रुपये प्रतिकिलोग्राम की होगी। सामान्य श्रेणी के लाभार्थी को 3
किलोग्राम खाद्यान्न प्रति व्यक्ति प्रतिमाह के हिसाब से दिया जाएगा और इसकी दर
न्यनतम समर्थन मूल्य का 50 फीसदी होगी।
संसद की स्थायी समिति
के सुझाव के अनुसार समाविष्ट कोटि में प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम
खाद्यान्न अनुदानित मूल्य पर दिया जाय। इसके अतिरिक्त दाल,
चीनी आदि भी दिया जाय।
लक्षित सार्वजनिक
वितरण प्रणाली में सुधार
खाद्य सुरक्षा विधेयक के अनुसार लक्षित
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के लिए खाद्यान्न को सीधे राशन दुकान तक
पहुंचाया जाय और सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाय।
संसद की स्थायी समिति के सुझाव के
अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित विशेष किस्म के उपाय करने होंगे। मिसाल के
लिए गोदामों में सीसीटीवी कैमरा लगाना, इंटरनेट का इस्तेमाल, खाद्यान्न
ले जाने वाले वाहनों पर नजर रखने के लिए जीपीएस तकनीक का इस्तेमाल। साथ ही प्रति
पाँच वर्ष पर लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के क्रियान्वयन का मूल्यांकन करना
होगा।
केंद्र और राज्यों के
बीच लागत-खर्च का साझा कैसे होगा?
खाद्य सुरक्षा विधेयक के अनुसार
लागत-खर्च का साझा केंद्र और राज्यों के बीच होगा और इस साझे की रुपरेखा केंद्र
सरकार तैयार करेगी।
संसद की स्थायी समिति की सिफारिश के
अनुसार विधेयक के क्रियान्वयन में राज्यों को अगर अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता है
तोइसके बारे में वित्त आयोग से परामर्श किया जाय।
क्रियान्वयन की
समय-सीमा क्या होगी?
विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार इसके
बारे में तिथि का निर्धारण करेगी।
संसद की स्थायी समिति की सिफारिश के
अनुसार राज्य के तर्कसंगत समय-सीमा, मिसाल के लिए एक वर्ष
की अवधि, बतायेंगे, और
इसके बाद ही विधेयक अमल में आएगा।
**page**
Accent 1"/>
[inside]राष्ट्रीय आहार सुरक्षा अधिनियम 2009 ( मसौदा )[/inside]
यूपीए-2 के वायदे
• राष्ट्रपति प्रतिबा देवी सिंह पाटील ने 4 जून 2009 को कहा कि राष्ट्रीय आहार सुरक्षा अधियनियम बनाया जाएगा जिसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को प्रति माह 25 किलो चावल या गेहूं 3 रुपये के दर से देने का प्रावधान होगा।
• 4 जून 2009 के दिन प्रस्तावित विधेयक का एक संकल्प पत्र भी उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा जारी हुआ। इसमें कहा गया कि बीपीएल परिवारो की गणना योजना आयोग द्वारा प्रस्तुत 2004-05 के आंकड़ों को आधार मानकर की जाएगी।योजना आयोग के अनुसार देश में 6.52 करोड़ की तादाद में गरीब परिवार हैं जबकि राज्यों ने कुल 10.28 करोड़ परिवारों को गरीब मानकर बीपीएल कार्ड जारी किए हैं। इसके अतिरिक्त अगर योजना आयोग के आकलन को मानें तो गरीबों की तादाद लगातार कम हो रही है और उनकी संख्या इस साल घटकर 5.91 करोड़ हो जानी चाहिए। आयोग यह भी मानता है कि गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों की संख्या बढ़कर 15.84 करोड़ हो गई है। इस आकलन की वजह से राज्यों और केंद्र के बीच मौजूदा मसौदे पर मतभेद हैं।
• 6 जुलाई 2009 के दिन अपने बजटीय अभिभाषण में वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सरकार आहार सुरक्षा विधेयक लाने की तैयारी में है और इसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को 3 रुपये की दर से 25 किलो अनाज(चावल या गेहूं) प्रति माह दिया जाएगा।
• 13 जुलाई 2009 को प्रणब मुखर्जी की अगुवाई में मंत्रियों का एक समूह प्रस्तावित विधेयक की रुपरेखा तैयार करने के लिए गठित हुआ। इसमें मोंटेक सिह अहलूवालिया (योजना आयोग के उपाध्यक्ष) विशेष अतिथि के रुप में आमंत्रित किए गए हैं।
प्रोफेसर ज्यां द्रेज और उनकी टोली द्वारा तैयार किए गए वैकल्पिक मसौदे की मुख्य बातें-
हर बीपीएल परिवार को 35 किलो अनाज प्रतिमाह 3 रुपये की दर से (गेहूं के मामले में 2 रुपये प्रति किलो) दिया जाय। हर एकल परिवार को अलग इकाई माना जाय। गरीब परिवारों की पहचान के लिए एक नई कसौटी तैयार की जाय जिसमें सत्यापन की आसानी और पारदर्शिता हो।
• वैकल्पिकमसौदे में कहा गयाहै कि जनता की सेहत से खिलवाड़ करने वाली कंपनियों और व्यक्तियों को कठोर दंड दिया जाय क्योंकि वे सुरक्षित आहार के मानकों के पालन न करने के अपराधी हैं।
प्रस्तावित विधेयक पर नागरिक संगठनों की मांग-(देखें नीचे दी गई लिंक)
http://www.righttofoodindia.org/data/rtf_act_essential_demands_of_the_rtf_campaign%20_220709.pdf)
• इस विधेयक द्वारा यह सुनिश्चित किया जाय कि कोई भी व्यक्ति ( स्त्री, पुरुष, बुजुर्ग या बच्चा) किसी भी दिन भूखे पेट सोने के लिए बाध्य ना हो और ना ही कुपोषण का शिकार हो ।
• विधेयक के जरिए सरकार पर जिम्मेदारी डाली जाय कि वह खाद्योत्पादन को टिकाऊ तरीके से बढ़ाये और हर समय हर जगह समुचित मात्रा में आहार उपलब्ध कराये।
• मौजूदा वक्त में चल रही भोजन और पोषण की योजनाओं में कटौती नहीं होनी चाहिए बल्कि विधेयक में इन्हें समेकित करके अधिकार मानते हुए कानूनी रुप दिया जाना चाहिए। खासकर समेकित बाल विकास योजना, मिड डे मील योजना और अंत्योदय योजना के संदर्भ में यह व्यवस्था होनी चाहिए।
• भोजन और पोषण की मौजूदा योजनाओं दायरे में जो लोग नहीं हैं मसलन- स्कूल-वंचित बच्चे, आप्रवासी मजदूर और उनके परिवार, बंधुआ मजूरी के शिकार परिवार, विस्थापित और बेघर लोग और शहरी क्षेत्र के गरीब आदि- उनके लिए प्रस्तावित विधेयक में अधिकारों की निशानदेही करते हुए व्यवस्था की जानी चाहिए।
• नरेगा के अन्तर्गत हासिल काम के अधिकार, वृद्धावस्था पेंशन, मातृत्व से जुड़े अधिकारों की गणना अलग की जाय। इनमें बढ़ोतरी हो ना कि प्रस्तावित विधेयक में इन्हें भी भोजन के अधिकार के अन्तर्गत शामिल मानकर सीमित किया जाय।
• 0-6 बच्चे को भी भोजन का अधिकार हासिल है। उसके इस अधिकार की रक्षा उसकी मां को कुछेक सेवाएं प्रदान करके की जायें। मसलन- जन्म के समय सहायता, स्तनपान के लाभ बताने के लिए विशेषज्ञ की सलाह, मातृत्व से जुड़े लाभाधिकार और कार्यस्थल पर पालने की व्यवस्था।
• चंद धनिको को छोड़कर देश के सभी लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत प्रति व्यक्ति 7 किलो अनाज प्रति माह 2 और 3 रुपये प्रति किलो की दर से मुहैया कराया जाना चाहिए। अगर अवाम चाहे तो मोटहन भी दिया जाय। इसके अतिरिक्त दाल और खाद्य-तेल भी दिया जाना चाहिए।
• राशनकार्ड के बंटवारे के मामले में घर की स्त्री को ही प्रधान स्वीकार किया जाय।
• भोजन और पोषण से जुड़ी किसी भी योजना में आहार की जगह नकदी देने का प्रावधान ना किया जाय.
• प्रस्तावि विधेयक में ध्यान रखा जाय कि आहार-सुरक्षा के नीतिगत मामले या पोषण से संबंधित योजनाओं में व्यवसायिक घरोने के हितों की घुसपैठ ना हो। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि भोजन में जीन संशोधित चीजें या फिर संदूषित पदार्थ ना हों।व्यवसायिक हितों के साथ जहां इन मामलों में टकराहट हो वहीं सरकार निजी-सार्वजनिक भागीदारी से बचे।
**page**
संयुक्त राष्ट्रसंघ के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और एम एस स्वामीनाथन फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रुप से प्रस्तुत रिपोर्ट ऑन [inside]द स्टेट ऑव फूड इनसिक्युरिटी इन रुरल इंडिया[/inside] नामक दस्तावेज के मुताबिक-
http://documents.wfp.org/stellent/groups/public/documents/newsroom/wfp197348.pdf
• १८९०किलो कैलोरी से कम ऊर्जा का भोजन प्राप्त करने वाले लोगों की तादाद कुल जनसंख्या में कितनी है।
• साफ पेयजल की सुविधा से कितने फीसदी परिवार वंचित हैं। कितने फीसदी परिवारों के घर में शौचालय की सुविधा नहीं है।
• १५ से ४९ साल की विवाहित महिलाओं में एनीमिया से पीडितों की संख्या(प्रतिशत में) कितनी है।
• १५ से ४९ साल के आयुवर्ग की कितनी फीसदी महिलायें क्रानिक एनर्जी डफीशिएन्सी से पीड़ित हैं।
• ६ से ३५ महीने की उम्र के कितने फीसदी बच्चों को एनीमिया है।
• ६ से ३५ महीने की उम्र के कितने फीसदी बच्चे सामान्य से कम वजन और कद के हैं।
• ऊपरोक्त मानकों के आधार पर ग्रामीण भारत में आहार-असुरक्षा का जायजा लेने वाले इस रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड और और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में आहार-असुरक्षा की स्थिति अत्यंत गंभीर है और मध्यप्रदेश, बिहार तथा गुजरात जैसे राज्य इससे थोड़े ही बेहतर हैं।
• आहार-असुरक्षा के पैमाने पर बेहतर स्थिति दर्ज कराने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश,केरल ,जम्मू-कश्मीर और पंजाब का नाम लिया जा सकता है जबकि आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा और महाराष्ट्र में आहार असुरक्षा की स्थिति गंभीर है। रिपोर्ट के मुताबिक जारी खेतिहर संकट का एक रुप आहार-असुरक्षा और ग्रामीण भारत में सेहत की गिरती स्थिति के तौर पर नजर आ रहा है।
• फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गनाइजेशन द्वारा विश्व में आहार-असुरक्षा की स्थिति पर जारी हाल(साल २००८) की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तकरीबन २३ करोड़ लोगों को रोजाना भरपेट भोजन नसीब नहीं होता यानी भारत में कुल आबादी का २१ फीसदी हिस्सा भुखमरी का शिकार है।
• उड़ीसा, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और राजस्थान ऐसे राज्य हैं जहां की जनसंख्या में ऐसे लोगों की तादाद बढ़ी है जिन्हें रोजाना १८९० किलो कैलोरी से कम ऊर्जा देने वाला भोजन नसीब होता है। पंजाब में भी एसे लोगों की तादाद बढ़ी है मगर कुल जनसंख्या के बीच उनका अनुपात बहुत कम है।
• कुल आठ राज्यों- आंध्रप्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश और राजस्थान में मां बनने के आयु-वर्ग में आने वाली महिलाओं में एनीमिया ( यानी खून में लौहतत्व की कमी ) की घटना बढ़ी है। इस आयु वर्ग की महिलाओं के बीच एनीमिया की सर्वाधिक बढ़ोत्तरी आंध्रप्रदेश में (५१ से ६४ फीसदी ) हुई है। आंध्रप्रदेश के बाद हरियाणा (४८ से ५७ फीसदी) और केरल(२३ से ३२ फीसदी ) का नंबर है।
• असम में क्रानिक एनर्जी डिफीशिएन्सी से पीडि़त महिलाओं की संख्या में तेज बढोत्तरी हुई है।यहां ऐसी महिलाओं की तादाद २८ फीसदी से बढ़कर ४० फीसदी हो गई। बिहार में ऐसी महिलाओं की तादाद ४० फीसदी से बढ़कर ४६ फीसदी, मध्यप्रदेश में ४२ फीसदी से बढ़कर ४५ फीसदी और हरियाणा में क्रानिक एनर्जी डिफीशिएन्सी से पीडि़त महिलाओं की संख्या ३१ फीसदी से बढ़कर ३३ फीसदी हो गई है।.
• जिन बीस राज्यों में यह अध्ययन किया गया उनमें १२ में ग्रामीण इलाकों के ८० फीसदी से ज्यादा बच्चे एनीमिया से पीडित थे। बिहार के ग्रामीण इलाके में एनीमियासे पीडि़त बच्चों की तादादपहले ८१ फीसदी थी जो बढ़कर ८९ फीसदी हो गई है।
• कर्नाटक के ग्रामीण इलाके में औसत से कम वजन और कद के बच्चों की तादाद ३९ फीसदी से बढ़कर ४३ फीसदी हो गई है।
• हालांकि भुखमरी को लेकर चलने वाली बहसों में अक्सर अकाल और भोजन की कमी से होने वाली मौतों का जिक्र होता है लेकिन भुखमरी से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू है लगातार बने रहने वाली आहार और पोषण से जुड़ी असुरक्षा की स्थिति। इस पर चर्चा भी बहुत कम होती है। आहार और पोषण की असुरक्षा की स्थिति में व्यक्ति को रुखा-सूखा जो और जितना मिल जाय उसी से काम चलाना पड़ता है और ऐसे भोजन में कैलोरी और पोषक तत्त्वों की खासी कमी होती है।
• बहुत से गरीब और जरुरतमंद परिवार लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के दायरे में आने से रह गये हैं। इस रिपोर्ट में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को साल १९९७ से पहले की तरह सर्वसुलभ बनाने की अनुशंसा की गई है। रिपोर्ट में समेकित बाल विकास कार्यक्रम और मिड डे मील योजना को भी कारगर तरीके से लागू करने की सिपारिश की गई है। नरेगा जैसे ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों पर जोर देते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पंचायती राज की संस्थाओं को आहार असुरक्षा की स्थिति से निपटने के लिए आहार प्रदान करने वाली सरकारी योजनाओं में ज्यादा जुड़ाव के साथ भागीदारी दी जानी चाहिए।
http://mospi.nic.in/press_note_510-Final.htm:
• ग्रामीण इलाकों में १८.७ फीसदी परिवार और शहरी इलाकों में ३३.१ फीसदी परिवारों के पास सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत जारी किया जाने वाला कोई भी कार्ड नहीं है।
• सर्वेक्षण के लिए प्रति व्यक्ति मासिक खर्च को आधार बनाकर क्रमवार १२ श्रेणियां बनायी गई थीं। ग्रामीण इलाके में प्रति व्यक्ति मासिक खर्चे के आधार पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाली श्रेणी में ५ फीसदी आबादी थी। इस श्रेणी के ११ फीसदी परिवारों के पास बीपीएल कार्ड थे। इससे नीचे की श्रेणी में आने वाले कुल ५ फीसदी ग्रामीण आबादी में १४ फीसदी परिवारों के पास बीपीएल कार्ड थे। मासिक खर्चे के आधार पर क्रमवार बनायी गई श्रेणी की तीसरे पादान पर १० फीसदी ग्रामीण आबादी थी और इस वर्ग के १८ फीसदी परिवारों के पास बीपीएल कार्ड थे।
• शहरी इलाके में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च को आधार बनाकर क्रमवार बनायी गई श्रेणियों में सबसे नीचे आने वाले तबके के परिवारों में महज २९ फीसदी के पास बीपीएल कार्ड थे।
• ग्रामीण इलाके के राशनकार्डधारियों की कुल संख्या में १० फीसदी परिवार अनुसूचित जनजाति के, २२ फीसदी परिवार अनुसूचित जातिके , ४२ फीसदी परिवार अन्य पिछड़ा वर्ग के और २६ फीसदी परिवार बाकी वर्गों के हैं।
• शहरी इलाके के राशनकार्डधारियों की कुल संख्या में २ फीसदी परिवार अनुसूचित जनजाति के, १६ फीसदी परिवार अनुसूचित जाति के , ३५ फीसदी परिवार अन्य पिछड़ा वर्ग के और ४७ फीसदी परिवार बाकी वर्गो के हैं।
.
• देश के ग्रामीण इलाकों ४३ फीसदी कृषि-मजदूर परिवारों के पास बीपीएल कार्ड हैं जबकि खेती से अलग मजदूरी करने वाले ३५ फीसदी परिवारों के पास बीपीएल कार्ड है।
• ०.०१ हेक्टेयर से कम जमीन की मल्कियत वाले ५१ फीसदी परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं है। एक हेक्टेयर और उससे ज्यादा जमीन की मल्कियत वाले ७७-८७ फीसदी परिवारों के पास एक ना एक तरह का राशन कार्ड है।जहां तक गरीब तबके के लिए जारी किये जाने वाले राशन कार्ड का सवाल है, सर्वाधिक बीपीएल कार्ड (३२ फीसदी) और अंत्योदय कार्ड (४ फीसदी) ०.०१-०.४१ हेक्टेयर जमीन की मिल्कियत वाले परिवारों के पास थे।
• पीडीएस के तहत प्रदान किए जाने वाले चावल की सबसे ज्यादा खपत वाले राज्य हैं-तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल।
• पीडीएस के तहत प्रदान किये जाने वाले गेहूं या आटा की सर्वाधिक खपत कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके और मध्यप्रदेश में है।
• पीडीएस से प्राप्त चीनी की सर्वाधिक खपत वाले राज्यों के नाम हैं- तमिलनाडु (६५ फीसदी ग्रामीण परिवार और ६४ फीसदी शहरी परिवार), असम (४० फीसदी ग्रामीण और १६ फीसदी शहरी) और आंध्रप्रदेश (ग्रामीण ३६ फीसदी, शहरी १५ फीसदी)।दूसरी तरफ पंजाब, हरियाणा, बिहार और झारखंड जैसे राज्य हैं जहां पीडीएस से प्राप्त चीनी की खपत ग्रामीण और शहरी, दोनों ही इलाकों के १ फीसदी परिवार भी नहीं करते।
• पंजाब और हरियाणा को छोड़ दें तो बाकी सभी बड़े राज्यों के ग्रामीण इलाकों में ५५ फीसदी से ज्यादा परिवार पीडीएस से प्राप्त किरोसिन तेल का इस्तेमाल करते हैं। पश्चिम बंगाल में तो ९१ फीसदी ग्रामीण और ६० फीसदी शहरी परिवार पीडीएस से प्राप्त किरोसिन तेल का इस्तेमाल करते हैं।
• साल २००४-०५ में लगभग २२ फीसदी ग्रामीण परिवारों के बच्चे मिड डे मील योजना से लाभान्वित हुए। समेकित बाल विकास परियोजना(आईसीडीएस) से ५.७ फीसदी ग्रामीण परिवारों के बच्चे लाभान्वित हुए। फूड-फार-वर्क योजना से महज २.७ फीसदी परिवारों को लाभ मिला जबकि बुजुर्गों के लाब के लिए चलायी गई अन्नपूर्णा योजना से महज ०.९ फीसदी ग्रामीण परिवार लाभान्वित हुए।
• भारत के ग्रामीण और शहरी इलाके में अनुसूचित जनजाति के परिवार फूड फॉर वर्क योजना से आपेक्षिक रुप से ज्यादा लाभान्वित हुए हैं। इस सामाजिक वर्ग के लोगों को समेकित बाल विकास योजना के अन्तर्गत भी अन्य वर्गों की तुलना में ज्यादा लाभ पहुंचा है।