मानव विकास सूचकांक

 

 खास बात

• 2018 में, 189 देशों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त क्षेत्रों में भारत मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में 129वें पायदान पर (एचडीआई वेल्यू 0.647) था, जबकि चीन 85वें (एचडीआई वेल्यू 0.758), श्रीलंका 71वें (एचडीआई वेल्यू 0.780), भूटान 134वें  (एचडीआई वेल्यू 0.617), बांग्लादेश 135 वें (एचडीआई वेल्यू 0.614) और पाकिस्तान 152 वें पायदान (एचडीआई वेल्यू 0.560) पर था.

• 1990 और 2018 के बीच, औसत वार्षिक मानव सूचकांक के मूल्यांक में (तर्कयुक्त संकेतक, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला डेटा के आधार पर) भारत की 1.46 प्रतिशत, चीन की 1.48 प्रतिशत, बांग्लादेश की 1.65 प्रतिशत, पाकिस्तान की 1.17 प्रतिशत और श्रीलंका की 0.90 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी.

• 2010-18 की समयावधि में भारत में अपने 63.5 प्रतिशत पुरुष समकक्षों की तुलना में सिर्फ 39.0 प्रतिशत वयस्क महिलाएं (25 वर्ष और उससे अधिक) ही किसी भी तरह की माध्यमिक शिक्षा हासिल कर पाई हैं.

• 2010-2017 के दौरान, भारत का जीनी(Gini) गुणांक (आय असमानता का आधिकारिक मापतंत्र, जो शून्य और 100 के बीच भिन्न होता है, 0 पूर्ण समानता दर्शाती है और 100 पूर्ण असमानता की ओर इशारा करती है) 35.7 था, जबकि चीन का 38.6 था, बांग्लादेश का 32.4, पाकिस्तान का 33.5, श्रीलंका का 39.8 और भूटान का 37.4 था.

• भारत का एचडीआई इंडेक्स(मानव विकास सूचकांक या ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स)  0.609 है यानी कुल 188  देशों के बीच भारत का स्थान इस पैमाने पर  130 वां है।*

• भारत का एचपीआई-1 (ह्यूमन पॉवर्टी इंडेक्स) मान  31.3 है, यानी कुल 108   देशों के बीच भारत का स्थान इस पैमाने पर 62 वां है।*

• मानव विकास सूचकांक के मामले में देश के प्रांतों में केरल सबसे आगे(0.638) है इसके बाद पंजाब (0.537), तमिलनाडु (0.531), महाराष्ट्र (0.523) और हरियाणा (0.509) का नंबर आता है( साल2001 के लिए) **

• मानव विकास सूचकांक के मामले में सबसे पिछड़ा राज्य बिहार (0.367) है। बिहार के तुरंत बाद असम (0.386), उत्तरप्रदेश (0.388) और मध्यप्रदेश (0.394) का नंबर है।**

• भारत में गरीबों की संख्या (हेडकाऊंट रेशियो-एचसीआर) साल 2004-05 की तुलना में 2009-10 में 7.3 फीसदी घटी है। साल 2004-05 में गरीबों की संख्या 37.2%  थी जो साल 2009-10 में घटकर 29.8% फीसदी हो गई। ग्रामीण इलाकों में गरीबों की संख्या 8.0 फीसदी कम हुई है(41.8% से घटकर 33.8%) और शहरी इलाके में 4.8 फीसदी(25.7% से घटकर 20.9%)।.  ***

• ग्रामीण इलाको में, अनुसूचित जनजातियों में गरीब व्यक्तियों की तादाद सबसे ज्यादा (47.4%) है, इसके बाद अनुसूचित जाति (42.3%) और अन्य पिछड़ा वर्ग(31.9%) में गरीबों की संख्या क्रमागत रुप से ज्यादा है। सभी वर्गों को एकसाथ करके देखें तो गरीबों की तादाद  का औसत 33.8% निकलकर आता है।.***

• साल 1993–94 और साल 2004–05 यानी कुल दस सालों की अवधि में खेतिहर मजदूर परिवारों की गरीबी के लिहाज से आंकडे में कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आता। ग्रामीण गरीब परिवारों में ऐसे परिवारों की संख्या 41% फीसदी पर स्थिर है।***

• यूएनडीपी द्वारा प्रस्तुत मानव विकास रिपोर्ट 2019 :

 ह्ममन डेवलपमेंट रिपोर्ट  2015 , यूएनडीपी
** नेशनल ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट  (2001), योजना आयोग, भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत
***मार्च 2012 में योजना आयोग द्वारा जारी गरीबी संबंधी आकलन(2009-10) से संबंधित प्रेसनोट
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[inside]संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने जारी की मानव विकास रिपोर्ट 2023-24 , पढ़ें इसकी खास बातें[/inside]
रिपोर्ट के लिए कृपया href="/upload/files/hdr2023-24overviewen.pdf">यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए।
इस रिपोर्ट का थीम है- "ब्रेकिंग द ग्रिडलॉक: बँटी हुई दुनिया में सहयोग की पुनर्कल्पना" 

क्या किसी समाज या राष्ट्र की वास्तविक प्रगति का मानदंड केवल आर्थिक प्रगति है ? इसी सवाल का जवाब खोजते-खोजते मानव विकास रिपोर्ट की संकल्पना उभरकर सामने आई। मानव विकास रिपोर्ट (HDR) के साथ, उसके एक भाग के रूप में मानव विकास सूचकांक (HDI) भी जारी किया जाता है।

मानव विकास रिपोर्ट के साथ कई और सूचकांक जारी किये जाते हैं- जैसे पहला, असामनता समायोजित मानव विकास सूचकांक
दूसरा, लैंगिक विकास सूचकांक
तीसरा, लैंगिक असामनता सूचकांक
चौथा, बहुआयामी गरीबी सूचकांक: विकासशील देश
पाँचवाँ, ग्रहीय दबाव समायोजित मानव विकास सूचकांक

क्या है इस रिपोर्ट में?
मानव विकास का आकलन करने वालों के सामने सबसे बड़ा संकट यह था कि मानव विकास जैसे गुणात्मक पैमाने को गणितीय रूप में कैसे मापा जाएँ ? मानव विकास का सटीक आकलन तो नहीं किया जा सकता लेकिन इस रिपोर्ट के जरिये मानव विकास की वस्तुस्थिति और दिशा का मोटा-मोटा खाका तैयार किया जाता है। जिसके लिए तीन आयामों को आदहर बनाया जाता है। रिपोर्ट में तीनों आयामों का सार रूप पेश किया जाता है। पहला आयाम है स्वस्थ और दीर्घायु जीवन, दूसरा-  साक्षरता का अच्छा स्तर होना और तीसरा जीवन जीने का उचित स्तर होना।

मानव विकास सूचकांक चार संकेतकों से मिलकर बनता है-

जन्म के समय जीवन प्रत्याशा –सतत् विकास लक्ष्य 3),
स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष –सतत् विकास लक्ष्य 4.3),
स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष –सतत् विकास लक्ष्य 4.4),
सकल राष्ट्रीय आय-GNI–सतत् विकास लक्ष्य 8.5) 


मानव विकास रिपोर्ट 2023-24 में शामिल मानव विकास सूचकांक में वर्ष 2022 के विश्व के 193 देशों में भारत ने 134वीं रैंक हासिल की है।

कोविड से पहले, वर्ष 2019 में भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्य 0.638 था जो कि वर्ष 2020 में यथावत रहा और वर्ष 2021 में घटकर 0.633 हो जाता है हालाँकि वर्ष 2022 में बढ़कर 0.644 हो जाता है।

वर्ष 2021 के लिए वैश्विक मानव विकास सूचकांक मूल्य 0.735 है जोकि वर्ष 2022 में बढ़कर 0.739 हो जाता है। वैश्विक मानव विकास सूचकांक मूल्य की तुलना में भारत का मूल्य वर्ष 2021 में 0.105 कम था वहीं वर्ष 2022 में 0.095 कम है।

रिपोर्ट के अनुसार, कई देश वर्ष 2020 या 2021 में, मानव विकास सूचकांक मूल्यों में आई गिरावट से अभी तक उभर नहीं पाए हैं। खासकर विकासशील देशों के मामले में। मानव विकास सूचकांक मूल्यों में आई यह गिरावट सतत् विकास लक्ष्त्यों को हासिल करने में बाधा पैदा करेगी। रिपोर्ट की माने तो कोविड से पहले विश्व समुदाय जिस रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था, अगर उसी रफ़्तार पर कायम रहा होता तो वर्ष 2030 तक मानव विकास सूचकांक मूल्य 0.800 के आस-पास होता। नीचे दी गई तस्वीर को देखिये- 

 

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु-

  • सन् 1990 से 2022 तक भारत के मानव विकास सूचकांक मूल्य में 48.38% की वृद्धि हुई है। (0.434 से 0.644)
  • वर्ष 1990 में भारत के लोगों की जन्म के समय जीवन प्रत्याशा दर58.7वर्ष थी जो कि बढ़कर वर्ष 2022 में 67.7 वर्ष हो गई है।
  • इसी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1990 में अनुमानित स्कूली शिक्षा के वर्ष 8.0 थे जो कि बढ़कर वर्ष 2022 में 12.6 वर्ष हो गए हैं।
  • वहीं वर्ष 1990 में स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 2.8 थे जो कि बढ़कर वर्ष 2022 में 6.6 वर्ष हो गए हैं।
  • वर्ष 1990 में, भारत में, प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1,796 अमेरिकी डॉलर थी जो कि बढ़कर वर्ष 2022 में 6,951 अमेरिकी डॉलर हो गई है।
  • भारत ने वर्ष 2021 के लिए 135 वीं रैंक हासिल की थी वहीं वर्ष 2022 में 134 वीं रैंक हासिल की है। गौरतलब है कि एक रिपोर्ट की तुलना दूसरी रिपोर्ट के साथ नहीं की जा सकती है क्योंकि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्ठाएँ समय-समय पर आँकड़े संशोधित करती रहती हैं।
  • लेकिन इसी रिपोर्ट में दी गई टेबल 1, ऐसे आँकड़ों को लेकर बनाई गई है जिनकी तुलना की जा सकती है। 
  • टेबल 2 के अनुसार 1990 से लेकर 2022 तक औसत वार्षिक मानव विकास सूचकांक में भारत के लिए वृद्धि 1.24% रही वहीं चीन के लिए यह वृद्धि 1.55% , बांग्लादेश के लिए 1.63 %, म्यांमार के लिए 1.90 प्रतिशत और नेपाल के लिए यह वृद्धि 1.32 प्रतिशत रही।
  • भारत को इस रिपोर्ट में मध्यम मानव विकास समूह वाले देशों में रखा गया है। परन्तु भारत का मूल्य (0.644) मध्यम मानव विकास समूह वाले देशों के औसत मूल्य (0.640) की तुलना में अधिक है।
     

असमानता, विकास के वर्तमान मॉडल का सहउत्पाद है। जोकि पिछले काफ़ी समय से बढ़ रही है। असमानता के कारण मानव विकास के मूल्य में गिरावट आती है, उस गिरावट को असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक में दर्ज किया जाता है। इस सूचकांक को वर्ष 2010 में पहली बार पेश किया था।
असमानता समायोजन के बाद भारत का मानव विकास मूल्य घटकर 0.444 हो जाता है। और भारत की रैंक 134 से गिरकर 140वीं हो जाती है। सबसे ज्यादा असमानता आर्थिक संकेतक के मामले में है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में, भारत की करीब 1 प्रतिशत अमीर आबादी के पास कुल संपत्ति का 21.7 प्रतिशत हिस्सा था।

इस सूचकांक के मामले में 0 का मान पूर्ण रूप से समानता को दर्शाता है वहीं 1 का मान असमानता को दर्शाता है ऊपर दिए गए चित्र से स्पष्ट है कि वर्ष 2022 में वर्ष 2021 की तुलना में असामनता बढ़ी है

लैंगिक विकास सूचकांक– मानव विकास मूल्य को लैंगिक नजरिये से देखने की कोशिश करता है। यानी जीडीआई, पुरुष एचडीआई और महिला एचडीआई का अनुपात है। इस सूचकांक की शुरुआत वर्ष 1995 में की थी।
वर्ष 2022 के लिए, भारत में, महिलाओं का एचडीआई वैल्यू 0.582 है, वहीं पुरुषों का 0.684
पुरुष एचडीआई वैल्यू और महिलाओं के एचडीआई वैल्यू के बीच का अंतर -0.101 है।

 

लैंगिक असमानता सूचकांक  लैंगिक असमानता सूचकांक को बनाने के लिए तीन संकेतकों को आधार बनाया जाता है; प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तिकरण और श्रम बाजार। इस सूचकांक के मामले में 0 का मान पूर्णरूप से समानता को दर्शाता है वहीं 1 का मान असमानता को दर्शाता है।

वर्ष 2022 में भारत को लैंगिक असमानता सूचकांक में, 0.437 मान के साथ 193 देशों में से 108 वीं रैंक प्राप्त हुई है। वर्ष 2021 की तुलना में लैंगिक असमानता सूचकांक के मान में 0.013 की कमी आई है।
वहीं वर्ष 2022 के लिए पड़ोसी देश चीन का लैंगिक असमानता का मूल्य 0.186 है, बांग्लादेश का 0.498, श्रीलंका का 0.376 है।

भारतीय संसद की कुल सीटों में से 14.6 प्रतिशत सीटों पर महिला सदस्य बैठती हैं वहीं चीन में यह आंकड़ा 24.9% हो जाता है (2022 के आंकड़ों के अनुसार)
2022 में महिलाओं (15 वर्ष और उससे ऊपर) में श्रम बल भागीदारी दर 28.3 प्रतिशत थी वहीं पुरुषों में श्रम बल भागीदारी दर 76.1 % थी।

श्रम बल भागीदारी दर से तात्पर्य 15 वर्ष या उससे ऊपर के ऐसे लोग जो या तो कहीं कार्यरत हैं या फिर रोजगार की तलाश में हैं, का कुल काम करने की उम्र वाले लोगों के साथ अनुपात। यानी श्रम बल भागीदारी दर अर्थव्यवस्था में नौकरियों की मांग को दर्शाता है।

वर्ष 2020 में प्रति दस लाख जीवित बच्चों के जन्म पर 103 महिलाओं की मृत्यु हुई थी।

वर्ष 2022 में 15 से 19 आयु वर्ग की प्रति 1000 किशोरियों ने 16.3 बच्चों को जन्म दिया था।

 

ग्रहीय दबाव समायोजित HDI

मानव के विकास में पर्यावरण भी एक प्रमुख कारक है इसलिए मानव विकास रिपोर्ट में  "प्लेनेटरी प्रेशर एडजस्ट एचडीआई" (P-HDI)-ग्रहीय दबाव समायोजित HDI- की घोषणा की जाती है। 
P-HDI के मान को निकालने के लिए HDI के मान को देश के प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन और प्रति व्यक्ति ‘मटेरियल फुटप्रिंट’ स्तर के साथ समायोजित किया जाता है।
वर्ष 2022 में भारत का HDI 0.644 है जो कि समायोजित हो जाने के बाद 0.625 हो जाता है। और भारत की रैंक 134 से गिरकर 141वीं हो जाती है।

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[inside]संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने मानव विकास रिपोर्ट 2021-22 जारी की है[/inside]
रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ, यहाँ, यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए.

इस रिपोर्ट का थीम है- "अनिश्चित समय, अनसुलझा जीवन: बदलती दुनिया में हमारे भविष्य को आकार देना" 

मानव विकास रिपोर्ट (HDR) के एक भाग के रूप में मानव विकास सूचकांक (HDI) रहता है. वर्ष 2021 के मानव विकास सूचकांक में विश्व के 191 देशों में भारत ने 132 वीं रैंक हासिल की है.

कोविड पूर्व वर्ष 2019 में भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्य 0.645 था जो घटकर 2020 में 0.642 और 2021 में फिर घटकर 0.633 हो गया है.

वर्ष 2021 के लिए वैश्विक मानव विकास सूचकांक मूल्य 0.732 है. वैश्विक मानव विकास सूचकांक मूल्य से भारत का मूल्य 0.099 कम है.

रिपोर्ट के अनुसार 90% देशों में वर्ष 2020 या 2021 में मानव विकास सूचकांक मूल्य कम हुआ है. जोकि सतत विकास लक्ष्यों के प्राप्ति में प्रमुख चुनौती हो सकता है.

क्या है रिपोर्ट

वर्ष 1990 से मानव विकास रिपोर्ट जारी की जाती है. जिसकाप्राथमिक उद्देश्यमानव विकास को मध्यनजर रखते हुए विश्वभर के देशों का आंकलन करना है.

मानव विकास सूचकांक चार संकेतकों से मिलकर बनता है-

जन्म के समय जीवन प्रत्याशा –सतत् विकास लक्ष्य 3),
स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष –सतत् विकास लक्ष्य 4.3),
स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष –सतत् विकास लक्ष्य 4.4),
सकल राष्ट्रीय आय-GNI–सतत् विकास लक्ष्य 8.5)।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु-

  • सन् 1990 से 2021 तक भारत के मानव विकास सूचकांक मूल्य में 45.85% की वृद्धि हुई है. (0.434 से 0.633)
  • 2021 की इस रिपोर्ट में भारत के लोगों की जन्म के समय जीवन प्रत्याशा दर 67.2 वर्ष है. इसी रिपोर्ट के अनुसार अनुमानित स्कूली शिक्षा के वर्ष 11.9 वर्ष. स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 वर्ष.
  • वहीं प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,590 अमेरिकी डॉलर थी।
  • भारत ने वर्ष 2021 के लिए 132 वीं रैंक हासिल की है वहीं 2020 में 130 वीं रैंक हासिल की थी. स्मरणीय है एक रिपोर्ट की तुलना दूसरी रिपोर्ट के साथ नहीं की जा सकती है क्योंकि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं समय-समय पर आंकड़े संशोधित करती रहती हैं.
  • लेकिन इसी रिपोर्ट में दी गई टेबल 2, ऐसे आंकड़ों को लेकर बनाई गई है जिनकी तुलना की जा सकती है. 
  • टेबल 2 के अनुसार 1990 से लेकर 2021 तक औसत वार्षिक मानव विकास सूचकांक में भारत के लिए वृद्धि 1.22% रही वहीं चीन के लिए यह वृद्धि 1.50% रही.
  • भारत को इस रिपोर्ट में मध्यम मानव विकास समूह वाले देशों में रखा गया है. परन्तु भारत का मूल्य (0.633) मध्यम मानव विकास समूह वाले देशों के औसत मूल्य (0.636) से कम है.

रिपोर्ट में मानव विकास सूचकांक के मूल्य को मौजूद असमानता के साथ समायोजित किया जाता है. समायोजन के बाद भारत का एचडीआई स्कोर 25% की गिरावट के साथ 0.475 पर पहुँच गया है. 

लैंगिक असमानता सूचकांक-  महिला और पुरुष के मानव विकास सूचकांक मूल्यों में अंतर को लैंगिक असमानता अनुपात के रूप में देखते हैं.

वर्ष 2021 में भारत को लैंगिक असमानता सूचकांक में 170 देशों में से 122 वीं रैंक प्राप्त हुई है. भारत का लैंगिक असमानता सूचकांक मूल्य 0.490 था. वहीं चीन का 0.192, बांग्लादेश का 0.530, पाकिस्तान का 0.534. (170 देशों में इनकी रैंक क्रमश: 48वीं, 131वीं, 135वीं )

भारतीय संसद की कुल सीटों में से 13.4 प्रतिशत सीटों पर महिला सदस्य बैठती हैं वहीं चीन में यह आंकड़ा 24.9% हो जाता है (2021 के आंकड़ों के अनुसार)

2017 से 2020 के दौरान भारत में सैन्य गतिविधियों पर किया गया खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 2.9% था. इसी समय काल में चीन का 1.7%, पाकिस्तान का 4.0%, बांग्लादेश का 1.3%, श्रीलंका का 1.9%, ब्रिटेन का 2.2%, संयुक्त राज्य अमेरिका का 3.7% जीडीपी का भाग सैन्य गतिविधियों पर खर्च किया जाता है.

2021 में भारत की 41.8% वयस्क महिलाओं (25 वर्ष या उससे ऊपर) ने कम से कम माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त की थी अगर इसकी तुलना पुरुषों  से करें तो पुरुषों में यह आंकड़ा 53.8% पर पहुंच जाता है.

2021 में महिलाओं (15 वर्ष और उससेऊपर) में श्रम बल भागीदारी दर 19.3 प्रतिशत थी वहीं पुरुषों में श्रम बल भागीदारी दर 70.1% थी. अगर चीन में देखें तो महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी दर 61.6% थी और पुरुषों की 74.3%.

श्रम बल भागीदारी दर से तात्पर्य 15 वर्ष या उससे ऊपर के ऐसे लोग जो या तो कहीं कार्यरत हैं या फिर रोजगार की तलाश में हैं, का कुल काम करने की उम्र वाले लोगों के साथ अनुपात. यानी श्रम बल भागीदारी दर अर्थव्यवस्था में नौकरियों की मांग को दर्शाता है.

वर्ष 2017 में प्रति दस लाख जीवित बच्चों के जन्म पर 135.0 महिलाओं की मृत्यु हुई थी.

वर्ष 2021 में 15 से 18 वर्ष की प्रति 1000 किशोरियों ने 17.2 बच्चों को जन्म दिया था.मानव के विकास में पर्यावरण भी एक प्रमुख कारक है इसलिए मानव विकास रिपोर्ट में  "प्लेनेटरी प्रेशर एडजस्ट एचडीआई" (P-HDI) की घोषणा की जाती है. वर्ष 2021 में भारत के लिए इसका (P-HDI) मान 0.609 था.

गरीबी और असमानता

भारत में पिछले दशक में बहुआयामी गरीबी को कम करने में बेहतरीन काम किया है. भारत का हेड काउंट अनुपात (Head Count Ratio- HCR) 2015–16 में 27.9% की कमी हुई थी.

समाज में गरीबी या गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को दर्शाने के लिए हेड काउंट अनुपात का प्रयोग किया जाता है. 

भारत में बहुआयामी गरीबी का हेड काउंट अनुपात आय के हेड काउंट अनुपात से 6% पॉइंट अधिक है. तात्पर्य है गरीबी रेखा से ऊपर जीवन जीने वाला व्यक्ति भी स्वास्थ्य, शिक्षा या किसी अन्य मापदंड में विचलन प्राप्त करता होगा.
2005–06 से 2015–16 के बीच बहुआयामी गरीबों की संख्या में 273 मिलियन की कमी आई थी.

2015-16 में बहुआयामी गरीबी इंडेक्स का मान अनुसूचित जनजाति के लिए 0.232, अनुसूचित जाति के लिए 0.147, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 0.118, इन तीनों श्रेणियों से इतर वाले समूह के लिए 0.066, ना ही कोई जाति और ना ही किसी जनजाति के लिए 0.093 था.
2010 से 2021 के बीच में गिनी गुणांक का मान भारत के लिए 35.7, चीन के लिए 38.2, बांग्लादेश के लिए 32.4, पाकिस्तान के लिए 29.6, श्रीलंका के लिए 39.3 और भूटान के लिए 37.4 था.गिनी गुणांक में जीरो से लेकर 100 तक असमानता को मापा जाता है.

गिनी गुणांक में जीरो मान का मतलब पूरी तरह से समानता होता है.

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संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी की गई [inside]मानव विकास रिपोर्ट 2020: द नेक्सट फर्न्टियर – ह्युमन डेवलपमेंट एंड द मानव विकास और एंथ्रोप्रसीन (दिसंबर 2020 में जारी)[/inside] के अनुसार (देखने के लिए कृपया यहां, यहां, यहां, यहां, यहां और यहां क्लिक करें):

मानव विकास

मानव विकास रिपोर्ट 2020 में साल 2019 के लिए 189 देशों का मानव विकास सूचकांक(मान और रैंक) और 152 देशों के लिए असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक (IHDI) के साथ-साथ 167 देशों के लिए लैंगिक (जेंडर) विकास सूचकांक (GDI), 162 देशोंके लिए लैंगिक(जेंडर) असमानता सूचकांक (GII), और 107 देशों के लिए बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) प्रस्तुत किया गया है.

• 2019 में, 189 देशों और संयुक्त राष्ट्र के मान्यता प्राप्त प्रदेशों के बीच भारत की मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग 131वीं (एचडीआई वेल्यू 0.645) थी, जबकि चीन की रैंकिंग 85वीं (एचडीआई वेल्यू 0.761), श्रीलंका की 72वीं (एचडीआई वेल्यू 0.782), भूटान की 129वीं (एचडीआई वेल्यू 0.654), बांग्लादेश की 133वीं (एचडीआई वेल्यू 0.632) और पाकिस्तान की 154वीं (एचडीआई वेल्यू 0.557) रैंकिंग थी.

• 2019 के लिए भारत की एचडीआई वेल्यू 0.645– है, जिससे कि देश को मध्यम मानव विकास श्रेणी में स्थान मिला है – यह 189 देशों में से 131वें नंबर पर है.

• 189 देशों और संयुक्त राष्ट्र मान्यता प्राप्त क्षेत्रों में साल 2018 के लिए भारत की एचडीआई रैंक 130 थी, जो साल 2019 में कम होकर 131वें स्थान पर खिसक गई है. भारत के मामले में, मानव विकास रिपोर्ट 2020 पर भारत के लिए ब्रीफिंग नोट के अनुसार, 2019 के लिए एचडीआई का वेल्यू 0.645 था और 2018 के लिए यह 0.642 था.

मानव विकास रिपोर्ट 2019: आजीविका, औसत, आज से परे: 21 वीं सदी में मानव विकास में असमानताएं (दिसंबर 2019 में जारी) रिपोर्ट में साल 2018 के लिए 189 देशों में भारत की मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग 129 वीं (एचडीआई मान 0.117) थी.

क्योंकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां ​​अपनी डेटा श्रृंखला में लगातार सुधार करती रहती हैं, इसलिए मानव विकास रिपोर्ट 2020 में प्रस्तुत एचडीआई वेल्यू और रैंक सहित डेटा – पहले के संस्करणों में प्रकाशित डेटा के साथ तुलनीय नहीं हैं.

मानव विकास रिपोर्ट 2020 में भारत के लिए संक्षिप्त नोट यह बताता है कि अंतर्निहित डेटा और उद्देश्यों के समायोजन (अर्थात न्यूनतम और अधिकतम मूल्यों) और बदलावों के कारण वेल्यू और रैंकिंग की तुलना करना भ्रामक है. पाठकों को 2020 की विकास रिपोर्ट में तालिका -2 ( मानव विकास सूचकांक रुझान) का हवाला देकर एचडीआई वेल्यूज में प्रगति का आकलन करने की सलाह दी जाती है. यह तालिका -2 संकेतकों, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला के आंकड़ों पर आधारित है और इस प्रकार, समय के साथ वेल्यू और रैंक में वास्तविक परिवर्तन दिखाती है, जो वास्तविक प्रगति वाले देशों को दर्शाती है. वेल्यूज में छोटे बदलाव को सावधानी के साथ व्याख्या की जानी चाहिए क्योंकि सेंपल भिन्नता के कारण सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं हो सकते हैं. सामान्यतया, किसी भी संयुक्त सूचकांक में तीसरे दशमलव स्थान के स्तर पर परिवर्तन को महत्वहीन माना जाता है.

1990 और 2019के बीच, भारत के लिए औसत वार्षिक एचडीआई वृद्धि (सुसंगत संकेतक, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला डेटा के आधार पर) 1.42 प्रतिशत, चीन के लिए 1.47 प्रतिशत, बांग्लादेश के लिए 1.64 प्रतिशत, पाकिस्तान के लिए 1.13 प्रतिशत और श्रीलंका के लिए 0.90 प्रतिशत थी.

1990 और 2019 के बीच, भारत की एचडीआई वेल्यू 0.429 से बढ़कर 0.645 (संगत संकेतक, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला डेटा के आधार पर) हो गई – यानी 50.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

संकेतकों, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला के आंकड़ों के आधार पर, 1990 में भारत की एचडीआई वेल्यू 0.429, साल 2000 में 0.495, साल 2010 में 0.579, साल 2014 में 0.616, साल 2015 में 0.624, साल 2017 में 0.640, साल 2018 में 0.642 और साल 2019 में 0.645 थी.

2019 में, जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा 69.7 वर्ष थी, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 12.2 वर्ष थे, स्कूली शिक्षा के वर्ष 6.5 वर्ष और वर्ष 2017 में क्रय शक्ति समता के हिसाब से सकल राष्ट्रीय आय (GNI) प्रति व्यक्ति(पीपीपी) $ 6,681 थी.

1990 और 2019 के बीच, जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा में 11.8 साल की वृद्धि हुई, औसत स्कूली शिक्षा में 3.5 साल और अपेक्षित स्कूली शिक्षा में 4.5 साल की वृद्धि हुई. 1990 और 2019 के बीच भारत का सकल राष्ट्रीय आय (GNI) प्रति व्यक्ति लगभग 273.9 प्रतिशत बढ़ गया है.

भारत के लिए वर्ष 2019 की एचडीआई वेल्यू 0.645 का मान मध्यम मानव विकास समूह के देशों के लिए 0.631 के औसत से ऊपर है और दक्षिण एशिया के देशों के लिए औसत 0.641 से ऊपर है.

वर्ष 2019 के लिए भारत की एचडीआई वेल्यू 0.645 थी. हालांकि, जब असमानता के लिए वेल्यू को छूट दी जाती है, तो एचडीआई 0.475 तक गिर जाता है, जिससे कि एचडीआई आयाम सूचकांकों के वितरण में असमानता के कारण 26.4 प्रतिशत का नुकसान होता है. बांग्लादेश और पाकिस्तान क्रमशः 24.4 प्रतिशत और 31.1 प्रतिशत की असमानता के कारण नुकसान दिखाते हैं. मध्यम एचडीआई देशों के लिए असमानता के कारण औसत नुकसान 26.3 प्रतिशत था और दक्षिण एशिया के लिए यह 25.9 प्रतिशत था. भारत के लिए मानव असमानता का गुणांक 25.7 प्रतिशत था.

साल 2019 में महिलाओं के मामले में भारत की एचडीआई (HDI) वेल्यू 0.573 थी, जोकि पुरुषों की वेल्यू 0.699 के मुकाबले विपरीत थी.

2019 में, भारत के लैंगिक विकास सूचकांक का मूल्य – महिला-पुरुष एचडीआई अनुपात – 0.820 था, जो चीन (जीडीआई मूल्य 0.957), नेपाल (जीडीआई मूल्य 0.933), भूटान (जीडीआई मूल्य 0.921), श्रीलंका (GDI मूल्य 0.955) और बांग्लादेश (GDI मूल्य 0.904)से कम है.

style="font-family:Calibri,sans-serif">• 2019 के दौरान, भारत लैंगिक असमानता सूचकांक (GII) के संदर्भ में 162 देशों के बीच 123वें (GII मूल्य 0.488) स्थान पर था, जबकि चीन 162 देशों में से 39वें (GII मूल्य 0.168) स्थान पर रहा. इसकी तुलना में, बांग्लादेश (GII मूल्य 0.537) और पाकिस्तान (GII मूल्य 0.538) क्रमशः इस सूचकांक पर 133 वें और 135 वें स्थान पर थे.

• 2019 में भारतीय संसद में लगभग 13.5 प्रतिशत सीटें भारतीय महिलाओं के पास थीं, जबकि चीन में 24.9 प्रतिशत महिलाएं संसद की सदस्या थीं.

2009-2019 के दौरान, उच्च और मध्यम प्रबंधन स्तर की नौकरियों में भारतीय महिलाओं की हिस्सेदारी 13.7 प्रतिशत, बांग्लादेश 11.5 प्रतिशत, श्रीलंका 22.5 प्रतिशत, नॉर्वे 32.8 प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम 34.9 प्रतिशत और संयुक्त राज्य अमेरिका 40.9 प्रतिशत थी.

भारत का सैन्य खर्च (अर्थात, सशस्त्र बलों पर सभी मौजूदा और पूंजीगत खर्च, जिसमें शांति सेना शामिल हैं; रक्षा मंत्रालय और रक्षा परियोजनाओं में लगे हुए अन्य सरकारी एजेंसियां; अर्धसैनिक बल, यदि इन्हें सैन्य अभियानों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है😉 भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में 2.4 प्रतिशत था. वही 2015-2018 के दौरान यह सैन्य खर्च, चीन में 1.9 प्रतिशत, पाकिस्तान में 4.0 प्रतिशत, बांग्लादेश में 1.4 प्रतिशत, श्रीलंका में 1.9 प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम में 1.8 प्रतिशत और अमेरिका में 3.2 प्रतिशत था.

2015-19 की अवधि के दौरान भारत में, 27.7 प्रतिशत वयस्क महिलाएं (25 वर्ष और उससे अधिक) शिक्षा के क्षेत्र में कम से कम माध्यमिक शिक्षा हासिल कर पाईं, जबकि उनके पुरुष समकक्षों की संख्या 47.0 प्रतिशत थी.

2019 में भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (15 वर्ष और अधिक) 20.5 प्रतिशत थी जबकि पुरुषों की श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) 76.1 प्रतिशत था. चीन में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर 60.5 प्रतिशत और पुरुष श्रम शक्ति भागीदारी दर 75.3 प्रतिशत थी. श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) को श्रम बल में प्रति 100 व्यक्ति (जनसंख्या पर) की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है.

वर्ष 2017 में, प्रत्येक 100,000 जीवित जन्मों पर 133.0 महिलाओं की गर्भावस्था से संबंधित कारणों से मृत्यु हो गई; और 2015-2020 के दौरान 15-19 वर्ष की आयु की 1,000 महिलाओं पर प्रति किशोर जन्म दर 13.2 थी.

हाल ही में, पर्यावरणीय मुद्दों पर भी एक अनिवार्य उपाय के रूप में विचार दिया गया है. इसलिए, प्लैनेटरी प्रैशर-एडजस्टेड एचडीआई पेश किया गया था, जो कम उत्सर्जन और संसाधन उपयोग के साथ उच्च एचडीआई वेल्यूज को प्राप्त करने के लिए संभावनाओं की भावना प्रदान करता है. 2019 में भारत केलिए प्लैनेटरी प्रैशर-एडजस्टेड HDI (PHDI) वेल्यू 0.626 थी.

गरीबी और असमानता

पिछले दशक में बहुआयामी गरीबी के मोर्चे पर भारत की महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूदअभी भी 27.9 प्रतिशत भारतीय बहुआयामी गरीबी की गिरफ्त में हैं.

आय आधारित गरीबी के मुकाबले बहुआयामी गरीबी 6.7 प्रतिशत अधिक है. इसका मतलब है कि आय आधारित गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले व्यक्ति अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा और / या अच्छे जीवन यापन से वंचित हो सकते हैं.

सबसे हालिया सर्वेक्षण डेटा जो सार्वजनिक रूप से भारत के एमपीआई अनुमान 2015/2016 के लिए उपलब्ध थे. भारत में, कुल आबादी का 27.9 प्रतिशत (377,492 हजार यानी 37.74 करोड़) गरीब हैं, जबकि 19.3 प्रतिशत (260,596 यानी 26.05 करोड़ लोग) अतिरिक्त लोगों को बहुआयामी गरीबी के रूप में वर्गीकृत किया गया है. भारत में वंचितता (तीव्रता) की खाई, जो कि बहुआयामी गरीबी में लोगों द्वारा अनुभव किए गए औसत अभाव स्कोर है, 43.9 प्रतिशत थी. आबादी का वह हिस्सा, जो कि अभावों की तीव्रता से समायोजित बहुसंख्यक गरीब है, उसको मापने के लिए बहुआयामी गरीबी सूचकांक का इस्तेमाल किया जाता है.भारत का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) 0.123, बांग्लादेश और पाकिस्तान में क्रमशः 0.104 और 0.198 है.

• 2005/2006 और 2015/2016 के बीच भारत में 27.3 करोड़ से अधिक लोग बहुआयामी गरीबी रेखा से बाहर हुए हैं. औसतन, सबसे गरीब राज्यों और सबसे गरीब समूहों ने तीव्र गति से प्रगति की है.

2010-2018 के दौरान भारत का जीनी(Gini) गुणांक (आय असमानता का आधिकारिक मापतंत्र, जो शून्य और 100 के बीच भिन्न होता है, 0 पूर्ण समानता दर्शाती है और 100 पूर्ण असमानता की ओर इशारा करती है) 37.8 था, जबकि चीन का 38.5 था, बांग्लादेश 32.4 था, पाकिस्तान 33.5, श्रीलंका 39.8 और भूटान 37.4 था.

भारत में जीडीपी के श्रम शेयरों में मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा हस्तांतरण, साल 2004 में 60.7 प्रतिशत, 2005 में 58.0 प्रतिशत, 2010 में 56.8 प्रतिशत, 2011 में 54.8 प्रतिशत, 2012 में 53.2 प्रतिशत, 2013 में 51.8 प्रतिशत, 51.5 प्रतिशत 2014 में,49.2 प्रतिशत, 2016में 49.2 प्रतिशत और 2017 में 49.0 प्रतिशत थे.

[मानव विकास रिपोर्ट 2020का सारांश तैयार करने में इनक्लुसिव मीडिया फॉर चेंज टीम की सहायता शिवांगिनी पिपलानी ने की है. शिवांगिनी, बर्लिन स्कूल ऑफ बिजनेस एंड इनोवेशन से एमए इन फाइनेंस एंड इन्वेस्टमेंट (प्रथम वर्ष) कर रही हैं. उन्होंने दिसंबर 2020 में इनक्लुसिव मीडिया फॉर चेंज प्रोजेक्ट में अपने विंटर इंटर्नशिप के हिस्से के रूप में यह काम किया है.]

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 यूएनडीपी द्वारा प्रस्तुत [inside]मानव विकास रिपोर्ट 2019 [/inside] :
 
 मानव विकास रिपोर्ट 2019: आजीविका, औसत, आज से परे: 21 वीं सदी में मानव विकास में असमानताएं (दिसंबर 2019 में जारी), जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी किया गया है. इसे देखने के लिए कृपया यहांयहांयहां और यहां क्लिक करें.
 
मानव विकास
  
• 2018 में, 189 देशों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त क्षेत्रों में भारत मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में 129वें पायदान पर (एचडीआई वेल्यू 0.647) था, जबकि चीन 85वें (एचडीआई वेल्यू 0.758), श्रीलंका 71वें (एचडीआई वेल्यू 0.780), भूटान 134वें  (एचडीआई वेल्यू 0.617), बांग्लादेश 135 वें (एचडीआई वेल्यू 0.614) और पाकिस्तान 152 वें पायदान (एचडीआई वेल्यू 0.560) पर था.
 
• 2017 में, भारत एचडीआई रैंकिंग में 189 देशों में से 129वें पायदान पर था, जो 2018 एचडीआई रैंकिंग के बराबर ही थी. मानव विकास रिपोर्ट 2019 के अनुसार, 2018 में भारत की मानव विकास सूचकांक वेल्यू 0.647 और 2017 में 0.643 थी.
 
• मानव विकास सूचकांक और संकेतक रिपोर्ट 2018 के अनुसार, सांख्यिकीय बदलाव के बाद मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग में साल 2017 में भारत 189 देशों के बीच 130 वें पायदान पर (एचडीआई वेल्यू 0.640) था.
 
• मानव विकास रिपोर्ट 2019 रिपोर्ट यह कहती है कि रिपोर्ट पढ़ते वक्त थोड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत है. इसमें उपलब्ध डेटा और निर्धारित लक्ष्यों में सुधार (अर्थात न्यूनतम और अधिकतम मूल्यांकों) के कारण वेल्यूज़ (मूल्यांकों) और रैंकिंग की तुलना करना भ्रामक है. पाठक 2019 की नई मानव विकास रिपोर्ट में तालिका-2 (‘एचडीआई ट्रेंड्स’) का हवाला देकर मानव विकास सूचकांकों में प्रगति का आकलन करें. तालिका -2 तर्कयुक्त संकेतकों, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला के आंकड़ों पर आधारित है, जो समय के साथ मूल्यांकों और रैंकिंग में वास्तविक परिवर्तन दिखाती है और सही मायनों में प्रगति करने वाले देशों को दर्शाती है. मूल्यांकों के छोटे से बदलाव की सावधानी के साथ व्याख्या की जानी चाहिए क्योंकि वे सैम्पलिंग में मौजूद भिन्नताओं के कारण सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं हो सकते हैं. आमतौर पर किसी भी संयुक्त सूचकांक में तीसरे दशमलव स्थान में हुए बदलाव को महत्वहीन माना जाता है.
 
• 1990 और 2018 के बीच, औसत वार्षिक मानव सूचकांक के मूल्यांक में (तर्कयुक्त संकेतक, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला डेटा के आधार पर) भारत की 1.46 प्रतिशत, चीन की 1.48 प्रतिशत, बांग्लादेश की 1.65 प्रतिशत, पाकिस्तान की 1.17 प्रतिशत और श्रीलंका की 0.90 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी.
• 1990 और 2018 के बीच, भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्यांक 0.431 से बढ़कर 0.647 ( तर्कयुक्त संकेतक, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला डेटा के आधार पर) हुआ, यानी इस बीच 50.12 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई.
 
• तर्कयुक्त संकेतक, कार्यप्रणाली और समय-श्रृंखला के आंकड़ों के आधार पर, 1990 में भारत का मानव विकास सूचकांक का मूल्यांक 0.431, 2000में 0.497, 2010 में 0.581, 2013 में 0.607, 2015 में 0.627, 2017 में 0.637 और 2018 में 0.647 था.
 
• 2018 में, जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा 69.4 वर्ष थी, स्कूली शिक्षा के लिए अपेक्षित वर्ष 12.3 वर्ष, स्कूली शिक्षा के औसत 6.5 वर्ष थे और क्रय शक्ति समता के हिसाब से सकल राष्ट्रीय आय (GNI) प्रति व्यक्ति $ 6,829 थी.
 
• 1990 और 2018 के बीच, जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा में 11.6 वर्ष, औसत स्कूली शिक्षा में 3.5 वर्ष और अपेक्षित स्कूली शिक्षा में 4.7 वर्ष की बढ़ोतरी हुई है. 1990 और 2018 के बीच भारत की सकल राष्ट्रीय आय (GNI) प्रति व्यक्ति लगभग 262.9 प्रतिशत बढ़ी है.
 
• वर्ष 2018 में भारत की मानव विकास सूचकांक वेल्यू 0.647 का मान मध्यम मानव विकास समूह के देशों के 0.634 मान के औसत से ऊपर और दक्षिण एशिया के देशों के 0.642 के मान के औसत से ऊपर है.
 
• 2018 में भारत की मानव विकास सूचकांक वेल्यू 0.647 थी. हालांकि, जब असमानता के लिए वेल्यू सिस्टम को हटाते हैं, तो मानव विकास सूचकांक 0.477 तक गिर जाता है, मानव विकास सूचकांक में असमानता के कारण 26.3 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई. असमानता के कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान के मामले में भी क्रमशः 24.3 प्रतिशत और 31.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज  की गई. मध्यम मानव विकास सूचकांक वाले देशों में असमानता के कारण औसतन 25.9 प्रतिशत और दक्षिण एशिया के देशों में भी 25.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. भारत का मानव असमानता का गुणांक 25.7 प्रतिशत था.
 
• साल 2018 में महिलाओं के मामले में भारत की एचडीआई (HDI) वेल्यू 0.574 थी, जोकि पुरुषों की वेल्यू 0.692 के मुकाबले एकदम विपरीत थी. 
 
• 2018 में, भारत के लिंग विकास सूचकांक (GDI) का मूल्यांक(वेल्यू), पुरुष एचडीआई के मुकाबले महिला एचडीआई अनुपात 0.829 था, जो कि चीन (GDI वेल्यू 0.961), नेपाल (GDI वेल्यू 0.897), भूटान (GDI वेल्यू 0.893), श्रीलंका (GDI वेल्यू 0.938) और बांग्लादेश (GDI वेल्यू 0.895) से कम है.
 
• 2018 के दौरान, भारत लैंगिक असमानता सूचकांक (GII) के संदर्भ में 162 देशों में 122 वें (GII वेल्यू 0.501) स्थान पर था, जबकि चीन 162 देशों में से 39 वें (GII वेल्यू 0.163) स्थान पर था. इसकी तुलना में, बांग्लादेश (GII वेल्यू 0.536) और पाकिस्तान (GII वेल्यू 0.547) क्रमशः इस सूचकांक में 129 वें और 136 वें स्थान पर थे.
 
• 2018 में भारतीय संसद में लगभग 11.7 प्रतिशत सीटें भारतीय महिलाओं के पास थीं, जबकि चीन में 24.9 प्रतिशत महिलाएं संसद की सदस्या थीं.
 
• 2010-2018 के दौरान, उच्च और मध्यम प्रबंधन स्तर की नौकरियों में भारतीय महिलाओं की हिस्सेदारी 13.0 प्रतिशत, बांग्लादेश में 11.5 प्रतिशत, श्रीलंका में 25.6 प्रतिशत, नॉर्वे में 33.5 प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम में 34.2 प्रतिशत और संयुक्त राज्य अमेरिका में 40.5 प्रतिशत थी.
 
• 2010-2018 के दौरान, भारत का सैन्य खर्च (अर्थात, सशस्त्र बलों पर सभी मौजूदा और पूंजीगत खर्च, जिसमें शांति सेना शामिल हैं; रक्षा मंत्रालय और रक्षा परियोजनाओं में लगे हुए अन्य सरकारी एजेंसियां; अर्धसैनिक बल, यदि इन्हें सैन्य अभियानों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है;) भारत के सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) के अनुपात में 2.4 प्रतिशतथा. वही 2010-2018 के दौरान यह सैन्य खर्च, चीन में 1.9 प्रतिशत, पाकिस्तान में 4.0 प्रतिशत, बांग्लादेश में 1.4 प्रतिशत, श्रीलंका में 1.9 प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम में 1.8 प्रतिशत और अमेरिका में 3.2 प्रतिशत था.
 
• 2010-18 की समयावधि में भारत में अपने 63.5 प्रतिशत पुरुष समकक्षों की तुलना में सिर्फ 39.0 प्रतिशत वयस्क महिलाएं (25 वर्ष और उससे अधिक) ही किसी भी तरह की माध्यमिक शिक्षा हासिल कर पाई हैं.
 
• साल 2018 में भारत में 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर (labour force participation rate-LFPR) 23.6 प्रतिशत थी जबकि पुरुषों की श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) 78.6 प्रतिशत थी. चीन में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) 61.3 प्रतिशत और पुरुषों की श्रम शक्ति भागीदारी दर 75.9 (LFPR) प्रतिशत थी. श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) को श्रम बल में प्रति 100 व्यक्ति (जनसंख्या पर) की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है.
 
• प्रत्येक 100,000 नवजातों को जन्म देने के दौरान, 174.0 महिलाएं गर्भावस्था से संबंधित कारणों से मर जाती हैं; और 15-19 वर्ष की महिलाओं में प्रति 1,000 महिलाओं पर किशोर जन्म दर 13.2 जन्म थी.
 
गरीबी और असमानता
 
• पिछले दशक में बहुआयामी गरीबी के मोर्चे पर भारत की महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, अभी भी 27.9 प्रतिशत भारतीय बहुआयामी गरीबी की गिरफ्त में हैं.
 
• आय आधारित गरीबी के मुकाबले बहुआयामी गरीबी 6.7 प्रतिशत अधिक है. इसका मतलब है कि आय आधारित गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले व्यक्ति अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा और / या अच्छे जीवन यापन से वंचित हो सकते हैं.
 
• भारत की कुल आबादी का 27.9 प्रतिशत (373,735000 यानी 37.37 करोड़) गरीब हैं, जबकि 19.3 प्रतिशत (258,002000 यानी 25.8 करोड़ लोग) अतिरिक्त लोगों को बहुआयामी गरीबी के रूप में वर्गीकृत किया गया है. 
 
• 2005/2006 और 2015/2016 के बीच भारत में 27.1 करोड़ से अधिक लोग बहुआयामी गरीबी रेखा से बाहर हुए हैं. औसतन, सबसे गरीब राज्यों और सबसे गरीब समूहों ने तीव्र गति से प्रगति की है.
 
• मानव विकास संकेतकों में सुधार के बावजूद भी समानांतर असमानताएं हैं. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग मानव विकास संकेतकों में समाज के बाकी हिस्सों से काफी कमजोर हैं, जिनमें शिक्षा प्राप्ति और डिजिटल प्रौद्योगिकियों तक इन समूहों की पहुंच शामिल है. ये समूह सदियों से अपमान और बहिष्कार का सामना कर रहे हैं. आधुनिक भारत ने इन समूहों के लिए सकारात्मक कार्रवाई, सकारात्मक भेदभाव और आरक्षण नीतियों के माध्यम से असमानताओं का निवारण करने का प्रयास किया है.
 
• 2005/06 के बाद से मानव विकास के बुनियादी क्षेत्रों में असमानताओं में कमी आई है. उदाहरण के लिए, शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समूह पाँच या अधिक वर्ष शिक्षा पाने वाले लोगों के अनुपात में शेष आबादी के साथ बराबरी की तरफ बढ़ रहे हैं. इसी तरह, मोबाइल फोन के उपयोग और उत्थान में समानता की ओर अग्रसर हैं.
 
• मानव विकास के संवर्धित क्षेत्रों में असमानताओं में वृद्धि हुई है, जैसे कि कंप्यूटरों की पहुंच और 12 या अधिक वर्षों तक शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में असमानताएं बढ़ी हैं. 2005/2006 में जो समूह को अधिकसशक्त थे, वे सबसे अधिक मजबूत हुए हैं, और हाशिए पर रहने वाले समूह आगे तो बढ़ रहे हैं लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से प्रगति के बावजूद और पिछड़ रहे हैं.
 
• 2010-2017 के दौरान, भारत का जीनी(Gini) गुणांक (आय असमानता का आधिकारिक मापतंत्र, जो शून्य और 100 के बीच भिन्न होता है, 0 पूर्ण समानता दर्शाती है और 100 पूर्ण असमानता की ओर इशारा करती है) 35.7 था, जबकि चीन का 38.6 था, बांग्लादेश का 32.4, पाकिस्तान का 33.5, श्रीलंका का 39.8 और भूटान का 37.4 था.
 
• कई देशों में सार्वजनिक तौर पर टैक्स का डेटा उपलब्ध नहीं है. ऐतिहासिक तौर पर प्रशासनिक टैक्स डेटा की उपलब्धता किसी देश में धन या इनकम टैक्स के अस्तित्व से संबंधित रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 1913 में और भारत में 1922 में जब टैक्स सिस्टम लागू हुआ, तभी से टैक्स के आंकड़ों को सार्वजनिक कर प्रकाशित किया जाने लगा। इस तरह की जानकारी टैक्स प्रशासन के लिए टैक्स दरों को ठीक से प्रशासित करने के लिए और करदाताओं को टैक्स नीति के बारे में सूचित करने के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन सरकारें कभी-कभी सार्वजनिक रूप से डेटा जारी करने को तैयार नहीं होती हैं. 
 
• प्रत्येक डेटा स्रोत की सीमाओं से निपटने के लिए एक तरीका विभिन्न प्रकार के स्रोतों से डेटा को इकट्ठा करना है, विशेष रूप से सर्वेक्षण डेटा के साथ प्रशासनिक टैक्स डेटा को जोड़ना.
 
• शीर्ष 10 प्रतिशत की आय हिस्सेदारी के आधार पर आय असमानता 1980 के बाद से अधिकांश क्षेत्रों में अलग-अलग दरों पर बढ़ी है। रूसी संघ में वृद्धि चरम पर थी, जो 1990 में सबसे अधिक समान देशों में से एक था (कम से कम इस मापक के अनुसार) वह केवल पांच वर्षों में सबसे असमान में से एक बन गया। आय असमानता में वृद्धि भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी स्पष्ट रूप से देखी गई, हालांकि रूसी संघ जितनी तेज नहीं चीन में, एक बार तेजी से वृद्धि के बाद, 2000 के दशक के मध्य में असमानता स्थिर होने लगी. शीर्ष 10 प्रतिशत को संयुक्त राज्य में 47 प्रतिशत आय, चीन में 41 प्रतिशत और भारत में 55 प्रतिशत आय प्राप्त हुई.
 
• यूरोपियन यूनियन 34 प्रतिशत के साथ शीर्ष 10 प्रतिशत शेयर प्रीटेक्स आय के आधार पर सबसे समान क्षेत्र के रूप में है. मध्य पूर्व सबसे असमान है, शीर्ष 10 प्रतिशत में प्रीटेक्स आय का 61 प्रतिशत है.
 
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य
 
• मानव विकास की वैश्विक रैंकिंग में शीर्ष पांच स्थान हैं: नॉर्वे (0.954), स्विट्जरलैंड (0.946), आयरलैंड (0.942), जर्मनी (0.939) और हांगकांग (0.939).
 
• निचले पांच हैं: बुरुंडी (0.423), दक्षिण सूडान (0.413), चाड (0.401), मध्य अफ्रीकी गणराज्य (0.381) और नाइजर (0.377).
 
• मानव विकास में पुरुषों की तुलना में महिलाएं कमतर स्तर पर हैं. ये लिंग अंतराल कम एचडीआई स्कोर वाले देशों में बढ़ता जाता है. दुनिया भर में, महिलाओं की औसत मानव विकास सूचकांक पुरुषों की तुलना में 6 प्रतिशत कम है. वैश्विक स्तर पर कई देशों में महिलाओं और पुरुषों के बीच एचडीआई का अंतर महिलाओं की कम आय और कम शिक्षा के कारण है.
 
• मानव विकास सूचकांक में लैंगिकभेद उन कम मानव विकास वाले देशोंके समूह में ज्यादा गहरा है जहां महिलाओं का मानव विकास सूचकांक पुरुषों की तुलना में 14.2 प्रतिशत कम है. वही दूसरी ओर, बेहतर मानव विकास सूचकांक समूह वाले देशों में, औसतन, लिंग भेद 2.1 प्रतिशत है.
 
• जेंडर असमानता सूचकांक द्वारा मापी गई महिलाओं और पुरुषों के बीच सशक्तिकरण की खाई कम हो रही है, लेकिन बहुत धीमी गति से. संसदीय प्रतिनिधित्व (24.1 प्रतिशत सीटें) और जन्म दर (किशोर उम्र में प्रति 1000 महिलाओं पर 42.9 जन्म) में थोड़े-बहुत सुधार हुए हैं, लेकिन आर्थिक सशक्तीकरण की खाई अभी भी बनी हुई है (महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर) अभी भी पुरुषों की तुलना में 27 प्रतिशत अंक कम है.
 
• शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन यापन में मानव विकास लाभ का असमान वितरण सभी के लिए मानव विकास प्राप्त करने के लिए एक चुनौती बना हुआ है. असमानता समायोजित सूचकांक (आईएचडीआई) से पता चलता है कि 2018 में जब एचडीआई संकेतकों में असमानताओं को ध्यान में रखा गया तो विश्व स्तर पर मानव विकास की प्रगति 20 प्रतिशत तक गिर गई थी.
 
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[inside]मानव विकास सूचकांक और संकेतक: 2018[/inside] सांख्यिकीय अद्यतन नामक रिपोर्ट, जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा तैयार किया गया है, के अनुसार, (कृपया उपयोग करने के लिए यहां, यहां और यहां क्लिक करें.)

• 2017 में, भारत की मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग 189 देशों के बीच 130वीं (एचडीआई वेल्यू 0.640), जबकि चीन की रैंकिंग 86वीं (एचडीआई वेल्यू 0.752), श्रीलंका की 76वीं (एचडीआई वेल्यू 0.770), भूटान की 134वीं (एचडीआई वेल्यू 0.612) थी, बांग्लादेश की 136 वीं (मानव विकास सूचकांक (एचडीआई)  वेल्यू 0.608) और पाकिस्तान का 150 वीं (मानव विकास सूचकांक (एचडीआई)  वेल्यू 0.562) रही.

• भारत की मानव विकास सूचकांक (एचडीआई)  रैंकिंग 2016 और 2017 के बीच 129 वें से 130 वें स्थान पर खिसक गई है, जबकि चीन की रैंकिंग समान समय अवधि में जस की तस 86वें स्थान पर रही है.

• 1990 और 2017 के बीच, भारत के लिए औसत वार्षिक मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) वृद्धि 1.51 प्रतिशत, चीन 1.51 प्रतिशत, बांग्लादेश 1.69 प्रतिशत, पाकिस्तान 1.23 प्रतिशत और श्रीलंका 0.78 प्रतिशत रही.

• 1990 और 2017 के बीच, भारत की मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) वेल्यू 0.427 से बढ़कर 0.640 हो गई (- 49.9 प्रतिशत की वृद्धि)

• 2017 में, जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा 68.8 वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 12.3 वर्ष, और औसत स्कूली शिक्षा के वर्ष 6.4 वर्ष और सकल राष्ट्रीय आय (GNI) प्रति व्यक्ति 2011 पीपीपी में $ 6,353 रही.

• भारत की एचडीआई स्कोर (0.640), साल 2017 के एचडीआई मध्यम मानव विकास समूह के देशों के लिए औसत 0.645 से नीचे है, लेकिन दक्षिण एशिया के देशों के लिए औसत 0.638 से ऊपर है.

• 2017 के लिए भारत का मानव विकास सूचकांक (एचडीआई)  0.640 था. हालांकि, जब असमानता के स्तर पर वेल्यू जोड़ी जाती है, तो एचडीआई 0.468 तक गिर जाता है, एचडीआई आयाम सूचकांकों के वितरण में असमानता के कारण 26.8 प्रतिशत का नुकसान होता है. बांग्लादेश और पाकिस्तान के एचडीआईक्रमशः 24.1 प्रतिशत और 31.0 प्रतिशत की असमानता के कारण नुकसान दिखाते हैं. मध्यम एचडीआई देशों के लिए असमानता के कारण औसत नुकसान 25.1 प्रतिशत था और दक्षिण एशिया के लिए यह 26.1 प्रतिशत था. भारत के लिए मानव असमानता का गुणांक 26.3 प्रतिशत था.

• भारत में जीनी गुणांक (आय असमानता को मापने का आधिकारिक सूत्र, जो शून्य और 100 के बीच भिन्न होता है, शून्य के साथ पूर्ण समानता और 100 पूर्ण असमानता को दर्शाता है) 35.1 था जबकि चीन का 42.2 था और भूटान 38.8 था.

• 2017 में भारत में महिलाओं का एचडीआई वेल्यू पुरुषों के 0.683 से विपरीत 0.575 था.

• 2017 में, भारत के लिंग विकास सूचकांक – पुरुष एचडीआई के मुकाबले महिला एचडीआई का अनुपात यानि जीडीआई वेल्यू – 0.841 था, जो चीन (जीडीआई वेल्यू 0.955), नेपाल (जीडीआई वेल्यू 0.925), भूटान (जीडीआई वेल्यू 0.893), श्रीलंका (जीडीआई वेल्यू 0.935) और बांग्लादेश (जीडीआई वेल्यू 0.881) से कम है.

• 2017 के दौरान, भारत ने लैंगिक असमानता सूचकांक के संदर्भ में 127वां (GII वेल्यू 0.524) जबकि चीन 189 देशों में से 36वें (GII वेल्यू 0.152) स्थान पर रहा. इसकी तुलना में, बांग्लादेश (GII वेल्यू 0.542) और पाकिस्तान (GII वेल्यू 0.541) क्रमशः इस सूचकांक पर 134 वें और 133 वें स्थान पर थे.

• 2017 में, भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) 174 था जबकि चीन में यह 27 था. मातृ मृत्यु अनुपात एक निश्चित समयावधि के दौरान प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों के दौरान मातृ मृत्यु की संख्या है.

• साल 2017 में, चीन के 24.2 प्रतिशत के मुकाबले भारत में लगभग 11.6 प्रतिशत संसदीय सीटों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्‍व है. दक्षिण एशिया और अरब देशों में यह क्रमश: 17.5 और 18 प्रतिशत है, जबकि लैटिन अमेरिका, कैरेबियन और ओईसीडी देशों में यह 29 प्रतिशत है.

• दक्षिण एशिया में 20 और 24 वर्ष की आयु के बीच की 29 प्रतिशत महिलाओं का विवाह उनके 18वें जन्‍मदिन से पहले हो गया था.

• भारत में 39.0 प्रतिशत वयस्क महिलाएं (25 वर्ष और उससे अधिक) 2010-17 की अवधि के दौरान अपने पुरुष समकक्षों के 63.5 प्रतिशत की तुलना में कम से कम कुछ माध्यमिक शिक्षा तक पहुंचीं.

• भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (15 वर्ष और उससे अधिक) 27.2 प्रतिशत थी जबकि पुरुष श्रम शक्ति भागीदारी दर 78.8 प्रतिशत थी. चीन में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर 61.5 प्रतिशत और पुरुष श्रम शक्ति भागीदारी दर 76.1 प्रतिशत थी. श्रम शक्ति भागीदारी दर को श्रम बल में प्रति 100 व्यक्ति (जनसंख्या पर) की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है.

• 2006-2016 की अवधि के दौरान वैधानिक पेंशन की आयु के अनुपात के रूप में वृद्धावस्था पेंशन प्राप्तकर्ता भारत में 24.1 प्रतिशत थे, जबकि चीन में यह आंकड़ा 100.0 प्रतिशत था.

• सब सहारन अफ्रीका में औसतन प्रति शिक्षक प्राइमरी स्‍कूल में 39 विद्यार्थी हैं, जबकि दक्षिण एशिया में प्रति शिक्षक 35 विद्यार्थी हैं. किन्‍तु ओईसीडी देशों और पूर्व एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र में और यूरोप तथा मध्‍य एशिया में प्राइमरी स्‍कूल में प्रति शिक्षक औसतन 16-18 विद्यार्थी हैं. ओईसीडी देशों और पूर्व एशिया तथा प्रशांत में प्रत्‍येक 10,000 लोगोंपर औसतन क्रमश: 29 और 28 चिकित्‍सक हैं,जबकि दक्षिण एशिया में केवल 8 और सब सहारन अफ्रीका में 2 भी नहीं हैं.

• वैश्विक मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग में शीर्ष पांच देश नॉर्वे (0.953), स्विट्जरलैंड (0.944), ऑस्ट्रेलिया (0.939), आयरलैंड (0.938) और जर्मनी (0.936) हैं.

• नीचे के पांच देश बुरुंडी (0.417), चाड (0.404), दक्षिण सूडान (0.388), मध्य अफ्रीकी गणराज्य (0.367) और नाइजर (0.354) हैं.

• दक्षिण एशिया: विकासशील क्षेत्रों में दक्षिण एशिया में मानव विकास सूचकांक की वृद्धि सबसे तेज रही है. 1990 से 45.3 प्रतिशत वृद्धि हुई है. इस अवधि के दौरान जीवन की संभावना 10.8 वर्ष की गति से बढ़ी है और बच्‍चों के लिए स्‍कूल में पढ़ने के अनुमानित वर्षों में 21 प्रतिशत वृद्धि हुई है. असमानताओं के कारण मानव विकास सूचकांक में करीब 26 प्रतिशत क्षति हुई है. मानव विकास सूचकांक के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच सबसे व्‍यापक 16.3 प्रतिशत का अंतर दक्षिण एशिया में है.

एचडीआई क्‍या है:

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) को 1990 में पहली मानव विकास रिपोर्ट में विकास के समग्र मानक के रूप में अपनाया गया था. जिसने राष्‍ट्रीय प्रगति के विशुद्ध आर्थिक आकलन को चुनौती दी. इसमें 189 देश और क्षेत्र शामिल हैं. मार्शल आइलैंड को पहली बार शामिल किया गया है. कोरिया लोकतांत्रिक जनवादी गणराज्‍य, मुनाको, नाउरू, सान मारिनो, सामोलिया और टुवालू के लिए मानव विकास सूचकांक की गणना नहीं की जा सकी. 2018 सांख्‍यकीय उन्‍नयन में प्रस्‍तुत मानव विकास सूचकांक रैंकिंग और स्‍तरों की तुलना इसीलिए पिछली मानव विकास रिपोर्ट में प्रकाशित मानव विकास सूचकांक रैंकिंग और स्‍तरों से सीधे नहीं की जा सकती.

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यूएनडीपी द्वारा तैयार [inside]मानव विकास रिपोर्ट 2016[/inside]: सभी के लिए मानव विकास के अनुसार (कृपया उपयोग करने के लिए यहां, यहां और यहां क्लिक करें.):
 
• 2015 में, 188 देशों में भारत की मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग 131 वीं (एचडीआई वेल्यू 0.624) रही, जबकि चीन की रैंकिंग 90 वीं (एचडीआई वेल्यू 0.738), भूटान की 132 वीं (एचडीआई वेल्यू 0.607), बांग्लादेश की 139 वीं (एचडीआई वेल्यू 0.579) और पाकिस्तान का 147 वीं (मानव विकास सूचकांक (एचडीआई)  वेल्यू 0.550) रैंकिंग थी.

• भारत की मानव विकास सूचकांक (एचडीआई)  रैंकिंग 2014 और 2015 के बीच 131 वें स्थान पर रही, जबकि चीन की रैंकिंग 2014 में 91 वें से सुधरकर साल 2015 में 90 वें स्थान पर रही है.

• 1990 और 2015 के बीच, भारत के लिए औसत वार्षिक मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) वृद्धि 1.52 प्रतिशत, चीन 1.57 प्रतिशत, बांग्लादेश 1.64 प्रतिशत, पाकिस्तान 1.24 प्रतिशत और श्रीलंका 0.82 प्रतिशत है.

• 1990 और 2015 के बीच, भारत का मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) वेल्यू 0.428 से बढ़कर 0.624 हो गया (- 45.7 प्रतिशत की वृद्धि). 1990 और 2015 के बीच, जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा 10.4 वर्ष बढ़ी,  औसत स्कूली शिक्षा के वर्ष 3.3 वर्ष बढ़े और अपेक्षित स्कूली शिक्षा के वर्ष 4.1 वर्ष बढ़े. 1990 और 2015 के बीच भारत की GNI प्रति व्यक्ति लगभग 223.4 प्रतिशत बढ़ी.

• भारत की एचडीआई वेल्यू 0.624 साल 2015 के मध्यम मानव विकास समूह के देशों के लिए एचडीआई 0.631 के औसत और दक्षिण एशिया के देशों के लिए एचडीआई 0.621 के औसत से नीचे है.

• 2015 केलिए भारत का मानव विकास सूचकांक (एचडीआई)  0.624 था. हालांकि, हालांकि, जब असमानता के लिए वेल्यू सिस्टम को हटाते हैं, तो एचडीआई 0.454 पर गिर जाता है, मानव विकास सूचकांक में असमानता के कारण 27.2 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई. बांग्लादेश और पाकिस्तान क्रमशः 28.9 प्रतिशत और 30.9 प्रतिशत की असमानता के कारण तक गिरावट दर्ज की गई. मध्यम एचडीआई देशों के लिए असमानता के कारण औसत नुकसान 25.7 प्रतिशत है और दक्षिण एशिया के लिए यह 27.7 प्रतिशत है. भारत के लिए मानव असमानता गुणांक 26.5 प्रतिशत के बराबर है.

• साल 2015 के दौरान, भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 68.3 वर्ष थी, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 11.7 वर्ष, औसत स्कूली शिक्षा के वर्ष 6.3 वर्ष और सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) प्रति व्यक्ति (2011 पीपीपी $ के संदर्भ में) 5663 थी.

• भारत में जीनी गुणांक (आय असमानता को मापने का आधिकारिक सूत्र, जो शून्य और 100 के बीच भिन्न होता है, शून्य के साथ पूर्ण समानता और 100 पूर्ण असमानता को दर्शाता है) 35.1 है जबकि चीन का जीनी गुणांक 42.2 और भूटान का 38.8 है.

• भारत में पुरुषों की एचडीआई वेल्यू 0.671 के मुकाबले महिला विकास सूचकांक (एचडीआई) वेल्यू 0.549 थी.

• 2015 में, भारत की लिंग विकास सूचकांक वेल्यू 0.819 थी, जो चीन (GDI मूल्य 0.954), नेपाल (GDI मूल्य 0.925), भूटान (GDI मूल्य 0.900), श्रीलंका (GDI मूल्य 0.934) और बांग्लादेश (GDI मूल्य 0.927) से कम है.

• 2015 के दौरान, भारत ने लैंगिक असमानता सूचकांक के संदर्भ में 125 वें (GII मूल्य 0.530) स्थान पर जबकि चीन 159 देशों में से 37 वें (GII मूल्य 0.164) स्थान पर रहा. इसकी तुलना में, बांग्लादेश और पाकिस्तान इस सूचकांक में क्रमशः 119 वें और 130 वें स्थान पर थे.

• 2015 में, भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) 174 था जबकि चीन में यह 27 था. MMR एक निश्चित समयावधि में प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों के दौरान मातृ मृत्यु की संख्या है.

• चीन की 23.6 प्रतिशत की तुलना में 2014 में संसद में लगभग 12.2 प्रतिशत सीटें भारतीय महिलाओं के पास थीं.

• भारत में 35.3 प्रतिशत वयस्क महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों के 61.4 प्रतिशत की तुलना में कम से कम कुछ माध्यमिक शिक्षा तक पहुंची हैं.

• श्रम बाजार में पुरुषों (79.1) के मुकाबले महिलाओं की भागीदारी 26.8 प्रतिशत थी.

• 2004-2013 के दौरान वैधानिक पेंशन की आयु के अनुपात के रूप में वृद्धावस्था पेंशन प्राप्तकर्ता भारत में 24.1 प्रतिशत थे, जबकि चीन में 74.4 प्रतिशत थे.

 

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यूएनडीपी द्वारा प्रस्तुत [inside]ह्युमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2015: वर्क फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट[/inside] नामक दस्तावेज के अनुसार :
 
 
 
• साल 2014 में 188 देशों के बीच भारत मानव विकास सूचकांक के मामले में 0.609 अंकमान के साथ 130 वें स्थान पर रहा. 
 
 
• चीन 0.727 अंकमान के साथ 90 वें स्थान पर है जबकि भूटान का स्थान 132 वां, बांग्लादेश का 142 वां और पाकिस्तान का 147 वां स्थान है. 
 
 
• भारत का एचडीआई अंकमान साल 1990 में 0.428, साल 2000 में 0.496 और साल 2010 में 0.597 था. 
 
 
• 1990 से 2014के बीच भारत में एचडीआई अंकमान की सालाना वृद्धि1.48 प्रतिशत की हुई है.
 
 
• साल 2014 में भारत में आयु-संभाविता 68 साल की और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 5496 ( 2011 के परचेजिंग वापर पैरिटी के आधार पर) का था. 
 
 
• साल 2005-2013 के बीच भारत का गिनी कॉफिशिएन्ट का अंकमान 33.6 रहा जबकि चीन का 37.0 और भूटान का 38.7, गौरतलब है कि गिनी कॉफिशिएन्ट का शून्य होना पूर्ण आर्थिक समानता की स्थिति का सूचक है जबकि इस अंकमान का 100 होना पूर्ण आर्थिक असमानता का सूचक है. 
 
 
•  भारत के जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स का अंकमान ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट में 0.795 है, यह चीन (जीडीआई अंकमान 0.943), नेपाल (जीडीआई अंकमान 0.908), भूटान (जीडीआई अंकमान 0.897), श्रीलंका (जीडीआई अंकमान 0.948) और बांग्लादेश (जीडीआई अंकमान 0.917) से कम है.
 
 
• साल 2014 में भारत जेंडर इन्इक्वलिटी इंडडेक्स के लिहाज से 130 वें स्थान पर है जबकि चीन 40 वें स्थान पर.
 
 
•  साल 2013 में भारत में मातृ मृत्यु दर(एमएमआर) 190 जबकि चीन की 32 थी. किसी दी हुई अवधि में प्रति लाख जीवित शिशुओं के जन्म पर मौत के मुंह में जाने वाली माताओं की संख्या मातृ-मृत्यु दर कहलाती है. 
 
 
• भारत में 2014 में संसद की मात्र 12.2 प्रतिशत सीटों पर महिला सांसद थीं जबकि चीन की संसद में महिलाओं की तादाद 23.6 प्रतिशत है.  
 
 
•  स्वास्थ्य सुविधा की गुणवत्ता, शिक्षा की गुणवत्ता और जीवन-स्तर से संतुष्ट लोगों की तादाद भारत में साल 2014 में क्रमशः 58 प्रतिशत, 69 प्रतिशत तथा 58 प्रतिशत रही. भारत में केवल 52 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे सुरक्षित महसूस करते हैं. महिलाओं(75 प्रतिशत) की तुलना में कहीं ज्यादा पुरुष(79 प्रतिशत) अपने इच्छा-स्वातंत्र्य की स्थिति को लेकर संतुष्ट हैं.
 
 
• जीवन से संतोष की सूचना देने वाले शून्य से 10 अंक तक के एक पैमाने में जहां शून्य सर्वाधिक असंतोष की स्थिति और 10 सर्वाधिक सतोष की स्थिति का सूचक हो, भारत का अंक 4.4 है जबकि पाकिस्तान 5.4 हालांकि पाकिस्तान का एचडीआई अंकमान भारत से कम है..  
 
 
• साल 2014 में 73 प्रतिशत भारतीयों को सरकार पर भरोसा था जबकि श्रीलंका में 77 प्रतिशत लोगों को अपनी सरकार पर भरोसा था. पाकिस्तान में सरकार पर भरोसा जताने वाले लोगों की तादाद 2014 में 43 प्रतिशत पायी गई. 
 
 
•  तकरीबन 67 प्रतिशत भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा करते हैं जबकि पाकिस्तान में न्यायपालिका पर भरोसा जताने वाले लोगों की तादाद 57 प्रतिशत और श्रीलंका में 74 प्रतिशत पायी गई. 
 
 
• वैधानिक रुप से पेंशन पाने की उम्र में आ चुके लोगों के बीच ऐसे बुजुर्ग व्यक्तियों की तादाद जिन्हें वृद्धावस्था पेंशन मिल रही है, भारत में 2004-2012 के बीच केवल 24.1 प्रतिशत थी जबकि चीन में 74.4 प्रतिशत. 
 
 
 
• भारत में अनपेड केयर जीडीपी का 39 प्रतिशत है जबकि दक्षिण अफ्रीका में 15 प्रतिशत
 
 
• साल 2005-2013 के बीच 5-14 आयु-वर्ग के बाल-श्रमिकों की तादाद भारत में 11.8 प्रतिशत रही. साल 2000-2010 की अवधि में कुल रोजगार में घरेलू कामगारों के बीच महिला कामगारों की तादाद 2.2 प्रतिशत रही जबकि पुरुष घरेलू कामगारों की तादाद 0.5 प्रतिशत.
 
 
• साल 2004-05 में भारत में 40 लाख 20 हजार घरेलू कामगार थे जो कि कुल रोजगार का एक प्रतिशत है. इनमें 70 प्रतिशत सेज्यादा संख्या महिलाओं की है जो घरों में सहायक के रुप में काम कर रही हैं. 
 
 
• भारत में 2014 में इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे लोगों की संख्या देश की आबादी का 18 प्रतिशत है, बहरहाल मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे लोगों की संख्या प्रति 100 व्यक्ति में 74.5 है. चीन में 2014 में आबादी का 49.3 प्रतिशत हिस्सा इंटरनेट का उपयोग कर रहा था और मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 92.3 प्रतिशत थी.
 
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यूएनडीपी द्वारा जारी [inside]मानव विकास रिपोर्ट 2014[/inside] के अनुसार, (रिपोर्ट को उपयोग करने के लिए यहां और यहां क्लिक करें.)

 मानव विकास रिपोर्ट (HDR)-2014 में भारत 0.586 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 187 देशों में 135वें स्थान पर है अर्थात यह मध्यम मानव विकासवाले देशों की श्रेणी में वर्गीकृत है. इससे पहले मानव विकास रिपोर्ट (HDR)-2010 में 169 देशों में से भारत का स्थान 119वां तथा मानव विकास रिपोर्ट (HDR)-2011 में 187 देशों में से भारत का स्थान 134वां था.

 भारत का एचडीआई (HDI) वेल्यू (नए संकेतकों के तहत) वर्ष 1980 में 0.369 था जो वर्ष 2000 में बढ़कर 0.483, वर्ष 2010 में 0.570 तथा वर्ष 2011 में 0.581 हो गया था. पड़ोसी देशों में श्रीलंका (0.750 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 73वां स्थान), चीन (0.719 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 91वां स्थान) तथा मालदीव (0.698 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 103वां स्थान) की स्थिति भारत से बेहतर है.

 भूटान (0.584 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 136वां स्थान), बांग्लादेश (0.558 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 142वां स्थान), नेपाल (0.540 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 145वां स्थान), पाकिस्तान (0.537 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 146वां स्थान), म्यांमार (0.524 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 150वां स्थान) तथा अफगानिस्तान (0.468 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 169वां स्थान) की स्थिति इस संदर्भ में भारत से पीछे है.

 मानव विकास रिपोर्ट (HDR)-2014 के अनुसार, वर्ष 1980 से 1990 के मध्य भारत का मानव विकास सूचकांक (एचडीआई-HDI)) वेल्यू 1.58 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ा जबकि 1990 से 2000 की अवधि में यह वृद्धि दर 1.15 प्रतिशत तथा 2000 से 2013 की अवधि में यह वृद्धि दर 1.49 प्रतिशत थी.

 भारत में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय मात्र 3.9 प्रतिशत (2011 में) है.

 भारत में 5 वर्ष से कम आयु की बाल मृत्यु दर (प्रति 1000 जीवित जन्मों पर) 56 (वर्ष 2012 में) है. और जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा दर 66.4 वर्ष है.

 शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय जीडीपी कामात्र 3.3 प्रतिशत (2005-2012 की अवधि में) है.

style="font-family:Calibri,sans-serif"> मातृत्व मृत्यु दर (प्रति 1 लाख जीवित जनसंख्या पर) 200 (वर्ष 2010 में) है औरसकल प्रजनन दर’ (TFR-Total Fertility Rate) 2.5 प्रतिशत (2010 से 2015 के मध्य) है.

 संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10.9 प्रतिशत (वर्ष 2013 में) है.

 मानव विकास रिपोर्ट (HDR)-2014 के अनुसार, भारत का बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (MPI वेल्यू) 0.282 है (वर्ष 2013-मानव विकास रिपोर्ट (HDR) में भारत का MPI वेल्यू 0.283 था) तथा निर्धनता का प्रतिशत 55.3 है (वर्ष 2013 मानव विकास रिपोर्ट (HDR) में 53.7 था). वर्ष 2010 में बहुआयामी निर्धनता प्रतिशत 53.7 था.

 भारत का लैंगिक असमानता सूचकांक (GII) वेल्यू 0.563 है तथा 152 देशों में भारत का 127वां स्थान है.

 भारत का असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक एचडीआई (HDI) वेल्यू मात्र 0.418 है जो एचडीआई (HDI) की तुलना में 28.6 प्रतिशत की गिरावट दर्शाता है. यह भारत को मध्यम मानव विकासवाले देशों की श्रेणी से निम्न मानव विकासवाले देशों की श्रेणी में ला देता है.

अंतराष्ट्रीय परिदृश्य

 मानव विकास रिपोर्ट (HDR)-2014 में 0.944 मानव विकास सूचकांक (एचडीआई (HDI)) वेल्यू के साथ नॉर्वे मानव विकास रैंकिंग में प्रथम स्थान पर है जबकि द्वितीय एवं तृतीय स्थान क्रमशः ऑस्ट्रेलिया (एचडीआई (HDI) वेल्यू-0.933) एवं स्विट्जरलैंड (एचडीआई (HDI) वेल्यू-0.917) को प्राप्त हुआ है.

 शीर्ष 10 में स्थान प्राप्त करने वाले अन्य देश क्रमशः (रैंक 4 से 10) हैं-नीदरलैंड्स, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, न्यूजीलैंड, कनाडा, सिंगापुर, डेनमार्क.

 मानव विकास रैंकिंग में सबसे निचले स्थान (187वें) पर नाइजर है जिसका मानव विकास सूचकांक (एचडीआई (HDI)) वेल्यू मात्र 0.337 है. इस सूची में निचले स्थान के सभी दस देश उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र के हैं.

 इस सूची में निचले क्रम के दस देश क्रमशः हैं-नाइजर (187वां स्थान), कांगो प्रजातांत्रिक गणराज्य (186वां स्थान), मध्य अफ्रीकी गणराज्य (185वां स्थान), चाड (184वां स्थान), सियरा लियोन (183वां स्थान), इरीट्रिया (182वां स्थान), बुर्किना फासो (181वां स्थान), बुरुंडी (180वां स्थान), गिनी (179वां स्थान) एवं मोजाम्बिक (178वां स्थान).

 विश्व के अन्य प्रमुख देशों में यूनाइटेड किंगडम (0.892 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 14वां स्थान), रूस (0.778 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 57वां स्थान), ब्राजील (0.744 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 79वां स्थान) तथा दक्षिण अफ्रीका (0.658 एचडीआई (HDI) वेल्यू के साथ 118वां स्थान) की स्थिति भारत से बेहतर है.

 क्षेत्रीय रूप से उच्चतम मानव विकास सूचकांक (एचडीआई (HDI)) वेल्यू लैटिन अमेरिका तथा कैरिबियन देशों का 0.740 है तथा सबसे कम क्षेत्रीय एचडीआई (HDI) वेल्यू उप-सहारा अफ्रीका का 0.502 है.

style="font-size:10pt"> यूरोप एवं मध्य एशिया का एचडीआई (HDI) वेल्यू 0.738 है. दक्षिण एशिया का एचडीआई (HDI) वेल्यू 0.588 है.

 अरब राष्ट्रों, यूरोप व मध्य एशिया में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय(GNI) में गिरावट दर्ज हुई है.

 असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक की रैंकिंग में प्रारंभिक पांच स्थान पर क्रमशः नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स एवं संयुक्त राज्य अमेरिका हैं.

 असमानता के कारण एचडीआई (HDI) में आई औसत कमी विभिन्न देशों में 5.5 प्रतिशत (फिनलैंड) से लेकर 44.3 प्रतिशत (सियरा लियोन) तक विस्तृत है.

लैंगिक असमानता सूचकांक (GII)

 मानव विकास रिपोर्ट (HDR)-2010 में लैंगिक असमानता सूचकांक’ (GII-Gender Inequality Index) भी प्रस्तुत किया गया था जो मानव विकास के विभिन्न आयामों के संदर्भ में महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता का मापन करता है. वर्ष 2014 में यह सूचकांक 152 देशों के लिए प्रस्तुत किया गया है (जबकि वर्ष 2013-मानव विकास रिपोर्ट (HDR) में यह 148 देशों के लिए प्रस्तुत किया गया था) जिसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं-

 सर्वाधिक लैंगिक समानता वाले देशों में सर्वोच्च स्थान स्लोवेनिया का है तथा उसके बाद क्रमशः स्विट्जरलैंड, जर्मनी, स्वीडन एवं डेनमार्क आते हैं.

 मानव विकास के अधिक असमान वितरण वाले देशों में महिलाओं एवं पुरुषों के बीच असमानता भी अधिक है. ऐसे देशों में सर्वाधिक खराब स्थिति यमन (152वां स्थान), चाड (151वां स्थान), अफगानिस्तान (150वां स्थान), नाइजर (149वां स्थान) एवं माली (148वां स्थान) की है.

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साल 2013 की [inside]मानव विकास रिपोर्ट-2013: "द राइज़ ऑफ़ द साउथ: ह्यूमन प्रोग्रेस इन अ डाइवर्स वर्ल्ड"[/inside] –( उपयोग करने के लिए यहां, यहां, यहां और यहां क्लिक करें.) का 14 मार्च को मैक्सिको सिटी में लोकार्पण किया गया. 2013 की रिपोर्ट में मानव विकास सूचकांक – एचडीआई में 187 देश और क्षेत्र शामिल हैं. इस रिपोर्ट में पाया गया है कि चीन पहले ही अपने लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालते हुए जापान को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में पछाड़ चुका है. भारत नई उद्यमशीलता रचनात्मकता और सामाजिक नीति नवाचार के साथ अपने भविष्य को बदल रहा है. ब्राजील अंतरराष्ट्रीय संबंधों और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के माध्यम से अपने जीवन स्तर को सुधार रहा है जो दुनिया भर में अनुकरणीय हैं.

2013 की मानव विकास रिपोर्ट विकासशील देशों में 40 से अधिक देशों की पहचान करती है जिन्होंने पिछले दस वर्षों में अपनी प्रगति में तेजी लाने के साथ हाल के दशकों में मानव विकास की दृष्टि से बेहतरी की ओर बढ़ रहे हैं. रिपोर्ट में इन देशों की उपलब्धियों और उन चुनौतियों के कारणों और परिणामों का विश्लेषण किया गया है जो आज और आने वाले दशकों में उनके सामने मुंह बाए खड़े हैं.

• 2012 के दौरान भारत, मानव विकास सूचकांक – एचडीआईके संदर्भ में 187 देशों में 136 वें (एचडीआई वेल्यू 0.554)स्थान पर था, जबकि पाकिस्तान 146 वें (एचडीआई वेल्यू 0.515), चीन 101 वें (एचडीआई वेल्यू 0.699), श्रीलंका 92 वें स्थान पर (एचडीआई वेल्यू 0.715) और बांग्लादेश 146 वें (एचडीआई वेल्यू 0.515) स्थान पर भारत (0.694) के औसत वैश्विक वेल्यू से भी बदतर है.

• प्रगति के बावजूद, भारत की एचडीआई वेल्यू (0.554) मध्यम मानव विकास समूह के देशों की एचडीआई वेल्यू (0.64) के औसत और दक्षिण एशिया के देशों की एचडीआई वेल्यू (0.558) के औसत से नीचे है.

• 2012 में लिंग असमानता सूचकांक के मामले में भारत की रैंकिंग 132वीं (GII वेल्यू 0.610) थी, जबकि इसी क्षेत्र में पाकिस्तान 123वें (GII वेल्यू 0.567), चीन 35वें (GII वेल्यू 0.213), श्रीलंका 75वें स्थान पर (GII वेल्यू 0.402) रैंक पर था। ) और बांग्लादेश 111वें (जीआईआई वेल्यू 0.518) स्थान पर रहा.

• एचडीआई का बहुआयामी गरीबी सूचकांक, आय आधारित गरीबी के अनुमान का एक विकल्प, दिखाता है कि दक्षिण एशिया में बहुआयामी गरीबी में रहने वाली आबादी का अनुपात अधिक है, बांग्लादेश (58 प्रतिशत), भारत (54 प्रतिशत), पाकिस्तान में उच्चतम दर (49 प्रतिशत) और नेपाल (44 प्रतिशत).

• चीन और भारत ने 20 वर्षों से भी कम समय में प्रति व्यक्ति आर्थिक उत्पादन को दोगुना कर दिया है, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में औद्योगिक क्रांति से भी दोगुना तेजी से.

• 2020 तक, रिपोर्ट परियोजनाएं, तीन प्रमुख दक्षिण अर्थव्यवस्थाओं-चीन, भारत, ब्राजील के संयुक्त उत्पादन-संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली और कनाडा के कुल उत्पादन से आगे निकल जाएंगी.

• हालांकि दक्षिण एशिया ने 1981 में प्रति दिन 1.25 डॉलर से कम रहने वाली आबादी का अनुपात 61 प्रतिशत से घटाकर 2008 में 36 प्रतिशत कर दिया है, लेकिन वहां 0.5 अरब से अधिक लोग अभी भी बेहद गरीब हैं.

• भारत ने 1990-2012 में एक वर्ष में लगभग पाँच प्रतिशत आय में वृद्धि की हुई है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय अभी भी कम है, 2012 में $ 3,400 के आसपास. जीवन स्तर में सुधार करने के लिए, इसमें और अधिक वृद्धि की आवश्यकता होगी. मानव विकास को गति देने में भारत का प्रदर्शन उसके विकास के प्रदर्शन से कम प्रभावशाली नहीं है.

• ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया और मैक्सिको में अब संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर किसी भी देश की तुलना में अधिक दैनिक सोशल मीडिया ट्रैफिक है.

• 2010 में, उत्पादन अनुपात में भारत का व्यापार 46.3 प्रतिशत था, जो 1990 में केवल 15.7 प्रतिशत था. 2008 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश भी सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) के 3.6 प्रतिशत के शिखर पर पहुंच गया, जो 1990 में 0.1 प्रतिशत से कम था. 2011 में, फॉर्च्यून 500 सूची में दुनिया के सबसे बड़े निगमों में से आठ भारतीय थे.

• 2030 तक, दुनिया के 80 प्रतिशत से अधिक मध्यम वर्ग दक्षिण में रहेंगे और कुल उपभोग व्यय का 70 प्रतिशत हिस्सा लेंगे. अकेले एशिया-प्रशांत क्षेत्र उस मध्यम वर्ग के लगभग दो-तिहाई हिस्से की मेजबानी करेगा.

 • नेपाल में बाल श्रम अपेक्षाकृत अधिक है, जहाँ पाँच से 14 वर्ष की आयु के एक तिहाई से अधिक बच्चे आर्थिक रूप से सक्रिय हैं. भारत में सबसे कम (12 प्रतिशत) आंका गया है.
 
कृपया इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली द्वारा तैयार मानवविकास सूचकांक रुझान, 1980-2012 नामक लेख को देखने के लिए यहां क्लिक करें, 20 अप्रैल, 2013 Volxxlviii, No 16,

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मार्च 2012 में [inside]योजना आयोग द्वारा जारी गरीबी संबंधी आकलन(2009-10) [/inside] से संबंधित प्रेसनोट के अनुसार  http://planningcommission.gov.in/news/press_pov1903.pdf

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• भारत में गरीबों की संख्या (हेडकाऊंट रेशियो-एचसीआर) साल 2004-05 की तुलना में 2009-10 में 7.3 फीसदी घटी है। साल 2004-05 में गरीबों की संख्या 37.2%  थी जो साल 2009-10 में घटकर 29.8% फीसदी हो गई।ग्रामीण इलाकों में गरीबों की संख्या 8.0 फीसदी कम हुई है(41.8% से घटकर 33.8%) और शहरी इलाके में 4.8 फीसदी(25.7% से घटकर 20.9%).  
• हिमाचलप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिसा, सिक्किम. तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तराखंड में गरीबों की संख्या में 10 फीसदी या इससे ज्यादा की कमी आई है।.  
• असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड में साल 2009-10 में गरीबों की संख्या बढ़ी है। 
 
• बिहार, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश जैसे कुछ बड़े राज्यों में गरीबों की संख्या में मामूली कमी आई है, खासकर ग्रामीण इलाको में।.
गरीबों का अनुपात- विभिन्न सामाजिक वर्गों में
• ग्रामीण इलाको में, अनुसूचित जनजातियों में गरीब व्यक्तियों की तादाद सबसे ज्यादा (47.4%) है, इसके बाद अनुसूचित जाति (42.3%) और अन्य पिछड़ा वर्ग(31.9%) में गरीबों की संख्या क्रमागत रुप से ज्यादा है। सभी वर्गों को एकसाथ करके देखें तो गरीबों की तादाद  का औसत 33.8% निकलकर आता है।.
  
• शहरी इलाको में अनुसूचित जातियों के बीच गरीब व्यक्तियों की संख्या 34.1% है और अनुसूचित जनजातीय के व्यक्तियों के बीच 30.4% तथा अन्य पिछड़ा वर्ग में 24.3% जबकि सभी वर्गों के बीच गरीबों की तादाद का  औसत 20.9% है।.  
• बिहार और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाके में अनुसूचित जाति-जनजाति के तकरीबन दो तिहाई व्यक्ति गरीब हैं जबकि मणिपुर, ओडिसा और उत्तरप्रदेश में इन सामाजिक वर्गों के बीच गरीब लोगों की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा है।
गरीबों का अनुपात- पेशेवर श्रणियों में
• ग्रामीण इलाकों में तकरीबन 50%  खेतिहर मजदूर और 40% अन्य श्रेणी के मजदूर गरीबी रेखा से नीचे हैं जबकि शहरी इलाके में दिहाड़ी मजदूरों के बीच गरीबों की संख्या 47.1% है.
• अपेक्षा के अनुरुप, नियमित आमदनी अथवा वेतनशुदा नौकरी में लगे लोगों के बीच गरीब व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है। कृषि-समृद्ध हरियाणा में तकरीबन 55.9% खेतिहर मजदूर गरीब हैं जबकि पंजाब में 35.6%.
• बिहार के शहरी इलाके में दिहाड़ी मजदूरी करने वालों में गरीबों की संख्या बहुत ज्यादा (86%) है, जबकि असम (89%), ओडिसा (58.8%), पंजाब (56.3%), उत्तरप्रदेश (67.6%)  तथा पश्चिम बंगाल में (53.7%) 50 फीसदी से ज्यादा.

 

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यूएनडीपी द्वारा प्रस्तुत [inside]ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2011- सस्टेनेबेलिटी एंड इक्यूटी:अ बेटर फ्यूचर फॉर ऑल[/inside] नामक दस्तावेज के अनुसार-
•  साल 2011 में मानव विकास सूचकांक के हिसाब से 185 देशों के बीच भारत का स्थान 134वां(HDI value 0.547) रहा जबकि पाकिस्तान का स्थान 145 वां (HDI value 0.5040) और चीन का 101 वां(HDI value 0.687) रहा। श्रीलंका 97 वें पायदान(HDI value 0.691) पर और बांग्लादेश 146 वें पायदान(एचडीआई मूल्य-0.500) पर हैं। वैश्विक औसत( एचडीआई मूल्य-0.682) के हिसाब से भारत की प्रगति मानव विकास निर्देशांकों के पैमाने पर थोड़ी कम है।

•  लैंगिक असमानता के सूचकांकों के हिसाब से भारत को मानव-विकास के पैमाने पर 129 वां स्थान(जेंडर इन्इक्यूअलिटी इंडेक्सGII value- 0.617) हासिल हुआ है जबकि पाकिस्तान को 115 वां(GII value 0.573) और चीन को 35वां(GII value 0.209)। श्रीलंका का स्थान इस मामले में 74 वां (GII value 0.419) और बांग्लादेश का 112 वां (GII value 0.550) है।
 
•  भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक(मल्टीडायमेंशनल पॉपर्टी इंडेक्स) के हिसाब से सर्वाधिक गरीब आबादी रहती है।

•  भारत में बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक के हिसाब से गरीब लोगों की संख्या 61 करोड़ 20 लाख है यानी देश की कुल आबादी का आधे से ज्यादा। यह संख्या बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक के हिसाब से उप-सहारीय अफ्रीकी देशों में जितने लोग गरीब हैं उससे ज्यादा है।

• दक्षिण एशिया में बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक के पैमाने पर गरीब माने गए कुल लोगों में से 97 फीसदी को स्वच्छ पेयजल,शौचालय या आधुनिक ईंधन का अभावसहना पड़ता है जबकि 18 फीसदी को इन तीनों का ही अभाव है। बहुआयामीनिर्धनता सूचकांक के हिसाब से गरीब माने गए दक्षिण एशिया के लोगों में से 85 फीसदी साफ-सफाई की सुविधाओं से महरुम हैं।

• मानव विकास सूचकांक(एचडीआई) के पैमाने पर सर्वाधिक अग्रणी चार देशों के नाम हैं- नार्वे (0.943), आस्ट्रेलिया (0.929), नीदरलैंड (0.910)और अमेरिका (0.910). मानव विकास सूचकांक के पैमाने पर सर्वाधिक कम अंक हासिल करने वाले चार अग्रणी देशों के नाम हैं-कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (0.286),नाईजर (0.295),बुरुंन्डी (0.316)और मोजाम्बिक (0.322)।

• जब मानव विकास सूचकांक को किसी देश में मौजूद शिक्षागत, स्वास्थ्य-सुविधागत या आमदनी आधारित असमानता के साथ मिलान करके देखा गया तो परिणाम चौंकाने वाले थे। मानव-विकास सूचकांक के पैमाने पर अग्रणी 20 देशों में शामिल कुछ सर्वाधिक धनी देश अपना पहले वाला (यानी अग्रणी 20) स्थान बरकरार ना रख सके: संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान इस मिलान के बाद #4 थे से #23 वां और कोरिया गणराज्य का स्थान #15वें से #32 वां तथा इजरायल का #17 वें से #25 वां हो गया।

• लैंगिक असमानता सूचकांक के हिसाब से देशों को क्रमवार रखने से पता चलता है कि स्वीडन में स्त्री-पुरुष की समानता के मामले में सर्वाधिक अग्रणी देश है। जेंडर इन्इक्वलिटी देखने के लिए मानकों का एक संयुक्त पैमाने बनाया जाता है। इसमें देखा जाता है कि स्त्री की स्थिति प्रजनन-स्वास्थ्य, विधालय में बिताये गए कुल साल, संसद में प्रतिनिधित्व और श्रम-बाजार में भागीदारी के लिहाज से कैसी है। लैंगिक-समानता के लिहाज से जीआईआई इंडेक्स पर स्वीडन के बाद स्थान नीदरलैंड, डेनमार्क, स्वीट्जरलैंड, फिनलैंड,नार्वे,जर्मनी,सिंगापुर,आईसलैंड और फ्रांस का है। लैंगिक असमानता सूचकांक के हिसाब से यमन 146 देशों के बीच सबसे नीचे के पायदान पर है। उसके बाद चाड, नाईजर, माली, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑव कोंगो, अफगानिस्तान, पापुआ न्युगिनी, लाइबेरिया, केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य और सियरा लियोन का स्थान है।

• साल 1970 के बाद से उत्सर्जन में हुई बढोतरी में तीन चौथाई हिस्सा निम्न, मध्यम और उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देशों का है, फिर भी ग्रीन-हाऊस गैसों के उत्सर्जन के मामले में उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश बाकी देशों की तुलना में कहीं ज्यादा जिम्मेदार हैं।

• अति उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देशों में आम आदमी निम्न, मध्यम या उच्च विकास सूचकांक वाले देशों के आम आदमी की तुलना में चार गुना ज्यादा कार्बन डायआक्साईड के उत्सर्जन का जिम्मेदार है जबकि मीथेन और नाईट्रस ऑक्साईड के उत्सर्जन के मामले में दोगुना। अति उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश का आम नागरिक निम्न मानव विकास सूचकांक वाले देश के आम आदमी की तुलना में 30 गुना ज्यादा कार्बन डायआक्साईड के उत्सर्जन का जिम्मेदार है।

• वैश्विक स्तर पर तकरीबन 40 फीसदी जमीन भू-अपर्दन, कम उर्वराशक्ति और अत्यधिक चराई के कारण अपनी गुणवत्ता खो चुकी है। भू-उत्पादकता घट रही है। इससे उपज में कम से कम 50 फीसदी का घाटा हो रहा है।

• पानी की कुल खपत में से 70-85 फीसदी का इस्तेमाल खेती में होता है जबकि विश्व के अन्नोत्पादन के 20 फीसदी में पानी का इस्तेमाल अनुचित रीति से होता है। इससे वैश्विक स्तर पर खेती की बढ़वार में भविष्य में कठिनाइयां आयेंगी।

• एक बड़ी चुनौती निर्वनीकरण की है।साल 1990 से 2010 के बीच लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई तथा उपसहारीय अफ्रीकी देशोंमें वनों का तेजी से नाश हुआ है। वनों के नाश के मामले में इसके बाद स्थान अरब देशों का है।

• तकरीबन 35 करोड़ जन-आबादी या तो जंगलों के अत्यंत निकट रहती है या फिर अपनी जीविका के लिए वनों पर निर्भर है। वनों के नाश का सर्वाधिक असर इनकी जीविका पर पड़ेगा।

• तकरीबन साढे चार करोड़ लोग अपनी जीविका मछली मारकर कमाते हैं। इसमें 60 की तादाद में महिलायें हैं। अत्यधिक मत्स्य-आखेट और पर्यावरण-परिवर्तन का असर ऐसे लोगों की जीविका पर पड़ रहा है।

• तकरीबन 120 देशों के संविधान में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के बारे में विधान किया गया है लेकिन ज्यादातर देशों में ऐसे विधानों का पालन कायदे से नहीं होता।

• दक्षिण एशिया विश्व के सर्वाधिक वायु-प्रदूषणग्रस्त इलाकों में से एक है। बांग्लादेश और पाकिस्तान के शहर अत्यंत गंभीर रुप से वायु-प्रदूषण के शिकार हैं।

• मानव-विकास में विजली की भूमिका असंदिग्ध और अपरिहार्य है। फिर भी, विश्व में बिजली वंचित लोगों की संख्या 1.5 अरब है यानी हर पाँच में से एक व्यक्ति बिजली-वंचित है। वैश्विक स्तर बिजली की आपूर्ति साल 2010 में अपने चरम पर पहुंची। इसमें पुनपोहन(रिन्यूएबल) बिजली की मात्रा 25 फीसदी थी और इससे विश्व की बिजली आपूर्ति का 18 फीसदी हिस्सा हासिल हुआ।

• यदि फॉरेन एक्सचेंज ट्रेडिंग पर मात्र 0.005 फीसदी का कर लगा दिया जाय तो $40 अरब की कमाई हो सकती है। इस रकम को गरीब देशों को मदद के रुप में दिया जा सकता है। इस प्रकार के कराधान से गरीब देशों को दी जाने वाली मदद बढ़कर $130 अरब हो जाएगी।

• भारत में मनरेगा पर साल 2009 में जीडीपी का 0.5 फीसदी खर्च हुआ और इससे साढ़े चार करोड़ लोगों यानी देश की श्रमशक्ति के दसवें हिस्से को फायदा पहुंचा।

• निम्न मानव विकास सूचकांक वाले देशों में हर 10 बच्चे( प्राथमिक पाठशाला जाने वाली आयुवर्ग के) में 3 का नामांकन स्कूलों में नहीं हुआ है। इसमें कई बाधाएं आड़े आ रही हैं जिसमें कुछ तो पर्यावरणगत भी हैं।

 
 
 
मानव-विकास-एक आकलन
  • यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) द्वारा प्रस्तुत, ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट २००७-०८ नामक दस्तावेज के अनुसार-भारत का मानव-विकास का सूचकांक यानी एचडीआई ०.६१९ है। इस हिसाब से भारत कुल १७७ देशों के बीच मानव विकास के मामले में १२८ वें स्थान पर है। मानव-विकास का आकलन मनुष्य जीवन की तीन बुनियादी बातों के आधार पर होता है- एक तो यही कि किसी देश में नागरिक कहां तक स्वस्थ और दीर्घायु जीवन जीने में सक्षम हैं (इसकी गणना आयु-संभाविता से होती है), दूसरे यह कि किसी देश के नागरिक कहां तक शिक्षित हैं (इसकी गणना व्यस्क साक्षरता और प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्चतर कक्षाओं में नामांकन की संख्या के आधार पर होती है)। तीसरे, मानव-विकास के सूचकांक पर किसी देश के स्थान को तय करने के लिए यह भी देखा जाता है कि किसी देश के नागरिकों का जीवन स्तर कैसा है( इसकी गणना खरीददारी की क्षमता के आधार पर की जाती है)।
  • ह्यूमन पावर्टी इंडेक्स यानी मानव-निर्धनता सूचकांक के आधार पर भारत को ३१.३ अंक दिएगए हैं। इस हिसाब से भारत १०८ देशों के बीच ६८ स्थान पर है। विकासशीलदेशों के लिए मानव-निर्धनता सूचकांक के आकलन में भी उन्ही बातों को आधार बनाया जाता है जिन्हें ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में-यानी आयु संभाविता, व्यस्क साक्षरता और स्कूलों में नामांकन तथा जीवन स्तर।

योजना आयोग (भारत सरकार) द्वारा प्रस्तुत नेशनल ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट (२००१) के अनुसार-

  • केरल मानव-विकास के सूचकांक पर ०.६३८ अंकों के साथ सबसे ऊंचे स्थान पर है। इसके बाद पंजाब (०.५३७), तमिलनाडु (०.५३१), महाराष्ट्र (०.५३२) और हरियाणा (०.५०९) का स्थान है। ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स पर सबसे नीचे रहने वाले राज्यों के नाम हैं- बिहार (०.३६७), असम (०.३८६), उत्तरप्रदेश (०.३८८) और मध्यप्रदेश (०.३९४)।

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संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी, [inside]मानव विकास रिपोर्ट – 2010[/inside], (देखने के लिए यहां क्लिक करें.) के अनुसार, 

• 2010 का मानव विकास सूचकांक (HDI), जिसमें 169 देश शामिल हैं. मानव विकास सूचकांक स्तरों और रैंकिंग की गणना स्वास्थ्व‍य, शिक्षा और आमदनी के लिए नवीनतम अंतर्राष्ट्रीरय तुलनात्ममक आंकड़ों से की गई है, जिसमें नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड रैंकिंग के मामले में दुनिया में सबसे ऊपर हैं और नाइजर, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और जिम्बाब्वे इस वार्षिक रैंकिंग में सबसे नीचे.

• 2010 के मानव विकास सूचकांक में शीर्ष 10 देशों में अगले सात हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका, आयरलैंड, लिचेंस्टीन, नीदरलैंड, कनाडा, स्वीडन और जर्मनी. निचले 10 देशों में अन्य सात हैं: माली, बुर्किना फासो, लाइबेरिया, चाड, गिनी-बिसाऊ, मोजाम्बिक और बुरुंडी.

• शिक्षा में, स्कूली उम्र के बच्चों के लिए ‘अपेक्षित वर्षों की स्कूली शिक्षा’ को ‘कुल दाखिलों की गणना’ की जगह बदलकर लाया है, और ‘वयस्क आबादी में स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष ‘शिक्षा स्तर की पूरी तस्वीर प्रदान करने के लिए ‘वयस्क साक्षरता दर’ की जगह लाया है. जीवन प्रत्याशा स्वास्थ्य के लिए मुख्य संकेतक बनी हुई है.

• 2010 के एचडीआई की तुलना विभिन्न संकेतकों और गणनाओं के उपयोग के कारण मानव विकास रिपोर्ट के पिछले संस्करणों में दिखाई देने वाले मानव विकास सूचकांकों से नहीं की जानी चाहिए.

• 2010 के एचडीआई के अलावा, रिपोर्ट में तीन नए सूचकांक शामिल हैं: असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक, लिंग असमानता सूचकांक और बहुआयामी गरीबी सूचकांक.

• मानव विकास में महत्वपूर्ण प्रगति रुझानों के विश्लेषण में नौ दक्षिण एशियाई देशों-अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, ईरान, नेपाल और पाकिस्तान के लिए भी पाई गई. पिछले 40 वर्षों में बांग्लादेश में जीवन प्रत्याशा 23 साल, ईरान में 18 साल, भारत में 16 साल और अफगानिस्तान में 10 साल बढ़ गई.

• सबसे तेज़ी से बढ़नेवाले 10 देशों में चीन एकमात्र देश है जो वहां अपनी आय की बदौलत पहुंचा है न कि स्वास्थ्य या शिक्षा के क्षेत्र की उपलब्धियों की वजह से. चीन में पिछले चार दशकों में प्रति व्यक्ति आय में 21 गुना वृद्धि हुई है जिससे करोड़ों लोग ग़रीबी रेखा से बाहर आए हैं. लेकिन फिर भी चीन स्कूलों में दाखिले या मृत्यु की औसत उम्र को बढ़ाने के क्षेत्र की ऊपरी सूची में नहीं है.

• आठ भारतीय राज्य, गरीबी के साथ-साथ 26 सबसे गरीब अफ्रीकी देशों में 42.1 करोड़ बहुआयामी रूप से गरीब लोग रह रहे हैं, जो कि उन अफ्रीकी देशों में रहने वाले 41 करोड़ लोगों से अधिक बहुआयामी गरीब हैं.

• बहुआयामी गरीबी सूचकांक द्वारा कवर किए गए 104 देशों मेंलगभग 1.75 अरब लोग-उनकी आबादी का एक तिहाई- बहुआयामी गरीबी में जीवन यापन करते हैं- यानी, कम से कम 30 प्रतिशत संकेतक स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में तीव्र गिरावट को दर्शाते हैं. यह उन देशों में अनुमानित 1.44 अरब से अधिक है जो प्रति दिन 1.25 डॉलर या उससे कम पर जीवन यापन करते हैं (हालांकि यह उस हिस्से से नीचे है जो $ 2 या उससे कम पर जीवन यापन हैं)। वंचितता के पैटर्न भी महत्वपूर्ण तरीकों से आर्थिक गरीबी से भिन्न होते हैं: कई देशों में – इथियोपिया और ग्वाटेमाला सहित – बहुआयामी गरीब लोगों की संख्या अधिक है. हालाँकि, लगभग एक चौथाई देश, जिनके लिए दोनों अनुमान उपलब्ध हैं- जिनमें चीन, तंजानिया और उज्बेकिस्तान शामिल हैं- आर्थिक गरीबी की दर अधिक है.

• उप-सहारा अफ्रीका में बहुआयामी गरीबी की सबसे अधिक केस हैं. दक्षिण अफ्रीका में 3 प्रतिशत के निम्न स्तर से लेकर नाइजर में 93 प्रतिशत तक का स्तर; अभावों की औसत हिस्सेदारी लगभग 45 प्रतिशत (गैबॉन, लेसोथो और स्वाज़ीलैंड में) से 69 प्रतिशत (नाइजर में) है. अभी भी दुनिया की आधी बहुआयामी गरीब आबादी दक्षिण एशिया (51 प्रतिशत, या 84.4 करोड़ लोग) में रहती है, और एक चौथाई से अधिक अफ्रीका में रहते हैं (28 प्रतिशत, या 45.8 करोड़).

• लैंगिक असमानता देशों में बहुत भिन्न होती है- लैंगिक असमानता के कारण उपलब्धि में होने वाली हानियाँ (कुल असमानता के नुकसान की तुलना में सीधे नहीं, क्योंकि विभिन्न चरणों का प्रयोग किया जाता है) 17 प्रतिशत से 85 प्रतिशत तक होती हैं. डेनमार्क, स्वीडन और स्विटजरलैंड के बाद सबसे अधिक लिंग-समान देशों की सूची में नीदरलैंड सबसे ऊपर है.

• मानव विकास के असमान वितरण वाले देशों में भी महिलाओं और पुरुषों के बीच उच्च असमानता व्यापत हैं, और उच्च लिंग असमानता वाले देशों में भी मानव विकास का असमान वितरण व्यापत हैं. दोनों मोर्चों पर सबसे खराब हालत मध्य अफ्रीकी गणराज्य, हैती और मोजाम्बिक की है.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी [inside]मानव विकास रिपोर्ट 2007-08[/inside] के अनुसार,:

 • भारत का मानव विकास सूचकांक 0.619 है. रैंकिंग के हिसाब से भारत 177 देशों में से 128 वें स्थान पर है. एचडीआई मानव विकास के तीन आयामों की समग्र जानकारी प्रदान करता है: लंबा और स्वस्थ जीवन यापन (जीवन प्रत्याशा से मापा जाता है), शिक्षा का स्तर (प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर वयस्क साक्षरता और दाखिलों की संख्या से मापा जाता है) और सभ्य जीवन यापन का मानक (शक्ति समता, पीपीपी, आय से मापा जाता है).

 • भारत की HPI-1 (मानव गरीबी सूचकांक) वेल्यू 31.3 है, जिसमें रैंकिंग के हिसाब से भारत 108 देशों में से 62 वां नंबर पर है. विकासशील देशों के लिए मानव गरीबी सूचकांक (HPI-1), मानव विकास सूचकांक के समान तीन आयामों की समग्र जानकारी प्रदान करता है: लंबा और स्वस्थ जीवन यापन, बेहतर शिक्षा का स्तर और सभ्य जीवन यापन.

 [inside]राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट (2001)[/inside] के अनुसार, जिसे योजना आयोग (जीओआई) द्वारा तैयार किया गया है:

साल 2001 के दौरान, केरल (0.638) मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के मामले में रैंकिंगमें सबसे ऊपर है, इसके बाद पंजाब (0.537), तमिलनाडु (0.531), महाराष्ट्र (0.523) और हरियाणा (0.509) है.मानव विकास सूचकांक के संदर्भ में सबसे खराब स्थिति बिहार (0.367), उसके बाद असम (0.386), उत्तर प्रदेश (0.388) और मध्य प्रदेश (0.394) की है.

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[inside]योजना आयोग द्वारा प्रस्तुत ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज के अनुसार[/inside]-
http://www.planningcommission.nic.in/plans/planrel/fiveyr/11th/11_v3/11v3_ch4.pdf

  • भारत में साल १९७३ में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की तादाद कुल आबादी में ५४.९ फीसदी थी जो साल २००४ में घटकर २७.५ फीसदी रह गई।साल १९७३ में गरीबों का हेड काऊंट रेशियो(कुल आबादी में गरीब लोगों की तादाद) ५४.९ था जो १९८३ में घटकर ४४.५ फीसदी हुआ। साल १९९३-९४ में हेड काऊंट रेशियो घटकर ३६ फीसदी पर पहुंचा और साल २००४ में २७.५ फीसदी हो गया।
  • कुछ राज्य अपनी आबादी में गरीबों की तादाद घटाने में खास तौर पर सफल हुए हैं। साल २००४-०५ जिन राज्यों में हेड काऊंट रेशियो तुलनात्मक रुप से कम था उनके नाम हैं- जम्मू-कश्मीर (५.४ फीसदी), पंजाब (८.४ फीसदी). हिमाचल प्रदेश (१० फीसदी), हरियाणा (१४ फीसदी), केरल (१५ फीसदी), आंध्रप्रदेश (१५.८ फीसदी) और गुजरात (१६.८ फीसदी)। इसके उलट जिन राज्यों में हेड काऊंट रेशियो ज्यादा है उनके नाम हैं-उड़ीसा (४६.६ फीसदी), बिहार (४१.४ फीसदी), मध्यप्रदेश(३८.३ फीसदी) और उत्तरप्रदेश (३२.८ फीसदी) और ये राज्य सर्वाधिक आबादी वाले राज्यों में गिने जाते हैं।
  • नये बने राज्यों में छत्तीसगढ़ (४०.९ फीसदी), झारखंड (४०.३ फीसदी) और उत्तराखंड (३९.६ फीसदी) में भी गरीबों की तादाद अपेक्षाकृत ज्यादा है।
  • साल २००४-०५ के आकलन के मुताबिक देश के सिर्फ चार राज्यों में गरीबों की तादाद का ५८ फीसदी हिस्सा कायम है। इनके नाम हैं- उत्तरप्रदेश(१९.६ फीसदी), बिहार (१२.२ फीसदी),मध्यप्रदेश(८.३ फीसदी) और महाराष्ट्र (१०.५ फीसदी)। साल १९८३ में इन राज्यों में (इसमें अविभाजित झारखंड और मध्यप्रदेश शामिल है) देश की कुल आबादी में ४९ फीसदी का योगदान था।
  • अगर सकल संख्या के आधार पर देखें तो गरीबों की तादाद पिछले तीन सालों में खास कम नहीं हुई। साल १९७३ में गरीबों की संख्या ३२१३ लाख थी तो १९८३ में ३२२९ लाख। साल १९९३-९४ में गरीबों की संख्या में थोड़ी कमी (३२०४ लाख) आयी और २००४-०५ में यह आंकड़ा ३०१७ लाख पर पहुंचा।
  • कुछ ऱाज्यों में तो पिछले तीन दशकों में गरीबों की कुल संख्या घटने के बजाय बढ़ गई। साल १९७३ में उत्तरप्रदेश में (इसमें उत्तराखंड शामिल है) गरीबों की संख्या ५३५.७ लाख थी जो २००४-०५ में बढ़कर ६२६ लाख हो गई। इसी अवधि में राजस्थान में गरीबों की कुल संख्या १२८.५ लाख से बढ़कर १३४.९ लाख, महाराष्ट्र में २८७ लाक से बढ़कर ३१७ लाख और नगालैंड में २.९ लाख से बढ़कर ४.० लाख हो गई। मध्यप्रदेश(छत्तीसगढ़ सहित) में गरीबों की संख्या १९७३ में २७६ लाख और बिहार(झारखंड सहित)  में ३७० लाख थी जो साल २००४-०५ में बढ़कर क्रमशः ३४१ लाख और ४८५.५ लाख हो गई।
  • कुछ राज्यों में पिछले दशकों में गरीबों की संख्या समान बनी हुई है। इन राज्यों के नाम हैं-हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा और मिजोरम।
  • कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां ग्रामीण इलाकों में गरीबों की कुल संख्या साल १९७३ से लेकर २००४-०५ के बीच कम हुई है। साल १९७३ में आंध्रप्रदेश में गरीबों की संख्या १७८.२ लाख थी जो २००४-०५ मेंघटकर ६४.७ लाख हो गई। इसी अवधि में कर्नाटक में गरीबों की संख्या १२८.४ लाख से घटकर ७५ लाख, केरल में १११.४ लाख से घटकर ३२.४ लाख, तमिलनाडु में १७२.६ लाख से घटकर ७६.५ लाख और पश्चिम बंगाल में २५७.९ लाख से घटकर १७३.२ लाख हो गई।
  • साल १९७३ में देश के ग्रामीण इलाकों में गरीब लोगों की कुल संख्या २६१३ लाख थी जो २००४-०५ में घटकर २२०९ लाख हो गई।
  • देश के शहरी इलाके में गरीबों की संख्या १९७३ में ६००.५ लाख थी जो साल २००४-०५ में बढ़कर ८०८.० लाख हो गई।
  • ग्रामीण गरीबों की कुल संख्या का ४१ फीसदी हिस्सा खेतिहर-मजदूर वर्ग में आता है। खेतिहर मजदूर वर्ग में गरीबों की इस फीसद तादाद में पिछले तीन दशकों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
  • साल २००४-०५ के ाकलन के मुताबिक ग्रामीण गरीबों की कुल तादाद में ८० फीसदी लोग अनसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग से हैं।
  • बाकी सामाजिक वर्ग के लोगों की तुलना में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों का बॉड़ी मॉस इंडेक्स ५ से १० फीसदी कम है और इस तरह यह बॉडी मॉस इंडेक्स वहां जा पहुंचता है जहां के तुरंत बाद कुपोषण की स्थिति (>18.5). शुरू होती है।   (बॉडी मॉस इंड्क्स से किसी व्यक्ति की सेहत का अंदाजा लगाया जाता है-इसके आकलन में शरीर की लंबाई की तुलना में वजन की गणना की जाती है यानी प्रति वर्ग मीटर शरीर का वजन (किलोग्राम में) कितना है।)
  • साल १९९३-९४ में देश के ग्रामीण इलाके के गरीब परिवारों में महिलाओं की तादाद २८ फीसदी और शहरी इलाके में २६ फीसदी थी तो साल २००४-०५ में क्रमशः २७ और २३ फीसदी। महिलाओं में गरीबी ज्यादा है परंतु गरीब परिवारों में महिलाओं की फीसद तादाद कम है। इसका कारण प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या का कम ( लिंग-अनुपात) होना है।
  • साल १९९३-९४ में ग्रामीण इलाके में बीपीएल परिवारों में रहने वाले १५ साल से कम उम्र के बच्चे की तादाद ३९ फीसदी और शहरी इलाके में ४१ फीसदी जबकि साल २००४-०५ में क्रमशः ४४ फीसदी और ३२ फीसदी।

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