नीतिगत पहल

 

[inside]वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने के  लक्ष्य के अनुरूप कृषि मंत्रालय की पहल तथा नीतियां[/inside]:

 

http://pib.nic.in/newsite/PrintHindiRelease.aspx?relid=72587 

 

वर्ष 2016 में किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया गया। इस समिति ने उसका अध्‍ययन करते हुए माननीय प्रधानमंत्री जी के निर्देशन में इस कार्य को  तेज करने का काम प्रारम्‍भ किया जो निम्‍नवत है –   

 

(क)  Model Agricultural Land Leasing Act, 2016 राज्‍यों को जारी किया, जो कृषि सुधारों के संदर्भ में अत्‍यंत ही महत्‍वपूर्ण कदम है जिसके माध्‍यम से न सिर्फ भू-धारकों वरन लीज प्राप्‍तकर्ता की जरूरतों का भी ख्‍याल रखा गया है।

 

इस एक्‍ट के माध्‍यम से भू-धारक वैधानिक रूप से कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के लिए आपसी सहमति से भूमि लीज पर दे सकते हैं। यहां यह भी ध्‍यान रखा गया है कि किसी भी परिस्‍थिति में लीज प्राप्‍तकर्ता का कृषि भूमि पर कोई दावा मान्‍य नहीं होगा।

 

लीज प्राप्‍तकर्ता के दृष्‍टिकोण से यह ध्‍यान दिया गया है कि उसे संस्‍थागत ऋण, इंश्‍योरेंस तथा आपदा राहत राशि उपलब्‍ध हों, जिससे उनके द्वारा अधिक-से-अधिक कृषि पर निवेश हो सके।  

 

(ख)  अप्रैल, 2016 में ही राष्‍ट्रीय कृषि मंडी स्‍कीम (ई-नाम) के तहत बेहतर मूल्‍य  खोज सुनिश्‍चित करके, पारदर्शिता और प्रतियोगिता लाकर कृषि मंडियों में क्रांति लाने की एक नवाचारी मंडी प्रक्रिया प्रारम्‍भ की गई।

 

(ग)  मॉडल “कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2017” राज्‍यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों द्वारा अपनाने हेतु 24 अप्रैल, 2017 को जारी किया गया है। जिससे ई-व्‍यापार, सब-यार्ड के रूप में गोदामों, सिल्‍लोज, शीत भंडारण की घोषणा, मंडी शुल्‍क एवं कमीशन प्रभार को तर्कसंगत बनाना तथा कृषि क्षेत्र में निजी मंडी जैसे सुधार शामिल हैं।     

 

वर्ष 2018 में देश के 22,000 ग्रामीण कृषि मंडियों के विकास के लिए नाबार्ड के माध्‍यम से दो हजार करोड़ की राशि भी प्रस्‍तावित की गई है।

 

यहां स्‍पष्‍ट है कि राष्‍ट्रीय कृषि बाजार के संबंध में वर्ष 2004 के बाद दिए गए आयोग के सुझाव का क्रियान्‍वयन भी इसी 4 साल के अंदर किया गया।  

 

(घ)  सरकार ने पुरानी योजनाओं के विस्‍तृत अध्‍ययन के बाद उनमें सुधार किया है तथा विश्‍व की सबसे बड़ी किसान अनुकूल फसल बीमा योजना अर्थात प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तथा मौसम आधारित फसल बीमा योजना को शुरू किया है। वर्ष 2019-20 तक सकल फसलित क्षेत्र के 50 प्रतिशत को कवर किए जाने का लक्ष्‍य है।

 

(ड.)  सूक्ष्‍म सिंचाई को अपनाने में पर्याप्‍त वृद्धि दर्ज की गई है। सूक्ष्‍म सिंचाई (एमआई) कवरेज की चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर 15 प्रतिशत है। वर्ष 2017-18 के दौरान, लगभग 9.26 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र को एमआई के तहत लाया गया है, जो कि एक कैलेंडर वर्ष में प्राप्‍त अब तक का अधिकतम कवरेज है। वर्ष 2022-23 तक 1.5से 2 मिलियन हेक्‍टेयर प्रतिवर्ष कवर करने का लक्ष्‍य है। बजटीय आवंटन में वृद्धि के साथ-साथ 5,000 करोड़ का कॉर्पस फण्‍ड भी स्‍थापित किया गया है।

 

(च)  किसानों की आय में वृद्धि करने तथा जलवायु सह्यता प्राप्‍त करने के लिए कृषि वानिकी उपमिशन-राष्‍ट्रीय कृषि-वानिकी नीति तैयार की गई है। वर्ष 2016-17 के दौरान “हर मेढ़ प्रति पेड़” के उद्देश्‍य से एक विशेष स्‍कीम “कृषि वानिकी उपमिश्‍न” शुरू तथा संचालित किया गया था। कृषि वानिकी उप-मिशन के तहत सहायता के लिए पारगमन विनियमों में छूट एक पूर्व अपेक्षा है। 21 राज्‍यों (वर्ष 2016-17 में 8 राज्‍य तथा वर्ष 2017-18 में 12 राज्‍य) ने इस विनियम में छूट प्रदान कर दी है तथा सभी राज्‍यों को इस दिशा में प्रेरित किया जा रहा है।

 

(छ)  पुनर्गठित राष्‍ट्रीय बांस मिशन-राष्‍ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) प्रारंभिक रूप से वर्ष 2006-07 में केन्‍द्रीय प्रायोजित स्‍कीम के रूप में शुरू किया गया था तथा वर्ष 2014-15 के दौरान इसे समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के तहत लाया गया था तथा वर्ष 2015-16 तक जारी रखा गया था।         

 

यह योजना मुख्‍यत: सीमित मौसम और शोधन ईकाईयों तथा बांस बाजार के कारण बांस की खेती और प्रचार-प्रसार तक ही सीमित है। इस योजना की मुख्‍य कमियां उत्‍पादकों (किसानों) और उद्योगों के बीच संपर्क का अभाव था।

 

भारतीय वन अधिनियम, 1927 में पिछले वर्ष संशोधन किया गया था जिससे वन क्षेत्र के बाहर बोये गए बांस को ‘पेड़ों’ की परिभाषा से हटा दिया गया है तथा 1,290 करोड़ रूपए की परिव्‍यय से पुनर्गठित राष्‍ट्रीय बांस मिशन का क्रियान्‍वयन भी किया जा रहा है।

 

(ज)  सरकार ने 12 मानदंडों के अनुसार परिक्षित मृदा नमूनों के आधार पर किसानों को भूमि की उर्वरता के बारे में सूचना प्रदान करने के लिए विश्‍व में सबसे बड़ा यूनिवर्सल मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड योजना प्रारंभ की है।

 

एक अध्‍ययन यह दर्शाता है कि मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड के सिफारिशों के अनुसार उर्वरक एवं सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों के अनुप्रयोग के परिणामस्‍वरूप 8 से 10 प्रतिशत के बीच रासायनिक उर्वरक अनुप्रयोग की कमी पाई गई है और फसल पैदावार में 5-6 प्रतिशत तक की समग्र वृद्धि हुई है।

 

(झ)  परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)- पीकेवीवाई को देश में जैविक खेती को प्रोत्‍साहित करने के उद्देश्‍य से कार्यान्‍वित किया जा रहा है। यह मृदा स्‍वास्‍थ्‍य एवं जैविक पदार्थ सामग्री में सुधार लाएगा तथा किसानों की निवल आय में बढ़ोत्‍तरी होगी ताकि प्रीमियम मूल्‍यों की पहचान किया जा सके। लक्षित 50 एकड़ (2015-16 से 2017-18) तक की प्रगति संतोषजनक है। अब इसे कलस्‍टर आधार (लगभग प्रति 1000 हैक्‍टेयर) पर शुरू किया गया है।

 

यहां उल्‍लेखनीय है कि सतत् कृषि को बढ़ावा देने के लिए जैविक खेती की सिफारिश पर भी मोदी सरकार के समय ही संस्‍थागत एवं व्‍यवस्‍थित रूप से कार्यांवित किया गया। 

 

(ञ)  पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्‍य श्रृंखला विकासमिशन(एमओवीसीडीएनईआर) देश के पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में जैविक खेती की क्षमता को पहचान कर केंद्रीय क्षेत्र योजना शुरू की गई है। पूर्वोत्‍तर को भारत के जैविक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।

 

(ट)  मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में Model Contract Farming and Services Act, 2018 जारी किया है जिसमें पहली बार देश की अन्‍नदाता किसानों तथा कृषि आधारित उद्योगों को जोड़ा गया है। इस एक्‍ट के माध्‍यम से जहां एक तरु कृषि जिंसों का अच्‍छा दाम किसानों को मिल सकेगा, वहीं फसल कटाई उपरांत नुकसानों को भी कम किया जा सकेगा। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी पैदा हो सकेंगे। इसके माध्‍यम से एफपीआ/एफपीसी को बढ़ावा दिया जाएगा।  

 

(ठ)  वर्ष 2003-05 के बीच में इस देश के वैज्ञानिकों ने यूरिया को शतप्रतिशत नीम कोटेड  करने की बात कही थी, वह भी ठंडे बस्‍ते में पड़ा हुआ था जिसे मोदी सरकार के आने के बाद दो वर्षों में पूरा किया गया।  

 

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[inside]राष्ट्रीय किसान आयोग[/inside] ने नीतिगत उपायों के तहत सुझाव दिया है कि किसानों के लिए जीविका की सुरक्षा की दृष्टि से एक पैकेज तैयार किया जाय। इसके अन्तर्गत किसानों को पारिस्थितिकी और बाजार की मांगों के अनुकूल किसानी के लिए प्रौद्योगिकी चुनने की छूट दी जानी चाहिए। मिट्टी की उवर्रा शक्ति की रक्षा और संवर्धन तथा जल-संरक्षण के लिए उपाय किए जाने चाहिए। ध्यान रखा जाना चाहिए कि खेती में इस्तेमाल होने वाले साजो सामान उच्च गुणवत्ता के हों और किसानों को सही वक्त पर कर्ज और बीमा की सुविधा मिल जाय। ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत किसानों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए विशेष उपाय किए जाने चाहिए।

 

सरकार ने कर्ज माफी और राहत के अपने वायदे के तहत ३१ दिसंबर २००७ तक अधिसूचित व्यावसायिक बैंक और सहकारी समितियों से लिए गए कर्जों को माफ कर दिया है। यह कर्ज माफी सीमांत और छोटे किसानों को दी गई है।

 

अन्य किसानों के बारे में प्रावधान किया गया है कि अगर वे कर्ज की बकाया रकम एकमुश्त चुकाते हैं तो चुकायी जानी वाली रकम में से २५ फीसदी माफ कर दिया जाएगा। 

 

कर्ज माफी की इस योजना के तहत उन किसानों को कोई लाभ नहीं मिलेगा जिन्होंने निजी श्रेणी के बैंकों से कर्ज लिए हैं। शुष्क और कम उर्वरा शक्ति की जमीन पर खेती करने वाले २ एकड़ से ज्यादा जमीन की मिल्कियत वाले किसानों को भी इस कर्ज माफी का कोई लाभ नहीं मिलेगा। हालांकि कई अध्ययनों से स्पष्ट है कि ऐसे इलाकों के किसान आजीविका की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं।

 

केरल की सरकार ने एक कर्ज राहत आयोग की स्थापना की है। इसका उद्देश्य गंभीरखेतिहर संकट से जूझ रहे इलाकों और कृषक-वर्गों की पहचान करना और इसके अनुकूल किसानों को राहत पहुंचाना है।

 

खाद्यान्न के उपार्जन को बढ़ाने और किसानों को उनकी उपज का लाभकर मूल्य देने की कोशिश में सरकार ने २००८-०९ के रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को जनवरी २००९ में बढ़ाया। पहले गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य १००० रुपये प्रति क्विंटल था जिसे बढ़ाकर १०८० रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। धान की सामान्य किस्म के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ७४५ रुपये प्रति क्विंटल था जिसे बढ़ाकर ८५० रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है।

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साल २००९-१० के अंतरिम बज़ट के अनुसार- http://indiabudget.nic.in/ub2009-10(I)/bh/bh1.pdf:    

वर्ष २००३-०४ से २००८-०९ के बीच कृषि के लिए योजनागत आबंटन में ३०० फीसदी का इजाफा हुआ है। साल २००७-०८ में २५ हजार करोड़ रुपये के साथ राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की शुरुआत हुई। इसका उद्देश्य खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों मे ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत सालाना ४ फीसदी की दर वृद्धि करना है।

 

वास्तविक कृषि-ऋण में साल २००३-४ से लेकर २००७-०८ के बीच चीन गुने का इजाफा हुआ है। पूंजी-प्रवाह साल २००३-०४ में ८७००० करोड़ था जो साल २००८-०९ में बढ़कर २,५०,००० करोड़ हो गया।

 

सहकारी संस्थाओं द्वारा छोटी अवधि के लिए दिए जाने वाले कर्ज की व्यवस्था को मजबूत करनेके लिए १३,५०० करोड़ रुपये का एक पैकेज दिया गया है। इसका इस्तेमाल २५ राज्यों में इस व्यवस्था को मजबूत करने के लिए होगा।

 

साल 2009-10 के दौरान भी किसानों को सूद की कम दर पर कर्ज दिया जाना जारी रखा जाएगा ताकि किसानों को 3 से 7 लाख रुपये का कर्ज(फसलों के लिए) 7 फीसदी सूद की दर से हासिल हो सके।

 

कर्जमाफी और कर्ज-राहत की योजना 30 जून 2008 की तय समय सीमा में ही चालू हो चुकी है। इसके अन्तर्गत 65,300 करोड़ रुपये के कर्ज माफ किये गए हैं। इस योजना से 3.6 करोड़ किसानों को फायदा हुआ है।.

 

पिछले पांच सालों के दौरान उपार्जन की लागत और अंतर्राष्ट्रीय मूल्य ऊंचे रहने के बावजूद लक्ष्य केंद्रित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में  बीपीएल श्रेणी और अंत्योदय अन्न योजना के दायरे में आने वाले  परिवारों के लिए वही मूल्यकायम रखेगए जो जुलाई 2000 में थे। गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में साल 2002 के जुलाई से लागू मूल्यों को कायम रखा गया है।

 

साल 2008-09 के फसली वर्ष के लिए धान की सामान्य श्रेणी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 900 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। साल 2003-04 में समान्य श्रेणी की धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 550 रुपये प्रति क्विंटल था।साल 2003-04 में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 630 रुपये प्रति क्विंटल था जिसे साल 2009 में बढ़ाकर 1080 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है।

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[inside] खेतिहर कर्ज पर केंद्रित विशेषज्ञ समूह(एक्सपर्ट ग्रुप) के दस्तावेज(जुलाई 2007) के अनुसार [/inside]- http://www.igidr.ac.in/pdf/publication/PP-059.pdf:   कुछ सुझाव 

खेती के उत्पादनगत आधार में विस्तार देना जरुरी है। इस प्रक्रिया में जोर सीमांत और छोटे किसानों पर दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। इसके समुचित प्रद्योगिकी का विकास तो जरुरी है ही साथ ही साथ मौजूदा सांस्थानिक बनावट के वैकल्पिक रुपों की खोज भी जरुरी है।

 

ध्यान रखा जाना चाहिए कि खेतिहर समाज को सांस्थानिक कर्जा ज्यादा से ज्यादा मिले। जिन किसान परिवारों को सांस्थानिक कर्जा नहीं हासिल हो पाता उन्हें इस दायरे में लाना होगा। कर्ज देने की मौजूदा प्रणाली की गुणवत्ता में सुधार जरुरी है। किसानों के ऊपर महाजनों के कर्ज का जो बोझा बरकरार है उसे कम करना होगा। इसके लिए जरुरी है कि अनौपचारिक स्रोतों से लिए गए कर्ज को औपचारिक ढांचे में लाया जाय।

 

जो इलाके सिंचाई के लिए वर्षाजल पर निर्भर हैं वहां साल दर साल पर्यावरण का ज्यादा नुकसान होता है और उत्पादन में भी घट-बढ़ होते रहती है। इस बात के सघन प्रयास होने चाहिए कि ऐसे लाके के प्राकृतिक संसाधन पुनर्जीवन प्राप्त कर सकें और इन इलाकों के किसान परिवारों की आमदनी में एक किस्म की स्थिरता लायी जा सके।

 

मौसम की भविष्यवाणी के लिए अंतरिक्ष और सूचना प्रौद्योगिकी पर जोर दिया जाना चाहिए।

 

इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के जो कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं उनका लाभ गरीब किसान परिवारों को मिले। इसके लिए किसान-संघों को ऐसे कार्यक्रम के की बनावट, क्रियान्वयन और निगरानी के काम में शामिल किया जाना चाहिए।

 

खेतिहर संकट से निपटने के लिए सरकार ने संकट से जूझ रहे 31 जिलों की पहचान की है और इन जिलों में राहत के उपाय किये किए हैं। ये जिले आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, और महाराष्ट्र में हैं। केंद्र सरकार के अतिरिक्त इन प्रदेशों की सरकार ने बी अपनी तरफ से राहत के प्रयास किये हैं। पंजाब सरकार ने भी कुत राहत के कदम उठाये हैं। इन उपायों के तहत संकट से जूझ रहे किसान परिवारों को मदद दी जा रही है।

 

विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि किसानों को वित्तप्रवाह की मुख्यधारा में शामिल करने के काम में इस बात का प्रयाप्त ध्यान रखा जाना चाहिए कि छोटे-मोटे कर्ज लेने वाले किसान परिवार की वित्तीय जरुरतें किस किस्म की हैं। सांस्थानिक कर्ज देने की मौजूदा प्रमाली में उन किसान परिवारों को शामिल किया जाना चाहिए जो अभी तक सांस्थानिक कर्ज नहीं ले पा रहे।

 

ग्रामीण इलाकों में बैंकों की सचल शाखा खोलने की त्वरित जरुरत है ताकि किसानों को उनके दरवाजे पर जाकर वित्तीय सहायता उपलब्ध करवायी जा सके। इससे कर्ज देने के क्रम में आने वाली लागत और इस लागत के कारण कर्ज लेने वाले किसान पर पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय बोझ को कम किया जा सकेगा।

 

वशेषज्ञ समूह का मानना है कि किसान क्रेडिट कार्ड को इलेक्ट्रानिक रुप देकर इसे बहुआयामी भारत किसान कार्ड के रुप में जारी किया जाना चाहिए। इस कार्ड पर किसान की जमीन, जायदाद सहित इन्य संपदा और कर्ज की जिन सुविधाओं का उसने इस्तेमाल किया है सके ब्यौरे दर्ज होने चाहिए। इस काम को एक मशन मानकर इसे उसी त्वरा से किया जाना चाहिए। .

 

लीड बैंक स्कीम की रचना इस उद्देश्य से की गई थी कि जिला स्तरीय नियोजन अधिकारियों और बैंकों के बीच बेहतर तालमेल कायम हो सके। अब परिद-श्य में कुछ नए संगठन भी आ गये हैं, जैसे स्व सहायता समूह। किसानों के बीच कर्ज के लेन देने को लेकर जानकारी का बड़ा अभाव है।विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि भारतीय रिजर्व बैंक को लीड बैंक स्कीम को मजबूती देने के लिए प्रयास करने चाहिए।

 

विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि जमीन के दस्तावेजों को अद्यतन रुप दिया जाना चाहिए और उन्हें कंप्यूटरीकृत किया जाना चाहिए। 

 

विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि जो किसान पट्टे पर जमीन लेकर उस पर खेती कर रहे हैं उन्हें पट्टे पर ली गई जमीन के ब्यौरों को देखकर कर्ज की सुविधा उपलब्धकरायी जानी चाहिए।इसके अलावा पट्टे पर ली गई जमीन पर किसानी के लिए दिए जाने वाले कर्ज से संबंधित कानून बनाने के क्रम में सीमांत और छोटे किसानों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।

 

विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि माइक्रो फाइनेंस की संस्थाओं को मुख्यधारा की बैंकिंग का अविभाज्य अंग बनाया जाय।

 

राष्ट्रीय कृषि एवम् ग्रामीण विकास बैंक(नाबार्ड) को चाहिए कि वह ग्रामीण क्षेत्र में खेती और गैर खेतिहर कामों के विकास के लिए बन रही परियोजनाओं की तैयारी में बैंकों को समुचित प्रशिक्षण और दिशा निर्देश प्रदान करे। 

 

बैंकों को चाहिए कि वे अपने कर्मचारियों में खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों के साईंस ग्रेजुएट को शामिल करें। 

 

समूह का विचार है कि खेती को प्राथमिकता के आधार पर 18 फीसदी कर्ज देने की बैंकों की नीति एक दूरगामी महत्त्व वाली नाति है और बैंकों ने इसके अनुपालन की प्रतिबद्धता भी जतायी है। लेकिन बैंकों ने अपनी इस प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किया है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे उपाय करे कि बैंक अपनी प्रतिबद्धता को सुनिश्चित तौर पर पूरा कर सकें।

 

विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि राज्य और जिला स्तर पर किसानों की जीविका को बढ़ावा देने के लिए एक खास कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए ।राज्य स्तर पर इस कार्यक्रम की कमान मुख्यमंत्री के हाथों में और जिसा स्तर पर कलेक्टर के हाथों में सौंपी जाय।  इस कार्यक्रम को कारगर बनाने के लिए कुछ सहायक केंद्र बनाये जाये जिनके पास किसानों को को एकजुट करने, उनके लिए आर्थिक अवसर पहचानने और किसानों के लिए विभिन्न स्तर पर चल रही योजनाओं के बीच तालमेल बैठाने की पेशेवर दक्षता हो। इस कार्यक्रम में छोटे और सीमांत किसानों पर खास जोर दिया जाना चाहिए।

 

फसल के मारे जाने की स्थिति में फसली बीमा किसानों को संकट से उबारने का काम करती है। इसके महत्त्व को देखते हुए समूह का सुझाव है कि फसल बीमा योजना की समग्र समीक्षा होनी चाहिए और इसे कारगर बनाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सलाह ली जानी चाहिए।

 

 

अगर किसी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं तय किया गया है या फिर वह न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किए जाने वाले फसलो की श्रेणी में सामिल नहीं है परंतु उस फसल के दामों में कमी आने से किसान को संकट व्यापता है सरकार को चाहिए कि मूल्यों के उतार चढ़ाव के जोखिम से बचाने के लिए कायम किए गए फंड(प्राइस रिस्क मिटिगेशन फंड) से किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करे।

 

ऐसी तकनीकी व्यवस्था कायम की जानी चाहिए कि सिंचाई के लिए वर्षाजल पर आधारित और किसानी के संकट से जूझ रहे जिलों में उपग्रह से प्राप्त  चित्रों के इस्तेमाल से पहले ही पता लगाया जा सके कि इलाके में उपज की हालात कैसे रहने वाले हैं। .

 

पचायत या प्रखंड स्तर पर ऐसी प्रयोगशालाएं प्रयाप्त संख्या में खोली जानी चाहिए जहां खाद, बीज, कीयनाशक आदि की गुणवत्ता परखी जा सके। 

 

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