प्रिय पाठक,
नॉलेज गेटवे में आपका स्वागत है।अब अगर आपका सवाल है कि ये नॉलेज गेटवे है क्या? तो हमारा जवाब होगा कि दरअसल हम एक भंडारगृह बना रहे हैं; सूचनाओं का भंडारगृह।
यहाँ आपकी भेंट किसी ‘खास विषय’ से जुड़ी ज़रूरी सूचनाओं से हो जाएगी। आपकी सहूलियत के लिए हमने नॉलेज गेटवे को कई खण्डों–उपखण्डों में बाँटा है। ये ‘सतत् विकास लक्ष्य’ नामक उपखंड है।
खास बातें—
पहले वैश्विक युद्ध के कारण मची अव्यवस्था का निदान खोजने के लिए ‘लीग ऑफ़ नेशन’ की स्थापना की गई। लेकिन, तीन दशकों के भीतर ही दुनिया को फिर से एक युद्ध का सामना करना पड़ा।
दूसरे महायुद्ध के बाद ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ नाम से इसका पुनर्गठन किया जाता है। जहाँ इसके लिए कुछ उद्देश्य भी तय किए जाते हैं जैसे कि अंतरराष्ट्रीय कानून का निर्माण करना, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना, आर्थिक विकास को प्रगाढ़ करना और मानव-अधिकारों की पैरवी करना आदि–आदि।
वक्त बीतता गया लेकिन, संयुक्त राष्ट्र संघ कोई बड़ा कदम नहीं उठा पाया। दुनिया की दहलीज पर बड़ी–बड़ी समस्याओं ने दस्तक दे रखी थी। चहुँओर फैली गरीबी, शिशु व मातृ मृत्यु दर की ऊँची दरें, गरीब व अमीर के बीच की खाई और एचआईवी एड्स जैसे पहलुओं ने ज़रूरी कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
सन् 2000 में इन सब मामलों को ध्यान में रखते हुए बड़ा कदम उठाया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ के बैनर तले विश्व समुदाय के नेताओं ने एमडीजी (सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों ) शुरुआत की। एमडीजी के अधीन सात लक्ष्यों को रखा गया, जिन्हें शामिल होने वाले सभी देशों को वर्ष 2015 तक हासिल करना था। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की 70वीं बैठक अमेरिका के न्यूयार्क शहर में संपन्न हुई। जिसमें भारत सहित 193 देशों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की। इस बैठक में प्रतिनिधियों के समक्ष ‘2030 सतत् विकास हेतु एजेंडा’ रखा गया। जिसे अंगीकृत कर दिया गया। इस एजेंडे में 17 विकास लक्ष्यों; 169 उपलक्ष्यों का जिक्र था जिसे आज हम सतत् विकास लक्ष्यों के नाम से जानते हैं।
वर्ष 2015 में सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की अवधि पूरी हो गई थी। वर्ष 2016 से उनकी जगह सतत् विकास लक्ष्यों ने ले ली। अब अगर आपका सवाल है कि सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों का परिणाम कैसा रहा? तो इनके प्रतिफल पर अलग-अलग संस्थानों की ओर से कई दस्तावेज जारी किए हैं; जिसका मोटा-मोटा सार यह है कि – शिशु मृत्यु दर में कमी देखी गई, एचआईवी संक्रमण के नए मामलों में गिरावट पाई गई, तपेदिक के मामलों में भी गिरावट देखी गई और पेयजल के स्रोतों तक लोगों की पहुँच में बढ़ोतरी दर्ज की गई। कृपया यहाँ, यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए।
गौरतलब है कि सतत् विकास लक्ष्यों के आने से सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों के माध्यम से शुरू की गई यात्रा परकोई पूर्णविराम नहीं लगा था; बल्कि यात्रा को और व्यापक रूप (नए मुद्दों का समावेशन कर) दिया गया। इसी का सबूत है कि सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों का अधिकांश हिस्सा आपको सतत् विकास लक्ष्यों में नज़र आ जाएगा। साथ ही, कई अन्य विषयों को भी जोड़ा गया है जोकि समय की ज़रूरतों का प्रतिफल है।
सतत् विकास लक्ष्य
सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों में पहला लक्ष्य भूख और गरीबी के खात्मे पर था; सतत् विकास लक्ष्यों में यह दो अलग लक्ष्यों का रूप ले लेता है। सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों में स्वास्थ्य के मुद्दे पर तीन लक्ष्य थे; जैसे शिशु मृत्यु दर में गिरावट लाने के लिए, मातृ मृत्यु दर में आदि। सतत् विकास लक्ष्यों में इसे व्यापकता के साथ स्वीकार किया जैसे शिक्षा के मामले में किया था।
वहीं आर्थिक असमानता को कम करने, पर्यावरण से जुड़े लक्ष्यों को भी प्रमुखता दी है। सही मायनों में लक्ष्यों का यह पुंज सतत् विकास की धरना को धरातल पर उतारता है। नीचे लक्ष्यों का विवरण दर्ज किया गया है।
नीति आयोग द्वारा सतत् विकास लक्ष्यों पर जारी दस्तावेजों को सिलसिलेवार ढंग से प्राप्त करें.
SDG India Index Report 2020-21, रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
SDG INDIA INDEX- 2019-20, रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
SDG INDIA INDEX- 2018, रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
LOCALISING SDGs EARLY LESSONS FROM-2019, रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
India Voluntary National Review 2020, रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें
NE REGION DISTRICT SDG INDEX REPORT & DASHBOARD 2021-22, रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
THE INDIAN MODEL OF SDG LOCALISATION, रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
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संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से प्रति वर्ष सतत् विकास लक्ष्यों पर जारी की जाने वाली रिपोर्ट –
The Sustainable Development Goals Report 2022 रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
The Sustainable Development Goals Report 2021 रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
The Sustainable Development Goals Report 2020 रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
The Sustainable Development Goals Report 2019 रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
The Sustainable Development Goals Report 2018 रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
The Sustainable Development Goals Report 2017 रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
The Sustainable Development Goals Report 2016 रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करें.
लक्ष्य- 1, गरीबी का खात्मा ('नो पावर्टी')
सभी क्षेत्रों में व्याप्त हर तरह की गरीबी का उन्मूलन.
लक्ष्य-2 भुखमरी का खात्मा ('नो हंगर')
भुखमरी समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण प्राप्त करना और स्थायी कृषि को बढ़ावा देना।
लक्ष्य-3, अच्छा स्वास्थ्य और जीवनस्तर
सभी के लिए स्वस्थ जीवन और सभी के जीवन स्तर में सुधार लाना.
लक्ष्य-4, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
समावेशी और न्यायपूर्ण-गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करना; सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना.
लक्ष्य-5, लैंगिक समानता
लैंगिक समानता प्राप्त करना और सभी महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण हेतु प्रयास करना.
लक्ष्य-6, साफ़ पानी और स्वच्छता
सभी के लिए स्वच्छ पानी और स्वच्छता की उपलब्धता और उसका संधारणीय प्रबंधन सुनिश्चित करना.
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लक्ष्य-7,सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा
सभी के लिए सस्ती, भरोसेमंद, टिकाऊ और नवीन ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना.
लक्ष्य-8, गरिमापूर्ण काम और आर्थिक संवृद्धि
हरेक के लिए निरंतर, समावेशी और टिकाऊ आर्थिक विकास को बढ़ावा देना तथा साथ ही, सभी के लिए गरिमापूर्ण-स्थाई और सृजनात्मक रोजगार को बढ़ावा देना.
लक्ष्य-9, उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचे का विकास
टिकाऊ बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना, सतत् व समावेशी औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित करना, नवाचार को बढ़ावा देना.
लक्ष्य-10, असमानता में कमी लाना.
देशों के भीतर और देशों के बीच मौजूद असमानता को कम करना.
लक्ष्य-11, धारणीय शहरों व समुदायों का निर्माण
शहरों और मानवीय बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, टिकाऊ और संधारणीय रूप देना.
लक्ष्य-12, जिम्मेदारीपूर्ण उपभोग व उत्पादन
उत्पादन और उपभोग के पैटर्न को टिकाऊ बनाना.
लक्ष्य-13, जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई
जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करें.
लक्ष्य-14, पानी में जीवन
सतत् विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और सतत् उपयोग.
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लक्ष्य-15, भूमि पर जीवन
स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों के सतत उपयोग को सुरक्षित, पुनर्स्थापित और बढ़ावा देना, वनों का सतत् प्रबंधन, मरुस्थलीकरण का मुकाबला करना और भूमि क्षरण पर लगाम लगाना और जैव विविधता के नुकसान को रोकना।
लक्ष्य-16, शांति, न्याय और मजबूत संस्थाएँ
सतत् विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समाज को बढ़ावा देना, न्याय तक सभी की पहुँच सुनिश्चित करना और सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस्थानों का निर्माण करना
लक्ष्य-17, लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साझेदारी
सतत् विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करना और कार्यान्वयन के साधनों को मजबूत बनाना.
सहस्राब्दी विकास लक्ष्य
सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों का विवरण निम्नलिखित है-
संकल्प 1:अति दरिद्रता और भुखमरी का उन्मूलन
लक्ष्य-जिन लोगों की आमदनी रोजाना एक डॉलर से कम है उनकी संख्या 1990 से 2015 के बीच आधी करना।
साल 1990 से 2015 के बीच विश्व में भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद में 50 फीसदी की कमी लाना।
संकल्प 2 : सबको प्राथमिक शिक्षा हासिल हो।
लक्ष्य-इस बात को सुनिश्चित करना कि दुनिया में हर बच्चे को(लड़का हो या लड़की) 2015 तक प्राथमिक शिक्षा हासिल हो जाये।
संकल्प 3- स्त्री-पुरूषों के बीच बराबरी को बढ़ावा देना और महिलाओं का सशक्तीकरण करना
लक्ष्य- प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा से लैंगिक गैरबराबरी को साल 2005 तक समाप्त करना और शिक्षा के सभी स्तरों पर इस गैरबराबरी को साल 2015 तक खत्म करना।
संकल्प 4- बाल-मृत्यु की संख्या में कमी करना।
लक्ष्य-शून्य से पाँच साल तक की उम्र के बच्चों की मृत्यु की घटना में 1990 से 2015 के बीच की अवधि में दो तिहाई की कमी लाना।
संकल्प 5- जननि-स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार करना
लक्ष्य-साल 1990 से 2015 के बीच मातृ-मृत्यु दर में तीन चौथाई की कमी लाना और साल 2015 तक प्रजनन-स्वास्थ्य से संबंधित सुविधाओं को हरेक व्यक्ति तक पहुंचाना
संकल्प 6- एचआईवी-एडस्,मलेरिया और अन्य बीमारियों की रोकथाम।
लक्ष्य- साल 2015 तक एचआईवी एडस्के प्रसार पर रोक लगाना और इसके बाद एचआईवी-एडस् की घटना का उन्मूलन।
संकल्प 7 – पर्यावरण के टिकाऊपन को सुनिश्चत करना।
लक्ष्य-देश के नीतियों और कार्यक्रमों में टिकाऊ विकास के सिद्धांतों को जगह देना और प्राकृतिक संसाधनों के नाश की प्रवृति पर रोक लगाना।
जैव विविधता के नाश को कम करना और 2010 तक जैव विविधता के नाश की दर में सुनिश्चित कमी लाना।जो लोग स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई की बुनियादी सुविधा से वंचित हैं उनकी संख्या 2015 तक कम करके आधी करना।
साल 2020 तक कम से कम 10 करोड़ झुग्गीवासी जनता की रहन-सहन स्थिति में उल्लेखनीय सुधार करना।
संकल्प-8-विकास के लिए वैश्विक स्तर पर साझेदारी करना।
लक्ष्य-सर्वाधिक पिछड़े देशों,चारो तरफ भूमि से घिरे देशों और छोटे द्वीपों में बसे विकासशील देशों की विशेष जरुरतों को ध्यान में रखते हुए व्यवस्था करना।
बराबरी पर आधारित और कानून सम्मत उदार वित्तीय और कारोबारी व्यवस्था करना।
विकासशील देशों की कर्जदारी का व्यापक स्तर पर समाधान सुझाना।
औषधि निर्माता कंपनियों के सहयोग से विकासशील मुल्कों में जरुरी किस्म की दवाइयां उपलब्ध कराना।
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[inside]लैंगिक नजरिये से सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति का आकलन; पढ़ें रिपोर्ट की मुख्य बातें [/inside]
“सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति : लैंगिक स्नैपशॉट 2023”
संयुक्त राष्ट्र महिला और यूएन के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग ने मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में सभी सत्रह सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति का आकलन किया है। सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए 15 बरस की समय सीमा तय की थी। लेकिन, आधा समय बीत जाने के बाद लक्ष्यों का मंजिल तक पहुँचना दुभर दिख रहा है।
इस लेख में इस रिपोर्ट की मुख्य बातें पेश की हैं। रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक कीजिए!
- सतत् विकास लक्ष्य नंबर 5 लैंगिक समानता की बात करता है। लेकिन, जिस गति के साथ एसडीजी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रगति कर रहे हैं, वो नाकाफी है।
- अगर मौजूदा गति के साथ प्रगति जारी रही तो वर्ष 2030 तक 340 मिलियन महिलाएँ और बच्चियाँ अत्यधिक गरीबी में रहेंगी।
- वर्ष 2030 तक जीरो गरीबी के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए गरीबी उन्मूलन की मौजूदा गति को 26 गुणा तेज करना होगा।
- वर्ष 2030 तक 4 में से 1 महिलाओं और बच्चियों के जीवन में खाद्य सुरक्षा का अभाव होगा।
- वर्ष 2000 से 2020 के बीच में मातृ मृत्यु दर में वैश्विक स्तर पर एक तिहाई की गिरावट आई थी। लेकिन, वर्ष 2015 से प्रगति रुकी हुई है।
- स्कूल शिक्षा के मामले में लड़कियों ने लड़कों को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन, अनुपात अभी भी कम बना हुआ है; केवल 60 प्रतिशत लड़कियां ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाती हैं।
- गरीबी और भुखमरी को खत्म करने सहित प्रमुख वैश्विक लक्ष्यों में लैंगिक समानता हासिल करने के लिए प्रति वर्ष अतिरिक्त 360 बिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।
- देश में मजबूत कानूनी ढाँचा सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा दे सकता है। लेकिन, 54 प्रतिशत देशों में अभी भी लैंगिक समानता के लिए आवश्यक कानूनों का अभाव है।
- सरकारों और प्रबंधन के पदों पर लैंगिक अंतर कायम है। विश्वभर में संसद की 26.7 प्रतिशत सीटें ही महिलाओं के पास हैं। वहीं स्थानीय शासन में 35.5 प्रतिशत।और 28.2%कार्यक्षेत्र में प्रबंधन के स्तर पर महिलाओं की हिस्सेदारी है।
- 380 मिलियन महिलाओं व बच्चियों को जल संकट का सामना करना पड़ेगा। यह संख्या वर्ष 2050 तक बढ़कर 674 मिलियन हो जाएगी।
- कामकाजी उमर की 61.4 प्रतिशत महिलाएँ ही श्रमशक्ति में शामिल हैं। वहीं पुरुषों के मामले में यह आँकड़ा बढ़कर 90.6 प्रतिशत हो जाता है।
- महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर हो रहे भेदभाव के घटनाएँ पुरुषों की तुलना में दोगुनी है।
- शहरी नियोजन पर पर्याप्त जोर देने की आवश्यकता है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में वर्ष 2050 तक 1.05 बिलियन महिलाएँ और बच्चियाँ झुग्गी–झोपड़ियों में रहेंगी।
- जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर हाशिये पर बैठे तबके पर पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक इसके कारण 158 मिलियन महिलाएँ और बच्चियाँ गरीबी के गर्त में जा सकती हैं।
- संघर्ष से प्रभावित इलाकों में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों की संख्या वर्ष 2022 में 614 मिलियन हो गई है जो कि वर्ष 2017 की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है।
“सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति : लैंगिक स्नैपशॉट 2022”
“सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति : लैंगिक स्नैपशॉट 2021”
“सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति : लैंगिक स्नैपशॉट 2020”
“सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति : लैंगिक स्नैपशॉट 2019”
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[inside]ग्लोबल ईवी आउटलुक-2023 जारी, पढ़ें रिपोर्ट की मुख्य बातें [/inside]
पूरी रिपोर्ट यहाँ से.
दुनिया भर में वर्ष 2022 के दौरान करीब 10 मिलियन इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री हुई है जो कि कुल बेची गई नई कारों का 14% हिस्सा रखती है। यह हिस्सेदारी वर्ष 2021 में लगभग 9% थी और वर्ष 2020 में 5% से भी कम।
वैश्विक बिक्री में तीन बाजारों का बोलबाला है। पहला, चीन की बाजार का; चाइना अकेला 60 प्रतिशत कारें बेचता है। दूसरा सबसे बड़ा विक्रेता यूरोप है और तीसरा अमेरिका।
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री वर्ष 2030 तक बेरोकटोक चलती रहेगी। वर्ष 2023 की पहली तिमाही के आँकड़ों को देखें तो 2.3 मिलियन इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री हो गई है जोकि पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में 25% अधिक है।
क्या है ये रिपोर्ट?
ग्लोबल ईवी आउटलुक नाम से हर वर्ष एक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है। ये रिपोर्ट दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहनों की वस्तुस्थिति को बयां करती है। इस रिपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय उर्जा एजेंसी, "इलेक्ट्रिक वाहन पहल" (ईवीआई) के सदस्यों के सहयोग से तैयार करती है। इस रिपोर्ट में इलेक्ट्रिक वाहनों की दुनिया में घटने वाली घटनाओं को दर्ज किया जाता है।
ये रिपोर्ट, वर्ष 2030 तक के अनुमान, चार्जिंग अवसंरचना, बैटरी की मांग, बिजली की खपत, जीवाश्म ईंधन में कटौती की मात्रा, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से जुड़े विश्लेषणों का परिक्षण करती है।
इस रिपोर्ट के साथ ही दो ऑनलाइन टूल भी उपलब्ध करवाएँ हैं – ग्लोबल इवी डेटा एक्सप्लोरर और ग्लोबल इवी पॉलिसी एक्सप्लोरर; जो कि आँकड़ों को समझने में आसानी पैदा करते हैं।
भारत के सन्दर्भ में क्या कहती है ये रिपोर्ट-
- वर्ष 2022 में भारत ने इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया है; इलेक्ट्रिक कारों कीबिक्री पिछले वर्ष की तुलना में तीन गुणा अधिक रही।
- भारत में, वर्ष 2022 में पंजीकृत हुए कुल तिपहिया वाहनों में आधे वाहन इलेक्ट्रिक ईंधन से चलने वाले थे।
- वर्ष 2023 की पहली तिमाही में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में दोगुनी रही है।
- वर्ष 2022 में, भारत में 50,000 के करीब बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री हुई थी जो कि 2021 की तुलना में चार गुणा अधिक है।
- वर्ष 2022 में 25 प्रतिशत इलेक्ट्रिक कारें व्यावसायिक संचालकों ने खरीदी।
- वर्ष 2013 में भारत में 410 कारों की बिक्री हुई थी; वर्ष 2022 में 48,000 की।
- वर्ष 2022 में भारत के पास 10,900 चार्जिंग पॉइंट्स बने हुए थे।
- वर्ष 2022 में बिक्री हुए कुल वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 1.5 प्रतिशत रही। गौरतलब है कि वर्ष 2021 में यह 0.4 प्रतिशत ही थी।
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[inside]इकोनॉमिक एंड सोशल सर्वे ऑफ एशिया एंड द पैसिफिक 2023: रिथिंकिंग पब्लिक डेब्ट फॉर द सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स, 5 अप्रैल 2023 को जारी [/inside]
ये रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र संघ के एशिया और प्रशांत क्षेत्र हेतु बने आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP) ने जारी की है। इस रिपोर्ट को प्राप्त करने के लिए कृपया यहाँ, यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए!
एशिया–प्रशांत क्षेत्र में ‘औसत पब्लिक डेब्ट’ पिछले 18 वर्षों के उच्चतम शिखर पर।
कोविड महामारी के कारण अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में आई मंदी से निपटने के लिए सार्वजनिक ऋण के स्तर को बढ़ाना पड़ा।
क्या है ये रिपोर्ट?
आर्थिक वृद्धि का पहिया दौड़ता रहे इसके लिए सरकारें ऋण लेती हैं। जिसे तकनीकी भाषा में पब्लिक डेब्ट (सार्वजनिक ऋण) कहा जाता है। इस रपट में कुल पांच अध्याय हैं। जिनमें एशिया–प्रशांत भूभाग में बसे ‘राष्ट्र–राज्यों’ की सार्वजनिक ऋण के मामले में वस्तुस्थिति का विश्लेषण है; सार्वजनिक ऋण और विकास के आपसी संबंधों को दर्ज किया है; साथ ही, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने के लिए ज़रूरी सुझावों का खाका भी पेश किया है।
स्रोत- Economic social survey
रपट की मुख्य बातें—
- एशिया–प्रशांत क्षेत्र के विकासशील देशों का साल 2022 में आर्थिक प्रदर्शन कमजोर रहा। ऊंची महंगाई दरों के कारण सामाजिक–आर्थिक विषमता की खाई बढ़ती जा रही है; मूल्य दरों में स्थिरता लाना जरूरी है अन्यथा सतत विकास लक्ष्यों तक नहीं पहुंच पाएंगे।
- वैश्विक मंदी, उच्च महंगाई दर और युद्ध के कारण अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है, ऐसे में वर्ष 2023–24 में भी आर्थिक बढ़ोतरी की संभावना कम है।
- वित्तीय वर्ष 2023–24 के लिए रियल जीडीपी में अनुमानित बढ़ोतरी 4.2 फीसद और वर्ष 2024 में 4.7% रहने का अनुमान लगाया है(एशिया–प्रशांत अर्थव्यवस्थाओं के लिए)।
जब मंदी आती है तब बाजार में धन की आवक कम हो जाती है।जिसके कारण आर्थिक वृद्धि का पहिया धीमा हो जाता है। सरकार, अपनी ओर से पैसे खर्च करती है; बाजार में धन की आवक बढ़ जाती है। इसी तरह जनता के माध्यम से पैसे खर्च करवाने के लिए केंद्रीय बैंक ब्याज दरों (रेपो रेटइत्यादि) को कमकरती है।
सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज लेकर इंसान बाजार में खरीददारी के लिए जाता है। बाजार में मांग बढ़ जाती है। मांग बढ़ते ही मुद्रास्फीति यानी महंगाई भी बढ़ जाती है।
ऐसे में केंद्रीय बैंकों के सामने द्वंद्व आ जाता है— आर्थिक बढ़ोतरी के लिए सस्ती दरों पर कर्ज देना भी जरूरी है और बाजार में बढ़ रही महंगाई दर को भी काबू में रखना जरूरी।
महामारी के बाद में आर्थिक वृद्धि की गति धीमी है। और महंगाई दरें बढ़ी हुई हैं।
सार्वजनिक ऋण और विकास के संबंधों पर पुनर्विचार—
सामान्यतः ये माना जाता है कि सार्वजनिक ऋण में बढ़ोतरी होने पर विकास की अविरल धारा तेज गति से बहती है। पर सार्वजनिक ऋण और विकास के बीच में मौजूद तारतम्यता के गड़बड़ा जाने से विकास का मकसद अधूरा रह जाता है।
सतत विकास के एजेंडे को लागू किए आठ साल हो गए हैं पर एशिया–प्रशांत क्षेत्र में एक भी ऐसा देश नहीं है जो किसी भी लक्ष्य को हासिल करने की राह पर हो। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सार्वजनिक ऋण और विकास के संबंधों पर पुनः विचार किया जाए।
अगर सार्वजनिक ऋण का विवेकपूर्ण इस्तेमाल किया जाए, तो वो विकास के लिए एक कारगर वाहक साबित हो सकता है।
सार्वजनिक ऋण और एशिया–प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाएं
- ऋण के मामले में ‘उच्च जोखिम’ की श्रेणी में आने वाले देशों की संख्या निरंतर बढ़ रही हैं।
- यूक्रेन के साथ छिड़े युद्ध ने इस तनाव को और गहरा कर दिया है।
- सार्वजनिक ऋण के नज़रिए से दो तिहाई देशों ने वर्ष 2008 के स्तर को छू लिया है।
- वर्तमान में 19 देशों को ऋण के मामले में ‘उच्च जोखिम’ की श्रेणी में रखा गया है।
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नीति आयोग और संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित [inside] एसडीजी इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड 2020-21: पार्टनरशिप्स इन द डिकेड ऑफ एक्शन (जून 2021 में जारी) [/inside] नामक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष, इस प्रकार हैं (देखने के लिए कृपया यहां और यहां क्लिक करें)
• एसडीजी इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड 2020-21 का तीसरा संस्करण नीति आयोग द्वारा जून 2021 में जारी किया गया था. 2018 में इसके उद्घाटन के बाद से, इंडेक्स व्यापक रूप से सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा की गई प्रगति का दस्तावेजीकरण और रैंकिंग कर रहा है. अब अपने तीसरे वर्ष में, सूचकांक देश में एसडीजी पर प्रगति की निगरानी के लिए प्राथमिक उपकरण बन गया है और साथ ही साथ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है.
• 2018 में अपने पहले संस्करण में 62 संकेतकों के साथ 13 लक्ष्यों को कवर करने से, तीसरे संस्करण में 115 मात्रात्मक संकेतकों पर 16 लक्ष्यों को शामिल किया गया है, लक्ष्य 17 पर गुणात्मक मूल्यांकन के साथ, जिससे इस महत्वपूर्ण उपकरण को परिष्कृत करने की दिशा में हमारे निरंतर प्रयासों को दर्शाया गया है.
• भारत में संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से विकसित एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2020-21, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों कीप्रगति को 115 संकेतकों पर ट्रैक करता है जो MoSPI के राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क (NIF) से जुड़े हैं. प्रत्येक संस्करण के साथ इस महत्वपूर्ण उपकरण को परिष्कृत और बेहतर बनाने की पहल निरंतर बेंचमार्क प्रदर्शन और प्रगति को मापने और राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर नवीनतम एसडीजी-संबंधित डेटा की उपलब्धता के हिसाब से की गई है. इन 115 संकेतकों के चयन की प्रक्रिया में केंद्रीय मंत्रालयों के साथ कई परामर्श शामिल थे. सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्रतिक्रिया मांगी गई थी और इस स्थानीयकरण उपकरण के आवश्यक हितधारक और दर्शकों के रूप में, उन्होंने स्थानीय अंतर्दृष्टि और जमीन से अनुभव के साथ प्रतिक्रिया प्रक्रिया को समृद्ध करके सूचकांक को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
• राष्ट्रीय संकेतक ढांचे (एनआईएफ) के साथ अधिक संरेखण के साथ लक्ष्यों और संकेतकों के व्यापक कवरेज के कारण एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2020-21 को आधिकारिक तौर पर पिछले संस्करणों की तुलना में अधिक मजबूत माना जाता है. 115 संकेतकों में 17 में से 16 एसडीजी शामिल हैं, लक्ष्य 17 पर गुणात्मक मूल्यांकन के साथ, और 70 एसडीजी लक्ष्यों को कवर करते हैं. यह सूचकांक के 2018-19 और 2019–20 संस्करणों में एक सुधार है, जिसमें 39 लक्ष्यों और 13 लक्ष्यों में 62 संकेतकों और 54 लक्ष्यों और 16 लक्ष्यों में 100 संकेतकों का उपयोग किया गया था.
• एसडीजी इंडिया इंडेक्स प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लिए 16 एसडीजी पर लक्ष्य-वार स्कोर की गणना करता है. कुल मिलाकर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के स्कोर 16 एसडीजी में इसके प्रदर्शन के आधार पर उप-राष्ट्रीय इकाई के समग्र प्रदर्शन को मापने के लिए लक्ष्य-वार स्कोर से उत्पन्न होते हैं. ये स्कोर 0-100 के बीच होते हैं, और यदि कोई राज्य/संघ राज्य क्षेत्र 100 का स्कोर प्राप्त करता है, तो यह दर्शाता है कि उसने 2030 के लक्ष्य हासिल कर लिए हैं. किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र का स्कोर जितना अधिक होगा, लक्ष्य की प्राप्ति की दूरी उतनी ही अधिक होगी.
• राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उनके एसडीजी इंडिया इंडेक्स स्कोर के आधार पर नीचे वर्गीकृत किया गया है:
*आकांक्षी: 0–49
* प्रदर्शनकर्ता: 50-64
* फ्रंट-रनर: 65-99
* अचीवर: 100
कुल मिलाकर परिणाम और निष्कर्ष
• देश के समग्र एसडीजी स्कोर में 6 अंकों का सुधार हुआ- 2019 में 60 से 2020-21 में 66 हो गया. लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में यह सकारात्मक कदम बड़े पैमाने पर लक्ष्य 6 (स्वच्छ पानी और स्वच्छता) और लक्ष्य 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) में अनुकरणीय देशव्यापी प्रदर्शन से प्रेरित है, जहां समग्र लक्ष्य स्कोर क्रमशः 83 और 92 हैं.
लक्ष्य-वार भारत परिणाम, 2019-2020 और 2020-21:
• एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2020-21 में शीर्ष-पांच और निचले-पांच राज्य:
• एसडीजी2020-21 पर राज्यों औरकेंद्र शासित प्रदेशों का प्रदर्शन और रैंकिंग, जिसमें पिछले साल के स्कोर में बदलाव शामिल है:
• लक्ष्य-वार शीर्ष राज्य हैं:
• 2019 से स्कोर में सुधार के मामले में मिजोरम, हरियाणा और उत्तराखंड 2020-21 में क्रमश: 12, 10 और 8 अंकों की वृद्धि के साथ शीर्ष पर हैं.
• शीर्ष तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्य (स्कोर-वार):
• जबकि 2019 में, दस राज्य/केंद्र शासित प्रदेश फ्रंट-रनर की श्रेणी में थे (स्कोर 65-99 की सीमा में, दोनों को मिलाकर), 2020-21 में बारह और राज्य/केंद्र शासित प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, मिजोरम, पंजाब, हरियाणा, त्रिपुरा, दिल्ली, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख ने फ्रंट-रनर (दोनों सहित 65 और 99 के बीच स्कोर) इस श्रेणी में शामिल हुए.
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विश्व आर्थिक मंच के लिए 28 देशों का इप्सोस सर्वेक्षण कर तैयार की गई [inside] यूएन सस्टेनेबल डेवल्पमेंट गोल्स इन 2021: पब्लिक ऑपीनियन ऑन प्रायोरिटीज एंड स्टेकहॉल्डर्स कमिटमेंट (9 जून, 2021 को जारी) [/inside], नामक सर्वेक्षण रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष (उपयोग करने के लिए कृपया यहां, यहां और यहां क्लिक करें):
• संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के बारे में विश्व आर्थिक मंच के साथ साझेदारी में किए गए नवीनतम इप्सोस सर्वेक्षण में "जीरो हंगर" (SDG-2), "कोई गरीबी नहीं" (SDG-1) और "अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण" (SDG-3) विश्वभर में जनता की सर्वोच्च प्राथमिकताओं के रूप में चिन्हित किए गए.
• 23 अप्रैल से 7 मई, 2021 की अवधि के दौरान आयोजित इप्सोस सर्वेक्षण में पाया गया कि "जीरो हंगर" (एसडीजी-2), जिसे विश्व स्तर पर सबसे अधिक प्राथमिकता के रूप में देखा जाता है, 28 देशों में से 20 में # 1 रैंक पर है और 6 अन्य देशों में शीर्ष 3 पर.
• "कोई गरीबी नहीं" (SDG-1), विश्व स्तर पर दूसरे नंबर पर है. 4 देशों में #1 रैंक पर है और 20 अन्य देशों में शीर्ष 3 में है.
• "अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण" (SDG-3), विश्व स्तर पर तीसरे नंबर पर है. 4 देशों में #1 रैंक पर है और 13 अन्य देशों में शीर्ष 3 में है.
• अधिकांश देशों के सभीशीर्ष 3 लक्ष्य वैश्विक शीर्ष 6 में गिने जाते हैं. किसी भी देश के शीर्ष 3 में केवल 5 अन्य एसडीजी दिखाई देते हैं: ग्रेट ब्रिटेन में #3 पर "जलवायु कार्रवाई" (एसडीजी-13), "पानी के नीचे जीवन" ( SDG-14) जर्मनी में #3 पर; दक्षिण कोरिया में #3 पर "शांति, न्याय और मजबूत संस्थान" (SDG-16); बेल्जियम में #3 पर "असमानता में कमी" (SDG-10); और "लैंगिक समानता" (SDG-5) भारत में #3 नंबर पर है.
• भारत में, "जीरो हंगर" (SDG-2) को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई. "अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण" (SDG-3) देश में #2 नंबर पर है. "कोई गरीबी नहीं" (SDG-1) और "लिंग समानता" (SDG-5) दोनों तीसरे नंबर पर हैं.
• सर्वेक्षण किए गए सभी देशों में औसतन, आधे लोगों (53 प्रतिशत) का कहना है कि उनकी सरकार इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने हिस्से से कम जिम्मेदारी ले रही है, जबकि दस में से चार का कहना है कि उनके देश में व्यवसायों (42 प्रतिशत) और देश में "अधिकांश लोग" (40 प्रतिशत) अपनी जिम्मेदारी से कम योगदान कर रहे हैं. हालांकि, उनके देश की प्रत्येक सरकार, व्यवसायों और लोगों के लिए, औसतन 22 प्रतिशत का कहना है कि वे अपने हिस्से की जिम्मेदारी से अधिक काम कर रहे हैं.
• भारत में, 44 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि सरकार एसडीजी हासिल करने की जिम्मेदारी लेकर पर्याप्त काम नहीं कर रही है, जबकि 32 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि व्यवसाय भी लक्ष्यों को हासिल करने की जिम्मेदारी को लेकर पर्याप्त योगदान नहीं दे रहे हैं. लगभग 34 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि अधिकांश लोग एसडीजी हासिल करने की जिम्मेदारी को लेकर पर्याप्त योगदान नहीं दे रहे हैं.
• बहुसंख्यक सोचते हैं कि उनकी सरकार 20 देशों में अपनी जिम्मेदारी से बच रही है – सबसे अधिक हंगरी, (71 प्रतिशत), कोलंबिया (69 प्रतिशत), दक्षिण अफ्रीका (69 प्रतिशत), और ब्राजील (67 प्रतिशत) में.
• अधिकांश लोगों का मानना है कि चिली (56 प्रतिशत) कनाडा (55 प्रतिशत), style="font-size:10.5pt">तुर्की (55 प्रतिशत)style="color:#333333">, ग्रेट ब्रिटेन (54 प्रतिशत), इटली (52 प्रतिशत) हंगरी (52 प्रतिशत), और कोलंबिया (51 प्रतिशत) में व्यवसाय पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं.
• बहुसंख्यक अपने देश में "अधिकांश लोगों" के तुर्की (60 प्रतिशत), हंगरी (56 प्रतिशत), इटली (53 प्रतिशत) और कनाडा (52 प्रतिशत) में पर्याप्त काम नहीं करने की आलोचना करते हैं.
• कृपया ध्यान दें कि ये इप्सोस द्वारा अपने ग्लोबल एडवाइजर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर किए गए 28-मार्केट सर्वेक्षण के परिणाम हैं. इप्सोस ने 23 अप्रैल से 7 मई, 2021 के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की में 18-74 वर्ष की आयु के कुल 19,585 वयस्कों और 24 अन्य जगहों में 16-74 वर्ष की आयु के लोगों का साक्षात्कार लिया.
• 2015 में, विश्व के नेताओं ने 2030 तक एक बेहतर दुनिया के लिए 17 लक्ष्यों ("एसडीजी" के रूप में भी जाना जाता है) पर सहमति व्यक्त की. वे सभी के लिए एक बेहतर और अधिक टिकाऊ भविष्य प्राप्त करने के लिए सरकारों, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और नागरिकों को शामिल करते हैं. इप्सोस ने 28 देशों के 19,585 वयस्कों को आज प्राथमिकता के क्रम में उनमें से 16 में से 8 बेतरतीब ढंग से चुने गए एसडीजी को रैंक करने के लिए कहा. 16 लक्ष्यों में से प्रत्येक का मूल्यांकन करीब 10,000 उत्तरदाताओं द्वारा किया गया था.
• ब्राजील, चिली, मुख्य भूमि चीन, कोलंबिया, भारत, मलेशिया, मैक्सिको, पेरू, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की में ऑनलाइन नमूने सामान्य आबादी की तुलना में अधिक शहरी, शिक्षित और/या समृद्ध हैं. "वैश्विक देश औसत" उन सभी देशों और बाजारों के औसत परिणाम को दर्शाता है जहां सर्वेक्षण किया गया था. इसे प्रत्येक देश या बाजार की जनसंख्या के आकार में समायोजित नहीं किया गया है और इसका कुल परिणाम सुझाने का इरादा नहीं है.
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यूनिसेफ द्वारा प्रस्तुत [inside]कमिटिंग टू चाइल्ड सरवाइवल- अ प्रामिस रिन्यूड, प्रोग्रेस रिपोर्ट-2012[/inside] नामक दस्तावेज के अनुसार- http://www.unicef.org/media/files/APR_Progress_Report_2012_final.pdf
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– विश्व में पाँच साल से कम उम्र के तकरीबन 19,000 बच्चे प्रति दिन मृत्यु के शिकार होते हैं।
– पाँच साल से कम उम्र में मृत्यु का शिकार होने वाले बच्चों की संख्या को सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों के अनुसार 2.5%,सालाना की दर से घटाना है, यह दर मौजूदा परिस्थितियों में अपर्याप्त साबित हो रही है।
– भारत में बीते वर्ष( 2011) पाँच साल से कम उम्र के 10 लाख 70 हजार बच्चों की मृत्यु हुई। यह संख्या विश्व के देशों में सर्वाधिक है। यह संख्या पाँच साल से कम उम्र में मृत्यु का शिकार हुए कुल बच्चों(विश्व) की संख्या का 24 फीसदी है।
– पाँच साल से कम उम्र केजो बच्चे बीते साल(2011) मृत्यु का शिकार हुए उनकी कुल तादाद का एक तिहाई हिस्सा सिर्फ भारत और नाइजीरिया से है।
– रिपोर्ट के अनुसार पाँच साल से कम की उम्र में मृत्यु के शिकार होने वाले कुल बच्चों में 50 फीसदी सिर्फ पाँच देशों- भारत, नाइजीरिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑव कांगो, पाकिस्तान और चीन से हैं।
– चीन में बीते साल पाँच साल से कम उम्र के 2.49 लाख बच्चे मृत्यु का शिकार हुए, जबकि इथोपिया में 1.94 लाख और बांग्लादेश तथा इंडोनेशिया में 1.34 लाख। युगांडा में इस आयु वर्ग के कुल 1.31 लाख बच्चे मृत्यु का शिकार हुए जबकि अफगानिस्तान में 1.28 लाख। सर्वाधिक संख्या में बाल-मृत्यु वाले देशों में युगांडा और अफगानिस्तान का स्थान 9 वां और 10 वां है, भारत का पहला।
– साल 2011 में पाँच साल से कम उम्र में मृत्यु का शिकार होने वाले कुल बच्चों का 49 फीसदी हिस्सी उप-सहारीय अफ्रीकी देशों का है जबकि इस मामले में दक्षिण एशिया की हिस्सेदारी 33 फीसदी की है। शेष विश्व का हिस्सा इस मामले में साल 1990 में 32% का था जो दो दशक बाद घटकर 18% रह गया है।
– पाँच साल से कम उम्र के जो बच्चे बीते साल(2011) मृत्यु का शिकार हुए उनकी कुल तादाद का एक तिहाई हिस्सा सिर्फ भारत और नाइजीरिया से है।
– निमोनिया या फिर डायरिया से हाने वाली कुल वैश्विक बाल-मृत्यु का 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सिर्फ चार देशों- भारत( 10 लाख 70 हजार) , नाइजीरिया( 7 लाख 56 हजार) , डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑव कांगो( 4 लाख 65 हजार) और पाकिस्तान( 3 लाख 52 हजार) में केंद्रित है।
– सिगापुर में बाल-मृत्यु की दर सर्वाधिक कम यानी 2.6 रही जबकि स्लोवेनिया और स्वीडन की इससे थोड़ी ही पीछे( दोनों देशों में 2.8)
– रिपोर्ट के अनुसार पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का एक बड़ा कारण निमोनिया है। साल 2011 में वैश्विक स्तर पर पाँच साल कम उम्र के जितने बच्चे मृत्यु का शिकार हुए उनमें 18 फीसदी मामलों में मृत्यु का कारण निमोनिया रहा। निमोनिया से मृत्यु का शिकार होने वाले ज्यादातर बच्चे उपसहारीय अफ्रीकी देशों और दक्षिण एशिया के थे।
– वैश्विक स्तर पर बाल-मृत्यु के पाँच अग्रणी कारणों में शामिल हैं- निमोनिया(18 फीसदी); style="font-family:Mangal; font-size:12pt">निर्धारित अवधि से पहले जन्म होने के कारण उत्पन्न जटिलताएं (14 फीसदी); डायरिया (11 फीसदी) और मलेरिया (7 फीसदी)
– रिपोर्ट के अनुसार साल 2011 में पाँच साल से कम उम्र के जितने बच्चों की मृत्यु हुए उसमें एक तिहाई मौतों का कारण कुपोषण रहा।
– यूनिसेफ की इस रिपोर्ट के अनुसार डायरिया का एक बड़ा कारण खुले में शौच करना है। विश्व में अब भी 1.1 विलियन आबादी खुले में शौच करने को बाध्य है।
– डायरिया जनित मृत्यु का एक कारण साफ-सफाई की कमी है। विश्व में 2.5 बिलियन आबादी साफ-सफाई की परिवर्धित सुविधा से वंचित है इस तादाद का 50 फीसदी हिस्सा सिर्फ चीन और भारत में है। विश्व में 78 करोड़ लोगों को साफ पेयजल उपलब्ध नहीं है।
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[inside]यूनाइटेड नेशन्स मिलेनियम डेवलपमेंट गाल्स् रिपोर्ट[/inside] 2009 के अनुसार– http://www.un.org/millenniumgoals/pdf/MDG%20Report%202009%20ENG.pdf
संकल्प 1 :अति दरिद्रता और भुखमरी का उन्मूलन
लक्ष्य-जिन लोगों की आमदनी रोजाना एक डॉलर से कम है उनकी संख्या 1990 से 2015 के बीच आधी करना।
महिलाओं और युवाओं सहित सबके लिए पूर्ण, गरिमामय और उत्पादक रोजगार की स्थिति हासिल करना।
साल 1990 से 2015 के बीच विश्व में भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद में 50 फीसदी की कमी लाना।
अफ्रीका के उपसहारीय देशों और दक्षिणी एशिया में गरीबों की संख्या और गरीबी की दर दोनों ही बढ़ने की आशंका है, खासकर कम वृद्धि वाली अर्थव्यवस्थाओं में यह स्थिति नजर आएगी।वैश्विक स्तर पर देखें तो 2015 तक गरीबों की तादाद को 50 फीसदी कम करना संभावित जान पड़ता है परंतु कुछ इलाके इस लक्ष्य को पाने से कुछ पीछे रह जाएंगे।आशंका है कि एक अरब लोग तयशुदा तारीख तक विश्व में गरीबों की श्रेणी में होंगे।
साल 1990-92 में विकासशील मुल्कों में भोजन की कमी से जूझ रहे लोगों की तादाद में कमी का रुझान देखने को मिला था लेकिन साल 2008 में इस रुझान की दिशा पलटी और खाद्य-पदार्थों बढ़ने से एक दफे फिर से भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या बढ़ने लगी। साल 1990 के दशक के शुरुआती सालों में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में 20 फीसदी की कमी आई थी लेकिन इसी दशक के मध्यवर्ती सालों में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या के घटने का औसत 16 फीसदी रह गया। अनुमानतया साल 2008 में भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद 1 फीसदी बढ़ी है। अगर चीन को छोड़ दिया जाय तो सहारीय अफ्रीकी मुल्कों में ही नहीं पूर्वी एशिया के देशों में भी भोजन कीकमी से जूझ रहे लोगों की संख्या बढ़ी है।
संकल्प 2 : सबको प्राथमिक शिक्षा हासिल हो।
लक्ष्य-इस बात को सुनिश्चित करना कि दुनिया में हर बच्चे को(लड़का हो या लड़की) 2015 तक प्राथमिक शिक्षा हासिल हो जाये।
सार्विक प्राथमिक शिक्षा की दिशा में प्रगति तो हुई है लेकिन अब भी दुनिया में प्राथमिक शिक्षा के आयुवर्ग में आने वाले 10 फीसदी बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं। विकासशील मुल्कों में साल 2007 में प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन का प्रतिशत 88 था जबकि साल 2000 में 83 फीसदी। प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सर्वाधिक सफलता सहारीय अफ्रीकी मुल्कों में हासिल हुई है जहां साल 2000 से 2007 के बीच नामांकन के प्रतिशत में 15 कों का इजाफा देखने को मिला। दक्षिण एशिया में इसी अवधि में नामांकन की तादाद में कुल 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
आबादी की तेज बढ़वार के बावजूद नामांकन प्रतिशत में बढोतरी का यह रुझान उत्साहवर्धक है। बहरहाल वैश्वविक स्तर पर देखें तो प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा से वंचित बच्चों की तादाद बहुत धीमी गति से और क्षेत्रीय स्तर बड़े असमान ढंग से घट रही है इसलिए 2015 तक सबको प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का संकल्प लक्ष्य तक पहुंचा पाना फिलहाल कठिन जान पड़ रहा है।
प्राथमिक शिक्षा के आयुवर्ग में आने वाले मगर स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों की तादाद में साल 1999 के बाद से 3 करोड़ 30 लाख की कमी आई है। फिर भी साल 2007 तक पूरी दुनिया में 7 करोड़ 20 लाख बच्चे स्कूली प्राइमरी स्कूली शिक्षा से वंचित थे। इस तादाद का 50 फीसदी उपसहारीय मुल्कों का निवासी है। इसके बाद दक्षिण एशिया का स्थान है जहां प्राथमिक स्कूली शिक्षा से वंचित कुल 1 करोड़ 80 लाख बच्चे रहते हैं। यूनेस्को ने साल 2006 के आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया है कि 2015 तक प्राथमिक स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों की तादाद विश्व में कम से कम 2 करोड़ 90 लाख होगी। प्राथमिक शिक्षा को हासिल करने की दिशा में सामाजिक अवसरों की असमानता सबसे बड़ी बाधा है।इसकी एक मिसाल तो यही है कि साल 2007 में विश्व के स्कूल-वंचित बच्चों की कुल तादाद में लड़कियों की संख्या 54 फीसदी थी।
संकल्प 3- स्त्री-पुरूषों के बीच बराबरी को बढ़ावा देना और महिलाओं का सशक्तीकरण करना
लक्ष्य- प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा से लैंगिक गैरबराबरी को साल 2005 तक समाप्त करना और शिक्षा के सभी स्तरों पर इस गैरबराबरी को साल 2015 तक खत्म करना।
विकासशील देशों में साल 2007 में प्राथमिक स्कूलों में नामांकित बच्चों में प्रति सौ लड़कों पर लड़कियों की तादाद 95 थी जबकि साल 1999 में यही आंकड़ा 91 लड़कियों का था। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर लैंगिक असमानता में कमी आ रही है।बहरहाल, साल2005 तक प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के स्तरसे लैंगिक गैरबराबरी को खत्म करने के लक्ष्य से दुनिया के देश चूक गए हैं और 2015 तक शिक्षा के सभी स्तरों पर लैंगिक समानता स्थापित करने के लिए नए सिरे से कुछ पहलकदमियां करनी होंगी।साल 2007 तक 171 देशों में से केवल 53 देश ही प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के मामले में लैंगिक बराबरी का लक्ष्य हासिल कर पाये थे(यूनेस्को के आंकड़ों के आधार पर)। साल 1999 में इस लक्ष्य को हासिल करने वाले देशों की तादाद इससे कम(39) थी। अब भी 100 देशों के लिए इस लक्ष्य को हासिल करना बाकी है और यह चिन्ताजनक बात है।
सहारीय अफ्रीकी देशों और दक्षिणी एशिया में महिलाओं के रोजगार की स्थिति चिंताजनक है। दक्षिणी एशिया में महिलाओं की एक बड़ी तादाद(46 फीसदी) पारिवारिक कामों में अपना श्रमदान करती है। परिवार द्वारा चलाये जा रहे व्यवसाय में भी इनका श्रम लगता है लेकिन उस व्वसाय से होने वाली आमदनी में इन महिलाओं की हिस्सेदारी नहीं होती।अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आकलन के अनुसार दिसंबर 2008 में साल 2007 के दिसंबर की तुलना में बेरोजगार स्त्री(6.7फीसदी)और पुरूषों(12.8फीसदी) की संख्या में इजाफा हुआ। साल 2008 की दूसरी छमाही में बेरोजगार पुरूषों की संख्या बेरोजगार महिलाओं की संख्या की तुलना में कहीं ज्यादा तेज गति से बढ़ी। साल 2008 के वित्तीय संकट और सामानों के दामों में हुई तेज बढ़ोतरी से दुनिया भर में श्रम-बाजार पर ना दुष्प्रभाव पडा। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का आकलन है कि साल 2009 में बेरोजगारी की दर 6.3 से 7.1 फीसदी के बीच रहेगी। आईएलओ के अनुसार साल 2009 में 2 करोड़ 40 लाख से लेकर 5 करोड़ 20 लाख तक की संख्या में नए लोग बेरोजगार हो सकते हैं। इसमें महिलाओं की संख्या 1 करोड़ से लेकर 2 करोड़ 20 लाख तक होने की आशंका है।
संकल्प 4- बाल-मृत्यु की संख्या में कमी करना।
लक्ष्य-शून्य से पाँच साल तक की उम्र के बच्चों की मृत्यु की घटना में 1990 से 2015 के बीच की अवधि में दो तिहाई की कमी लाना।
शून्य से पाँच साल तक उम्र के बच्चों की मृत्यु की घटना में वैश्विक सत्र पर कमी आई है। साल 2007 में वैश्विक स्तर पर 1000 नवजात शिशुओं में मृत्यु के शिकार होने वाले शिशुओं की तादाद 67 थी जबकि साल 1990 में यह आंकड़ा प्रति हजार नवजात शिशुओं में 93 शिशुओं का था। साल 1990 में 1 करोड़ 20 लाख 60 हजार नवजात शिशु उन बीमारियों से मृत्यु का शिकार हुए जिनका उपचार मौजूद है। बहरहाल साल 1990 से 2007 के बीच नवजात शिशुओं की मृत्यु की घटना में काफी कमी (90लाख) आई है।
जहां तक विकासशील देशों का सवाल है, साल 1990 में इन देशों में 1000 नवजात शिशुओं में 103 मृत्यु का शिकार होते थे जबकि साल 2007 में यह संख्या घटकर 74 रह गई।बहरहाल, इस दिशा में अभी बहुत प्रगति करना बाकी है। अफ्रीका के उपसहारीय देशों में हर सात में से एक बच्चा अपना पांचवांजन्मदिन पूरा करने से पहले ही मृत्यु का शिकार हो जाता है। शिशु मृत्यु की घटना के साथ साथ उच्च प्रजनन दर का मामला भी जुड़ा है। इससे स्थिति और संगीन हो रही है। मिसाल के लिए उच्च प्रजनन दर के कारण ही उपसहारीय देशों में शिशु मृत्यु की घटना में साल 1990 (40लाख 20 हजार) से 2007(40 लाख 60 हजार) कके बीच इजाफा हुआ।
संकल्प 5- जननि-स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार करना
लक्ष्य-साल 1990 से 2015 के बीच मातृ-मृत्यु दर में तीन चौथाई की कमी लाना और साल 2015 तक प्रजनन-स्वास्थ्य से संबंधित सुविधाओं को हरेक व्यक्ति तक पहुंचाना
हर साल ५३६००० महिलाएं गर्भावस्था की जटिलताओं और प्रसवकालीन दिक्कतों के कारण अथवा प्रसव के छह हफ्ते के अंदर मृत्यु का शिकार होती हैं। इनमें से ज्यादातर महिलाएं(९९ फीसदी) विकासशील मुल्कों की होती हैं। जननी मृत्यु-दर स्वास्थ्य के सूचकांकों में शामिल है और इससे सहज ही पता चल जाता है कि किसी देश में या किन्हीं दो देशों के बीच धनी और गरीब के बीच सुविधाओं की खाई कितनी गहरी है।विकसित देशों में 100,000 जीवित प्रसव पर मातृ-मृत्यु की संख्या 1 है जबकि विकासशील मुल्कों में यही आंकड़ा 450 महिलाओं का है।कुल 14 विकासशील मुल्क ऐसे हैं जहां प्रति 100,000 जीवित प्रसव पर मातृमृत्यु की संख्या 1000 है।मातृ-मृत्यु की कुल संख्या का 50 फीसदी (265000) उपसहारीय अफ्रीकी देशों में घटित होता है जबकि दक्षिण एशिया में इसकी तादाद एक तिहाई(187000) है।इन दो क्षत्रों में कुल मातृ-मृत्यु की 80 फीसदी घटनाएं होती हैं।
आंकड़ों पर आधारित मौजूदा रुझान से पता चलता है कि मातृ-मृत्यु की तादाद कम करने के मामले में प्रगति कुछ खास नहीं हो पायी है।मिसाल के लिए साल 1990 में 1 लाख जीवित शिशु के जन्म पर मातृमृत्यु की संख्या 480 थी जबकि साल 2005 में यह आंकड़ा बहुत थोड़ा घटकर 450 पर पहुंचा और प्रगति विश्व के बड़े थोड़े से इलाकों मसलन पूर्वी एशिया, उत्तरी अफ्रीका,दक्षिण-पूर्वी एशिया(30 फीसदी की कमी) में नजर आई।दक्षिण एशिया में इस मामले में कुल 20 फीसदी की कमी आई।बावजूद इसके इस इलाके में मातृमृत्यु की संख्या बहुत ज्यादा है।विश्व के उपसहारीय अफ्रीकी देशों ने इस मामले में 1990-2005 के बीच बड़ी कम प्रगति की जबकि वहां गर्भावस्था या प्रसव के दौरान महिलाओं की मृत्यु की आशंका सर्वाधिक है।
साल 1995 के बाद से तकरीबन सभी विकासशील देशो में प्रसव के दौरान प्रशिक्षत स्वास्थकर्मियों(डाक्टर,नर्स,दाई) की मौजूदगी की परिघटना में विस्तार हुआ है। प्रसव के दौरान प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की मौजूदगी का आंकड़ा साल 1990 में इन देशों में 53 फीसदी का था जो साल 2007 में बढ़कर 61 फीसदी तक जा पहुंचा।बहरहाल, अब भी उपसहारीय अफ्रीकी देशों और दक्षिण एशिया में आधे से ज्यादा प्रसव प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की गैरमौजूदगी में होते हैं।कम उम्र में गर्भधारण की घटना के कारण हर साल 15-19 आयुवर्ग की कुल 70,000 लड़कियां गर्भावस्था की जटिलताओंया प्रसवकाल में मृत्यु का शिकार होती हैं।इससे जुड़ाएख तथ्य यह भी है कि अगर कोई स्त्री 18 साल से कम उम्र में गर्भधारण करती है तो उसके शिशु के जन्म से एक साल की अवधि के अंदर मरने की आशंका 18 या उससे अधिक उम्र में गर्भधारण करने वाली स्त्री की तुलना 60 फीसदी ज्यादा होती है।
संकल्प 6- एचआईवी-एडस्,मलेरिया और अन्य बीमारियों की रोकथाम।
लक्ष्य- साल 2015 तक एचआईवी एडस् के प्रसार पर रोक लगाना और इसके बाद एचआईवी-एडस् की घटना का उन्मूलन।
विश्वस्तर पर देखें तो साल 1996 में एचआईवी के नवसंक्रमित लोगों की तादाद सर्वाधिक थी और इसके बाद के सालों में एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में कमी आई तथा साल 2007 में एचआईवी से नवसंक्रमित लोगों की संख्या घटकर 20 लाख 70 हजार हो गई।इसका कारण रहा एशिया,लातिनी अमेरिका और उपसहारीय अफ्रीकी देशों में एचआवी संक्रमण की घटना में आई कमी।बहरहाल,पूर्वी योरोप और मध्य एशिया में एचआईवी से संक्रमित होने वाले नये लोगों की तादाद अब भी ज्यादा है।इन इलाकों में एचआईवी संक्रमित लोगों की तादाद 2001 की तुलना में दोगुनी बढ़ी है जबकि इसी साल यूएन का एचआईवी एडस् की रोकथाम संबंधी घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए थे।इन इलाकों में एचआईवी संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 630,000 से एक करोड़ 60 लाख हो गई है।साल 2005 में एडस् से मरने वाले लोगों की विश्वव्यापी तादाद 20 लाख 20 हजार थी जो साल 2007 में घटकर 20 लाख पर पहुंची।इसका एक कारण रहा एडस्-निरोधी दवाओं का दुनिया के गरीब देशों में बढ़ता उपयोग।एडस् निरोधी दवाओं के इस्तेमाल के बावजूद दुनिया में एचआईवी संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है क्योंकि एचआईवी संक्रमित लोग अब दवाओं के इस्तेमाल के कारण कहीं ज्यादा समय तक जीवित रह पाने में सक्षम हैं।साल 2007 में तकरीबन 3 करोड़ 30 लाख लोग दुनिया में एचआईवी से संक्रमित थे।
साल 2007 में तकरीबन एक तिहाई(वैश्विक स्तर पर कुल संख्या के) एचआईवी नवसंक्रमण के मामले और एडस् से होने वाली मृत्यु के 38 फीसदी मामले सिर्फ दक्षिणी अफ्रीका में दर्ज किए गए।उपसहारीय अफ्रीकी देशों में दुनिया की एचआईवी संक्रमित आबादी का 67 फीसदी हिस्सा रहता है।महिलाओं की संख्या दुनिया के एडस् संक्रमित लोगों की तादाद में आधी है।उपसहारीय अफ्रीकी देशों में एचआईवी संक्रमित आबादी में महिलाओं की संख्या 60 फीसदी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साल 2006 में मलेरिया से मरने वाले लोगों की तादाद लगभग 10 लाख थी।इनमें से 90 फीसदी लोग उपसहारीय अफ्रीकी देशों के थे और मलेरिया की चपेट में आने वाले ज्यादातर पाँच साल से कम उम्र के बच्चे थे।इस साल मलेरिया से तकरीबन 19 से 33 करोड़ लोग ग्रसित हुए जिसमें 88 फीसदी मामले सिर्फ उपसहारीय अफ्रीकी देशों के थे,6 फीसदी मामले दक्षिणी एशिया के और 3 फीसदी मामले दक्षिमी पूर्वी एशिया से संबंद्ध थे।
मलेरिया से मिलता जुलता मामला यक्ष्मा(टीबी) का है। साल 2007 में टीबी के 90 लाख 30 हजार नये मामले दर्ज किए गए जबकि साल 2006 में टीबी के नए मरीजों की तादाद 90 लाख 20हजार और साल 2000 में 80 लाख 30 हजार थी।साल 2007 में टीबी के नए मामले सर्वाधिक(55 फीसदी) एशिया में दर्ज किए गए जबकि 31 फीसदी मामले अफ्रीका में।
संकल्प 7 – पर्यावरण के टिकाऊपन को सुनिश्चत करना।लक्ष्य-देश के नीतियों और कार्यक्रमों में टिकाऊ विकास के सिद्धांतों को जगह देना और प्राकृतिक संसाधनों के नाश की प्रवृति पर रोक लगाना।
जैव विविधता के नाश को कम करना और 2010 तक जैव विविधता के नाश की दर में सुनिश्चित कमी लाना।जो लोग स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई की बुनियादी सुविधा से वंचित हैं उनकी संख्या 2015 तक कम करके आधी करना।
साल 2020 तक कम से कम 10 करोड़ झुग्गीवासी जनता की रहन-सहन स्थिति में उल्लेखनीय सुधार करना।
कार्बन डाय आक्साइड का उत्सर्जन ग्रीनहाऊस प्रभाव का प्रमुख कारण है और इससे वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है।साल 2006 में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाय आक्साइड के उत्सर्जन में बढ़ोतरी जारी थी।पिछले साल के मुकाबले इसके उत्सर्जन में ढाई फीसदी की बढ़ोतरी हुई और उत्सर्जन 1990 के स्तर से 31 फीसदी की ऊँचाई लांघकर 29 अरब मीट्रिक टन पहुंच गया।प्रति व्यक्ति कार्बन डायआक्साइड के उत्सर्जन का हिसाब लगायें तो विकसित मुल्क बहुत आगे नजर आयेंगे।वहां प्रति व्यक्ति कार्ब डायआक्साइड के उत्सर्जन की दर 12 मीट्रिक टन सालाना प्रति व्यक्ति है जबकि उपसहारीय अफ्रीका में 0.8 मीट्रिक टन।इस लिहाज से साल 2009 के दिसंबर में होने वाले कोपेनहेगन सम्मेलन में इस समस्य़ा का निदान निकालना अत्यंत जरुरी है।मांट्रियल प्रोटोकोल के अन्तर्गत आने वाले 195 देशों ने 1986 से 2007 के बीच विश्व की ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के उपभोग में 97 फीसदी की कमी की है।
वनभूमि का नाश बडी तेजी से हो रहा है।सालाना एक बांग्लादेश के बराबर यानी 1 करोड़ 30 लाख हेक्टेयर वनभूमि नष्ट हो रही है।संतोष की बात इतनी ही है कि वनों के प्राकृतिक विस्तार या फिर वनभूमि संवर्धन के प्रयासों से वनभूमि के नाश की थोड़ी भरपाई हो जाती है।
संकल्प-8-विकास के लिए वैश्विक स्तर पर साझेदारी करना।
लक्ष्य-सर्वाधिक पिछड़े देशों,चारो तरफ भूमि से घिरे देशों और छोटे द्वीपों में बसे विकासशील देशों की विशेष जरुरतों को ध्यान में रखते हुए व्यवस्था करना।
बराबरी पर आधारित और कानून सम्मत उदार वित्तीय और कारोबारी व्यवस्था करना।
विकासशील देशों की कर्जदारी का व्यापक स्तर पर समाधान सुझाना।
औषधि निर्माता कंपनियों के सहयोग से विकासशील मुल्कों में जरुरी किस्म की दवाइयां उपलब्ध कराना।
निजी क्षेत्र के सहयोग से नई तकनीक खासकर सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ आम जनता तक पहुंचाना।
साल 2009 के अप्रैल में जी-20 देश के नेता कम आमदनी वाले देशों को सामाजिक सुरक्षा,व्यापार वृद्धि और विकास के मद में 50 अरब डॉलर की राशि देने के लिए सहमत हुए।इस बात की भी सहमति बनी कि आगामी दो-तीन सालों में गरीब देशों को इसके अतिरिक्त 6 अरब की राशि अनुदानित कर्जऔर लचीले शर्तों के साथ दी जाएगी।इसी महीने विश्वबैंक औरअंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की वैकासिक समिति ने दानदाता देशों से कहा कि वे अपनी प्रतिबद्धताओं को त्वरित गति से पूरा करें साथ ही उससे और अधिक करने की सोचें।अगर दानदाता देश अपने वायदे से मुकरते हैं या फिर देरी करते हैं तो सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को समय से पूरा कर पाना संभव नहीं होगा या फिर ये लक्ष्य सिर्फ कागजी बनकर रह जायेंगे।
मौजूदा हालात –
- साल 1990-2005 के बीच सवा डॉलर रोजाना से कम की आमदनी वाले लोगों की संख्या 1 अरब 80 करोड़ से घटकर 1 अरब 40 करोड़ हो गई। साल 2009 में वित्तीय संकट के कारण अनुमानतया 9 करोड़ लोग अत्यधिक दरिद्रता में रहने के लिए बाध्य होंगे।
- भुखमरी की स्थिति साल 1990 के दशक में सुधरी थी लेकिन खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण साल 2008 में स्थिति संगीन हुई है।साल 2006 में विकासशील देशों में भुखमरी 16 फीसदी थी जो 2008 में बढ़कर 17 फीसदी हो गई।
- साल 2008 की दूसरी छमाही में कीमतों में कमी आने के बावजूद लोगों के बीच खाद्य-वस्तुओं की उपलब्धता नहीं बढ़ी।
- विकासशील देशों में एक चौथाई से ज्यादा बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से कम वज़न के हैं और इसका मानवीय संसाधन के विकास पर दूरगामी असर पड़ने वाला है।साल 1990 से 2007 के बीच बाल-पोषण की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन इससे 2015 तक का निर्धारित लक्ष्य पूरा होने की संभावना है, खासकर वित्तीय संकट की स्थिति को देखते हुए।